Sunday 30 April 2017

हे प्रभु

हे प्रभु आनंद दाता
हे प्रभु ! आनंद दाता !! ज्ञान हमको दीजिये |
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये ||
हे प्रभु…
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें |
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें ||
हे प्रभु…
निंदा किसीकी हम किसीसे भूल कर भी न करें |
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें ||
हे प्रभु ………
सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें |
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें ||
हे प्रभु ………
जाये हमारी आयु हे प्रभु ! लोक के उपकार में |
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में ||
हे प्रभु ………
कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा !
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा ||
हे प्रभु ………
प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें |
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें ||
हे प्रभु…
योगविद्या ब्रह्मविद्या हो अधिक प्यारी हमें |
ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करके सर्वहितकारी बनें ||
हे प्रभु…
जय श्रीकृष्ण

Wednesday 26 April 2017

I desire

I desire to be with Krishna.
I desire to be the reason of happiness for Krishna.
I desire to make this world a beautiful place for Krishna.
I desire to get free from ‘I’ ‘Me’ 'Mine’ for Krishna.
I desire to be truthful, loyal and selfless for Krishna....
I desire to lessen the pain of living beings for Krishna.
I desire to follow as well as break the rules for Krishna.
I desire to completely surrender to Krishna.
I desire to chant the Holy name of Krishna.
I desire to explore this universe with Krishna.
I desire to do what Krishna wants me to do.
I desire to distribute the love of Krishna.
I desire to have strength and patience to improve myself for Krishna.
I desire to paint, write, cook, sing and dance for Krishna.
I desire to look beautiful for Krishna.
I desire to feel sacredness of Krishna and every soul that I am surrounded by.
I desire to surprise Krishna and myself by loving Him beyond my imagination.
I desire everyone to be with Krishna.
I desire to get free from everything except Krishna.
I desire to become desireless for Krishna.

Tuesday 25 April 2017

झूठा है

कोई सोना चढाए , कोई चाँदी चढाए ;
कोई हीरा चढाए , कोई मोती चढाए ;
चढाऊँ क्या तुझे भगवन ; कि ये निर्धन का डेरा है ;
अगर मैं फूल चढाता हूँ , तो वो भँवरे का झूठा है ;
अगर मैं फल चढाता हूँ , तो वो पक्षी का झूठा है ;
अगर मैं जल चढाता हूँ , तो वो मछली का झूठा है ;
अगर मैं दूध चढाता हूँ , तो वो बछडे का झूठा है ;
चढाऊँ क्या तुझे भगवन ; कि ये निर्धन का डेरा है ;
अगर मैं सोना चढ़ाता हूँ , तो वो माटी का झूठा है ;
अगर मैं हीरा चढ़ाता हूँ , तो वो कोयले का झूठा है ;
अगर मैं मोती चढाता हूँ , तो वो सीपो का झूठा है ;
अगर मैं चंदन चढाता हूँ , तो वो सर्पो का झूठा है ;
चढाऊँ क्या तुझे भगवन, कि ये निर्धन का डेरा है ;
अगर मैं तन चढाता हूँ , तो वो पत्नी का झूठा है ;
अगर मैं मन चढाता हूँ , तो वो ममता का झूठा है ;
अगर मैं धन चढाता हूँ , तो वो पापो का झूठा है ;
अगर मैं धर्म चढाता हूँ , तो वो कर्मों का झूठा है ;
चढाऊँ क्या तुझे भगवन , कि ये निर्धन का डेरा है ;
तुझे परमात्मा जानू , तू ही तो है - मेरा दर्पण ;
तुझे मैं आत्मा जानू , करूँ मैं आत्मा अर्पण.

Monday 24 April 2017

हंस मानसर भूला

हंस मानसर भूला
कंकर चुगने लगा वही जो
मुक्ता चुगता था पहले
पर में ऐसा कया आकर्षण
जो परमेश्वर भूला
नीर क्षीर की दिव्य दृषटी में
अंध वासना जागी
गति का परम प्रतीक बन गया
जड़ता का अनुरागी
हंस मानसर भूला
कंकर चुगने लगा वही जो
मुक्ता चुगता था पहले
पर में ऐसा कया आकर्षण
जो परमेश्वर भूला
क्षर में ऐसा कया सम्मोहन
जो तू अक्षर भूला
क्षर में ऐसा कया सम्मोहन
जो तू शाश्वत भूला
श्री कृषण शरण समर्पण

Saturday 22 April 2017

हे नन्दलाला हे गोपाला

हे नन्दलाला हे गोपाला…
ले लो शरण में हम को भी लाला ।

तुमसा नहीं कोई जग में निराला
तुमसे ही जगमग ये जग सारा
तू ही सबका भाग्य विधाता
हे नन्दलाला हे गोपाला…

दरश को तेरे तरसे हैं अँखियाँ
किससे कहूँ ये दुःख भरी बतियाँ
कौन सुनेगा मेरी ये बतियाँ
हे नन्दलाला हे गोपाला…

तुम बिन जग में कौन हमारा
तुम बिन कैसे होगा गुज़ारा
मिलन "" अनोखा "" हो कैसे हमारा
हे नन्दलाला हे गोपाला…

हे नन्दलाला हे गोपाला…
ले लो शरण में हम को भी लाला ।

•¡✽🌿◆🍒🎼🍒◆🌿✽¡•
जय श्री कृष्णा
राधे राधे

Thursday 20 April 2017

तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे,
कोई न अपना सिवा तुम्हारे
तुम्ही हो नैय्या तुम्ही खेवय्या,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

जो खिल सके ना वो फूल हम हैं,
तुम्हारे चरणों की धुल हम हैं
दया की दृष्टि सदा ही रखना,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

I do not want

I do not want ...

I do not want imposed on love,
For the Lord Himself does not require, as requested.
Let everyone does the same,
After all, everyone in my heart, God is.

I do not want aid was paid,
to name a price for love,
For the Lord Himself gives it to us
and lets it be again.

And every time we get a life
not in order to pay the death,
And in order to learn how to simply,
without any benefit and sincere love.

And what are we? We demand of love!
But this is nonsense, this is in fact nonsense,
What is so absurd, like summer snow ...
Do not confuse, where generosity and stinginess where.

I do not want to love on pain of death,
what the soul wants to turn into a slave.
I do not want me to want it,
what increases the pride and arrogance.

I do not want to understand, "sweet" life
is such that only sugary mouth.
I do not want someone pointed out to me
in which I believe need to dream.

I do not want to go on about
have thoughts frenzied and stupid,
from which the whole world stands on the head,
the Lord, is in the thoughts of honest and simple.

I do not want to thrust compliments,
with a hint of response hvalby.
I do not want to beat the truth lies,
that said thus: "If only ...

If only she had not resisted,
and not stubborn, and was used to compromise",
but the truth can not be so,
It's for her - way down.

I do not want to beat me in short,
as if the word is born for the penalty,
I do not want my choice to do so:
I'll go for those who are less contagious ...

I do not want sterile for life.
I do not want insurance against problems,
the Lord, He never puts
the problem is unsolvable and dilemmas.

Please do not force me to
feed all that I can not stand,
I do not want artificial smiles
and indifference in the guise of "I'm in a hurry."

Such a rush - it's laughing at life
and abuse Bozheyu Love
It is entirely given over to God.
And not some elite class.

I do not want I ran,
as if the doll I was a puppet,
I do not want to draw it is all about:
How will fall soulless coin.

I do not want to see in the eyes trick
After the trick and the soul are not compatible,
I do not want God's miracles
to science were explained.

I do not want my faith collapsed
under the weight of what some "no",
I do not want to know at the end of the way,
what passed was not the path.

I do not want to see the land of heaven,
What scatters from the blast someone's anger.
I do not want to holy relics
Casually simply called "bones".

I do not want a toy, "happiness,"
What does the virtual world,
I do not want to be where I'm comfortable.
After all, there illusion arranges a feast.

I do not want to "hardball" passion,
heart-rending cries of the world for the deaf,
I do not want people to be divided into groups: the
people are good and bad people.

I do not want to laugh at the crippled,
no matter where the flaw in the soul il in the body,
I do not want to live only in words,
And I want to live acts, in fact.

I do not want to count on his fingers the days
in which I live as I want,
I do not find one,
what someone's soul mentally trample.

And most importantly, I do not want to forget
what God wants from a small soul
With so confused screaming into the world,
and so confident in God's silence.

Stay together ... but I - the soul and God,
and once you see the world differently,
After all, in the same moment the spiritual world of love
will replace the poor, earthly.

And this poverty is that despair ...
there's no way ... lost dreams ...
the Lord will tell you that I do not want to,
and then asked, "What do you want,"

I understand then what I want:
I want to know what God desires,
and at the same moment, "I do not want to" disappear
like a dream from awakening disappears ...

Elena Kropivko

राधे राधे मन बोले

राधे राधे मन बोले
मान में अमृत रस घोले
तू ही मेरी आराधना
प्रेम माई है तू साधना
तू जो घूँघट पाट खोले
मान में अमृत रस घोले
राधे राधे मान बोले
मान में अमृत रस घोले
बंसी का हर राग है तू ही
जीवन का अनुराग है तू ही
तेरे नैनो की मीना का
लेकर मेरा मोर मुकुट
ये संग पवन के डोले
मान में अमृत रस घोले
राधे राधे मान बोले
मान में अमृत रस घोले

तेरी मेरी प्रीत है अनुपम
जैसे पानी और हो चंदन
तेरे रंग में मई पीताम्बर
बन जाऊं और ये जीवन संग तेरे होल
मान में अमृत रस घोले
राधे राधे मान बोले
मान में अमृत रस घोले
जीवन में फिर क्या बाधा है संग जो मेरे तू राधा है
निर्धन का तू धन है राधा प्रेम के इस अनमोल रतन को
कौन तुला में टोले, मान में अमृत रस घोले
राधे राधे मान बोले
मान में अमृत रस घोले
राधे राधे मान बोले
मान में अमृत रस घोले

राधे राधे

जो बोयेगा वाही पायेगा

जो बोयेगा वाही पायेगा तेरा किया आगे जाएगा
सुख दुख है क्या फल कर्मो का
जैसी करनी वैसी भरनी
जो बोयेगा वाही पायेगा

सबसे बड़ी पूजा है माता पिता की सेवा
किस्मत वालो को ही मिलाता है ये मौक़ा
हाथ से अपने खो मत देना मौक़ा ये खिदमत का
जन्नत का दर खुल जाएगा
तेरा किया आगे जाएगा

चाहे न पूजे मूरत चाहे न तीरथ जाए
मात पिता के तन मे सारे देव समाये
तू इनका दिल खुश रखे तो इश्वर खुश हो जाए
भगवान तुझको मिल जाएगा
तेरा किया आगे जाएगा

अपनो को जो अपनी दुनिया ठुकराती है
जाने अनजाने मे हाय निकल जाती है
हाय लगे न तुझको दुवा ये मान देकर जाती है
मान का दिल माफ़ कर जाएगा
तेरा किया आगे जाएगा

Tuesday 18 April 2017

ॐ गंग गणपतये नमः

~~~|| शंकटनाशन श्री गणपतिस्तोत्रं ||~~~
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु:कामार्थसिद्धये ।।१।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।।
तृतीयं कृष्णपिङ्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।२।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।३।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।४।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।५।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।६।।
जपेत् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।७।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ।।८।।

इति श्री नारदपुराणे शंकटनाशन
श्री गणपतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।

Friday 14 April 2017

या मोहन के मैं रूप लुभानी

जमना के नीरे तीरे धेनु चरावै
बंसी से गावै मीठी बानी ।।
या मोहन के मैं रूप लुभानी ।

तन मन धन गिरधर पर बारूं
चरणकंवल मीरा लपटानी ।।
या मोहन के मैं रूप लुभानी ।

सुंदर बदन कमलदल लोचन
बांकी चितवन मंद मुसकानी ।।
या मोहन के मैं रूप लुभानी ।


राधे राधे

Thursday 13 April 2017

आओ आओ ! बालाजी भोग लगाओ !

आओ आओ ! बालाजी भोग लगाओ !
थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !
थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !

आओ आओ ! बालाजी भोग लगाओ !
थारी माता जानकी रे बनाया , थारा थाल जी !

आओ आओ , सगळा वानरा ने भी संग लाओ जी !
थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !
थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !

आओ आओ ! बालाजी भोग लगाओ !
जीम्यो जी भोग लगाओ !
हैं लाडू चूरमो तैयार जी !

आओ आओ म्हारा बाला !
थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !
थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !

ओ बाला !
थारी मैया जानकी , भेजा यो कलेवा जी !
रामजी थारी मनुहार करै रे
थारा वानर करै हैं मनुहार जी !

भोग लगाओ म्हारा बाला ! बाकी वानरों को बांटों जी !

लाडू बूँदी जलेबी रसगुल्ला , रसमलाई , साग शबरी को !
गुलाब जामुन , शक्करपारा , घेवर न्यारा न्यारा !

जो भी, जी में आवे , म्हारे हाथां सू खावो !
जीमो जी भोग लगावो ! हैं छप्पन भोग तैयार जी !

थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !
थारा रामजी करै रे , मनुहार जी !

मेरा गोपाल गिरधारी

मेरा गोपाल गिरधारी जमाने से निराला है ।
रंगीला है रसीला है ना गोरा है ना काला है ।।
कभी सपनों में आ जाना,कभी रूपोश हो जाना ।
ये तरसाने के मोहन ने निराला ढंग निकाला है।।
मेरा गोपाल गिरधारी जमाने से निराला है ।
कभी ऊखल में बंध जाना,कभी ग्वालों में जा खेले है ।
तुम्हारी बाल लीला ने अजब धोखे में डाला है ।।
मेरा गोपाल गिरधारी जमाने से निराला है ।
कभी वो मुस्कराता है,कभी वो रूठ जाता है ,
इसी दर्शन की खातिर तो बड़े नाजों से पाला है ।।
मेरा गोपाल गिरधारी जमाने से निराला है ।
तुम्हें मै भूलना चाहूँ मगर भुला नहीं जाता है ।
तुम्हारी सांवरी सूरत ने कैसा जादू डाला है ।।
मेरा गोपाल गिरधारी जमाने से निराला है ।
मेरे नैनों में बस जाओ, मेरे ह्दय में आ जाओ ।
मेरे मोहन ये मन मन्दिर तुम्हारा देखा-भाला है ।।
मेरा गोपाल गिरधारी जमाने से निराला है ।य
तुम्हें मुझ-से हजारों है मगर सिद्धेश्वरदूबेके तुम-ही तुम हो।
तुम ही सोचो हमारी तो न कोई सुनने वाला है ।
मेरा गोपाल गिरधारी ज़माने से निराला है ।।

Wednesday 12 April 2017

क्यूँ आ के रो रहा है गोविन्द की गली में

क्यूँ आ के रो रहा है गोविन्द की गली में ,
हर दर्द की दवा है गोविन्द की गली में ,
तू खुलके उनसे कह दे जो मन में चल रहा है ,
वो ज़िंदगी के ताने बाने जो बुन रहा है ,
हर रात ख़ुशनुमा है सिद्धेश्वर गोविन्द की गली में
क्यूँ आ के रो रहा है गोविन्द की गली में ,
हर दर्द की दवा है गोविन्द की गली में ,

.......राधे राधे

Tuesday 11 April 2017

हरि सा हीरा छाड़ि कै

हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस । 
ते नर जमपुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। १ ।।

अंतरगति रार्चैँ नहीं, बाहर कथैं  उदास ।
ते नर जम पुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। २ ।।

रैदास कहें जाके ह्रदै, रहै रैन दिन राम ।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न ब्यापै काम ।। ३

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास ।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।। ४

रैदास तूँ कावँच फली, तुझे न छीपै कोइ ।
तैं निज नावँ न जानिया, भला कहाँ ते होइ ।। ५ ।।

रैदास राति न सोइये, दिवस न करिये स्वाद । 
अह-निसि हरिजी सुमिरिये, छाड़ि सकल प्रतिवाद ।। ६ ।।

Sunday 9 April 2017

वादश शिक्षापत्र

वादश शिक्षापत्र में श्रीस्वामिनीजी के वाक्यन की भावना अहर्निश करनी सो श्रीहरिरायजी निरूपण करते हैं ::::----

भावनीयं सदा चित्ते स्वामिनीजल्पितं मुहु: ।
तापक्लेशैरयं मार्ग: श्रीमदाचार्यरूपित: ।।1।।
दर्शनं देहि गोपीश ! गोकुलानन्ददायक !
गोविन्द ! गोपवनिताप्राणाधिप ! कृपानिधे ! ।।2।।
गोपाल ! पालितव्रज ! निजव्रजसुखांबुधे !
परमानंद ! नंदादिरुचिरोत्संगलालित ! ।।3।।
सदानन्द ! निजानन्दसमुदायप्रदायक !
दामोदर ! दयार्द्रार्द्र ! दीनानाथ ! दयापर ! ।।4।।
पुरुषोत्तम ! सर्वांगरुचिर ! प्रेमपूरित !
अनंगरूपपरम ! प्रिय ! गोपवधूपते !।।5।।
व्रजावलंबसुकटे ! लंबकेश ! कलानिधे !
विरहार्तिहर ! स्वीयमनोहरणतत्पर ! ।।6।।
मनोविनोद ! भावाब्धे ! भाववतहृदयस्थित !
चंचलीकृतचित ! स्वभावांदोलितरूपधृक ! ।।7।।
महामुग्ध ! सदादुग्धपानतत्परमानस !
नवनीतालिप्तमुख ! पयोबिंदुयुताधार ! ।।8।।
अलकावृतवदन ! मदनाधिकसुन्दर !
कपोलविलसद्राग ! कस्तूरीतिलकांचित ! ।।9।।
सिंजन्नूपुरशोभाढ़य ! नखभूषणभूषित !
सघोषसूक्ष्मकटिविलसत्क्षुद्रघन्
टिक ! ।।10।।
राजध्हृदयवैयाघ्रनखभूषणभूषित !
कंजलोचनलोलाक्ष ! विशालाक्षविलक्षण ! ।।11।।
दीनैकशरण ! स्वीयसर्वसामर्थ्यसंयुत !
व्रजराजसुत ! स्वीयजननीकंठभूषण ! ।।12।।
हा कृष्ण ! हा सदानन्द ! हा वृन्दावनभूषण !
हा नन्दराजतनय ! हा यशोदांकखेलन ! ।।13।।
हा गोपीकेश ! हा नाथ ! हा गोकुलपुरन्दर !
हा हा व्रजजनार्तिहन ! हा हा निःसाधनाधिप ! ।14।।
हा हा नन्दादिसर्वस्व ! हा हा अनंगनवांकुर !
हा हा निरालंबनालंब ! हा हा अंधलकुटिप्रिय !! ।।15।।
इस भाँती श्रीस्वामिनीजी विप्रयोग करती हैं
एवंविधानि सततं जल्पितानि मुहुर्मुहू: ।
अवगत्य च भावेन भावनियान्यहर्निशम् ।।16।।
ऐसे श्रीस्वामिनीजी निरन्तर उच्चारण कर हैं सो बारंबार भावसों जानिकें अहर्निश( निरंतर ) तिनकी भावना करनी ।
"श्रीहरिरायजी कहते हैं कि जो तुम इस भांति श्रीस्वामिनीजी के विरह की भावना अहर्निश करो , तब श्रीस्वामिनीजी की कृपातें हृदय में भाव स्थिर होयगो , तब प्रभु अपनों अनुभव करावेंगे , यह सिद्धान्त सर्वोपरि हैं ।"
इति श्रीहरिरायजीकृत द्वादशशिक्षापत्रं समाप्तम ।।

Saturday 8 April 2017

सुन सखी एक बात कहू.........!!


आज मेरा भी गठ बंन्धन करा दिजो इस नन्द के लाल के साथ,
भरू माँग में अपनी, फेरे में भी लगाऊ आज इसके नाम के सात..!!
1= पहले फेरे में वादा करूँ, ना छोड़ूगी में इसका हाथ.........
2= दूजे फेरे में वादा करूँ, हर पल रहूगी इसके साथ...........
3= तीजे फेरे में वादा करूँ, सेवा करू इसकी दिन-रात..........
4= चौथे फेरे में वादा करूँ, हर दुःख इसका हो मेरे पास..........
5= पाँचवे फेरे में वादा करूँ, सुहागन रहूँ जब तक है मेरी साँस में साँस....
6= छठे फेरे में वादा करूँ, मेरी मृत्यु हो इसके चरणो के पास.........
7= सातवें फेरे में वादा करूँ, जनम जनम मुझे मिले इसका साथ........!!
आज मेरा भी गठ बंन्धन करा दिजो इस नन्द के लाल के साथ,
भरू माँग में अपनी, फेरे में भी लगाऊ आज इसके नाम के सात..!!

!! जय श्री राधे कृष्णा !!

Friday 7 April 2017

गोविन्दा

श्रीश्रीनिवासा गोविन्दा,श्रीवेंकटेसा गोविन्दा-
गोविन्दा हरि गोविन्दा,वेंकटरमना गोविन्दा
गोविन्दा हरि गोविन्दा,गोकुलनंदन गोविन्दा १
भक्तवत्सला गोविन्दा,भागवतप्रिय गोविन्दा
त्रिमलवासा गोविन्दा,श्रीश्रीनिवासा गोविन्दा२
नित्यनिर्मल गोविन्दा,नीलमेघश्यामा गोविन्दा
पुराणपुरुषा गोविन्दा,पुण्डरीकाक्षा गोविन्दा३
नंदनंदना गोविन्दा ,नवनितचोर गोविन्दा
पशुपालक श्रीगोविन्दा,पापविमोचन गोविन्दा४
सर्ष्टिपरिपालक गोविन्दा,कस्टनिवारक गोविन्दा
दुष्टसंहारक गोविन्दा,दुःखनिवारक गोविन्दा५
गोपीजनप्रिय गोविन्दा,गोवर्दनधर गोविन्दा६
दशरथनंदन गोविन्दा,दसमुख्मर्दन गोविन्दा
पक्षीवाहना गोविन्दा,पांडवप्रिय गोविन्दा७
मत्स्यअवतारी गोविन्दा,मधुसूदन गोविन्दा
वरहानरसिंह गोविन्दा,वामनवर्गुराम गोविन्दा८
बलरामानुज गोविन्दा,बुद्धकल्किधर गोविन्दा
वेणुजनप्रिय गोविन्दा,सीतानायक गोविन्दा९
अष्टपोषका गोविन्दा,आदिपुरुषा गोविन्दा
अनाथरक्षक गोविन्दा,आपातबंधव गोविन्दा१०
करुणासागर गोविन्दा,शरणागत्वत्सल गोविन्दा
कमलदलाक्षा गोविन्दा,कामितफलदाता गोविन्दा११
पापविनाशक गोविन्दा,पाहिमुरारी गोविन्दा
श्रीमुद्रांकित गोविन्दा,श्रीवत्सांकित गोविन्दा१२
धरणिनायक गोविन्दा,दिनकरतेजा गोविन्दा
पधमावतीप्रिय गोविन्दा,प्रसन्न्मुर्ती गोविन्दा१३
अभयहस्ता गोविन्दा,अश्रित्वर्दव गोविन्दा
शंखचक्रधर गोविन्दा,संगगदाधर गोविन्दा१४
विराजतीर्था गोविन्दा,विरोधिमर्दन गोविन्दा
सस्त्रनामा गोविन्दा,साळिगरामा गोविन्दा१५
लक्ष्मीबल्लभ गोविन्दा,लक्ष्मणअग्रजा गोविन्दा
कस्तूरितिल्का गोविन्दा,कंचनअम्ब्रधर गोविन्दा१६
पीताम्बरधारी गोविन्दा,गरुड़वाहना गोविन्दा
गानालीला गोविन्दा, अन्नंतविनुचा गोविन्दा १७
वानरसेवितगोविन्दा,वृद्धिवंदना गोविन्दा
एकस्वरूपा गोविन्दा,सप्तगिरिशा गोविन्दा१८
आश्रितरक्षक गोविन्दा,धनधान्यप्रिय गोविन्दा
अभयमूर्ति गोविन्दा,वेदांतनिलया गोविन्दा१९
अन्नमयविदा(विनुजा)गोविन्दा रासलीला गोविन्दा
धर्मसंस्थापक गोविन्दा,धनलक्ष्मीप्रिय गोविन्दा२०
श्रीराम कृष्णा गोविन्दा,रघुकुलनंदन गोविन्दा
प्रत्यक्षदेवा गोविन्दा,परमदयाकर गोविन्दा२१
वज्रकवचधर गोविन्दा,वैभवमूर्ति गोविन्दा
रत्नकिरिटा गोविन्दा,भक्तरक्षक गोविन्दा२२
वासुदेवतनय गोविन्दा,वेजयंतीधर गोविन्दा
नित्यकल्याणा गोविन्दा,नीरंजनाभा गोविन्दा२३
वेंकटनायक गोविन्दा,विल्वपत्राक्षित गोविन्दा
ब्रह्मांडरूपा गोविन्दा,आनंदरूपा गोविन्दा२४
आदिअनंतरहिता गोविन्दा,सर्वतारणा गोविन्दा
ईहप्रदायक गोविन्दा,ईभराजरक्षक गोविन्दा२५
शेषसयिनि गोविन्दा, शेषधरणीनिलय गोविन्दा
अतिरामप्रिय गोविन्दा,हरिसर्वोत्तम गोविन्दा२६
जनार्दनमूर्ति गोविन्दा,श्रीकृष्णमूर्ति गोविन्दा
अभिषेकप्रिय गोविन्दा,रामानुजनुज गोविन्दा२७
स्वयंप्रकाशा गोविन्दा, सर्वतारणा गोविन्दा
नित्यशुभप्रद गोविन्दा,परमदयालु गोविन्दा२८
नित्याद्रिनिलय गोविन्दा,पद्मनाभहरि गोविन्दा
अंजनादिशा गोविन्दा,शेषाद्रिनिलया गोविन्दा२९
तिर्मलनायक गोविन्दा,तुलसीमाला गोविन्दा
शांताकारा गोविन्दा,वेंकुटवासा गोविन्दा३०
भ्रगुमुनिपूजित गोविन्दा, पुण्यस्वरूपा गोविन्दा
श्रीचक्रभूषण गोविन्दा,नंदकधारी गोविन्दा३१
त्रिनामधारी गोविन्दा,भाग्यशीतला गोविन्दा
भक्तवत्सला गोविन्दा,पदमावतीसा गोविन्दा३२
पदममनोहर गोविन्दा, आनंदनिलया गोविन्दा
नागेन्द्रभूषण गोविन्दा,मंजीरमंडित गोविन्दा३३
तुलसीमालाप्रिया गोविन्दा,श्रीनिर्मलाकार गोविन्दा
महानुभावा गोविन्दा,महालक्ष्मीनाभा गोविन्दा३४
निर्गुणरूपा गोविन्दा,अभयप्रदाय गोविन्दा
योगेन्द्रन्ज्या गोविन्दा,कृपासागर गोविन्दा३५
चरणसुंदर गोविन्दा,श्रीपुरुषोत्तम गोविन्दा
गोकुल कृष्ण गोविन्दा,श्रीचंद्रहासा गोविन्दा३६
नारायणाच्युत गोविन्दा,गोविन्दनामा गोविन्दा
श्रीविष्णुदेवा गोविन्दा,श्रीदामोदर गोविन्दा३७
श्रीनरसिंहा गोविन्दा,श्रीरामचंद्र गोविन्दा
जगतपतिहरि गोविन्दा,मल्यरूपा गोविन्दा३८
सर्वतसमर्थ गोविन्दा,वेदरक्षक गोविन्दा
वेदरूपा गोविन्दा,वेदधारी गोविन्दा३९
वेदपुरुषा गोविन्दा,श्रीकमलाप्रिया गोविन्दा
कल्याणप्रिय गोविन्दा,रमणीयनाभा गोविन्दा४०
दरिद्रपोषक गोविन्दा,दानवीरा गोविन्दा
धर्मरक्षणा गोविन्दा,त्रिमलवासा गोविन्दा४१
श्रीश्रीनिवासा गोविन्दा,भक्ततारका गोविन्दा
आश्रितपक्षा गोविन्दा,वैजयंतीमाला गोविन्दा४२
भिक्षुकसमस्तुत गोविन्दा,स्त्रीपुरुषा गोविन्दा
शिवकेशवमूर्ति गोविन्दा,हरिरामप्रिय गोविन्दा४३
निखिललोकेसा गोविन्दा,नित्यरक्षक गोविन्दा
रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करे ज्ञानचंद बूंदीवाल
श्रीश्रीनिवासा गोविन्दा,श्रीवेंकटेसा गोविन्दा-टेर
गोविन्दा हरि गोविन्दा,वेंकटरमना गोविन्दा४

जय श्री राधे !!
जय श्री कृष्णा !!
जय श्री राधे कृष्णा !!
जय जय श्री यशोदानंदन !!
श्री राधा कृष्णाय नमः !!: श्री कृष्ण:शरणम् मम !!

!! श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी !!
|| हे नाथ नारायण वासुदेवाय !!

Wednesday 5 April 2017

श्री रामाष्टकम्‌


भजॆ विशॆष सुंदरं समस्त पापखंडनम्‌ ।
स्वभक्त चित्त रंजनं सदैव राममध्वयम्‌ ॥१॥

जटाकलापशॊभितं समस्त पापनाशकम्‌ ।
स्वभक्तभीति भंजनं भजॆह राममद्वयम्‌ ॥२॥

निजस्वरूपबॊधकं कृपाकरं भवापहम्‌ ।
समं शिवं निरंजनम भजॆह राममद्वयम्‌ ॥३॥

सहप्रपंचकल्पितं ह्यनावरूप वास्तवम्‌ ।
निराकृतिं निरामयं भजॆह राममद्वयम्‌ ॥४॥

निष्प्रपंच निर्विकल्प निर्मलं निरामयम्‌ ।
चिदॆकरूप संततं भजॆह राममद्वयम्‌ ॥५॥

भवाब्धिपॊतरूपकं ह्यशॆष दॆहकल्पितम्‌ ।
गुणाकरं कृपाकरं भजॆह राममद्वयम्‌ ॥६॥

महासुवाक्यबॊधकैर्विराज मानवाक्पदै: ।
परब्रह्मव्यापकं भजॆह राममद्वयम्‌ ॥७॥

शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम्‌ ।
विराजमानदैशिकम भजॆह राममद्वयम्‌ ॥८॥

रामाष्टकं पठति य: सुकरं सुपुण्यम्‌
व्यासॆन भाषितमिदं शृणुतॆ मनुष्य: ॥९॥

विद्यां श्रीयं विपुल सौख्यमनंतकीर्तिम्‌
संप्राप्य दॆहविलयॆ लभतॆ च मॊक्षम्‌ ॥१०॥

॥इति श्री व्यास विरचित रामाष्टकम संपूर्णम्‌ ॥

Tuesday 4 April 2017

सीखोँ

  • फूलो से हँसना सीखोँ , भौरोँ से गुनगुनाना ।
  • सूरज किरणोँ से सीखो. जगना और जगाना ।।
  • मुर्गे की बोली से सीखो, प्रातकाल उठ जाना ।
  • मेँहदी के पत्तो से सीखो , घिस घिसकर रंग लाना ।।
  • आग और धुएँ से सीखो , ऊँची मंजिल पाना ।
  • मछली के जीवन से सीखो , धर्म हेतु मर जाना ।।
  • फल वाले बृक्षोँ से सीखो , धन पाकर झुक जाना ।
  • पतझड़ वृक्षो से सीखो , दुःख मेँ न घबड़ाना ।।
  • पृथ्वी से सहना सीखो , वायु से सब समाना ।।
  • मेघो से बरसना सीखो, व्यासदि से सीखो जो चाहो कल्याना ।।

मन तड़पत हरी दर्शन को आज

मन तड़पत हरी दर्शन को आज
मोरे तुम बिन बिगरे सगरे काज
बिनती करत हूँ, रखियो लाज
मन तड़पत.....😭😭

तुमरे द्वार का मैं हूँ जोगन
हमरी ओर नज़र कब होगी
सुनो मोरे ब्याकूल मन का बाज
मन तड़पत .....😭😭

बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दिजो दान हरी गुण गाऊँ
सब गुणी जन पे तुमरा राज
मन तड़पत......😭😭

मुरली मनोहर आस ना तोडो
दुख भंजन मोरा साथ
ना छोड़ो मोहे दर्शन भिक्षा
दे दो आज......😭😭

सहेली सुनु सोहिलो रे !

सहेली सुनु सोहिलो रे !
सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो सब जग आज ।
पूत सपूत कौसिला जायो, अचल भयो कुल-राज ।। १ ।।
चैत चारु नौमी तिथि सितपख, मध्य-गगन-गत भानु ।
नखत जोग ग्रह लगन भले दिन मंगल-मोड़-निधान ।। २ ।।
ब्योम, पवन, पावक, जल, थल, दिसि दसहु सुमंगल-मूल ।
सुर दुंदुभी बजावहिं, गावहिं, हरषहिं, बरषहिं फूल ।। ३ ।।
भूपति-सदन सोहिलो सुनि बाजैं गहगहे निसान ।
जहँ-तहँ सजहिं कलस धुज चामर तोरन केतु बितान ।। ४ ।।
सींचि सुगंध रचैं चौकें गृह-आँगन गली-बजार ।
दल फल फूल दूब दधि रोचन, घर-घर मंगलचार ।। ५ ।।
सुनि सानंद उठे दसस्यंदन सकल समाज समेत ।
लिये बोलि गुर-सचिव-भूमिसुर, प्रमुदित चले निकेत ।। ६ ।।
जातकरम करि, पूजि पितर-सुर, दिये महिदेवन दान ।
तेहि औसर सुत तीनि प्रगट भए मंगल, मुद, कल्यान ।। ७ ।।
आनँद महँ आनंद अवध, आनंद बधावन होइ ।
उपमा कहौं चारि फलकी, मोहिं भलो न कहै कबि कोइ ।। ८ ।।
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
को कहि सकै अवधबासिनको प्रेम-प्रमोद-उछाह ।
सारद सेस-गनेस-गिरीसहिं अगम निगम अवगाह ।। २४ ।।
सिव-बिरंचि-मुनि-सिद्ध प्रसंसत, बड़े भूप के भाग ।
तुलसिदास प्रभु सोहिलो गावत उमगि-उमगि अनुराग ।। २५ ।।
भावार्थ : अरी सखी ! सोहिला (बधाईके गीत) तो सुन । अहा ! आज सारे जगत् में सोहिला-ही-सोहिला हो रहा है । आज कौसल्याने एक सपूत बालकको जनम दिया है, जिससे उसका कुल और राज अविचल हो गया है ।१। आज चैत्र शुक्ला नवमी तिथि है, सूर्यदेव मध्य आकाशमें प्रकाशमान हो रहे हैं, आजके शुभ दिनमें नक्षत्र, योग, ग्रह और लग्न सभी अच्छे हैं और आजका दिन मंगल और मोदका घर है ।२। आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और दसों दिशाएँ मंगलमूल हो रही हैं तथा सुरगण दुन्दुभी बजाकर गाते और प्रसन्न होकर फूलोंकी वर्षा करते हैं ।३। महाराज दशरथके घर सोहिला होता सुन सब ओर नक्कारोंकी गम्भीर ध्वनि होने लगी है तथा जहाँ-तहाँ कलश, दवाजा, चँवर, तोरण, पताका और मण्डप सजाये जा रहे हैं ।४। घर, आँगन, गली और बाजारोंको सुगन्धित जलसे सींचकर उनमें चौक पूरे जा रहे हैं तथा घर-घरमें पत्र, पुष्प, फल, दूध, दही और रोली आदि सामग्रियोंसे मंगलाचार हो रहा है ।५। पुत्रजन्मका समाचार सुन महाराज दशरथ सम्पूर्ण राजदरबारके सहित उठ खड़े हुए और गुरु, मन्त्री एवं ब्राह्मणोंको बुलाकर प्रसन्नतापूर्वक महलकी ओर चल पड़े ।६। वहाँ पुत्रका जातकर्म-संस्कार कर पितृगण और देवताओंकी पूजा की तथा ब्राह्मणोंको दान दिया । इसी समय उनके मंगल, आनन्द और कल्याणस्वरूप तीन पुत्र और उत्पन्न हुए ।७। आज अयोध्यामें आनन्दमें आनन्द हो गया और चारों तरफ आनन्दका ही बधावा हो रहा है । यदि मैं उन्हें [अर्थ, धर्म, काम और मोक्षरूप] चार फलोंकी उपमा दूँ तो मुझे कोई कवि भला नहीं कहेगा ।८। xxxxxxxx अवधवासियोंके इस समयके प्रेम, प्रमोद और उत्साहका वर्णन कौन कर सकता है ? वह शारदा, शेष, गणेश और भगवान् शंकरकी भी पहुँचके बाहर है और वेद भी उसका पार नहीं पा सकते ।२४। महाराज दशरथके सौभाग्यकी शिव, ब्रह्मा, मुनि और सिद्धगण भी प्रशंसा कर रहे हैं । इस समय तुलसीदास भी प्रेमसे उमँग-उमँगकर प्रभुका सोहेला गा रहा है ।

Monday 3 April 2017

भए प्रगट कृपाला

श्रीराम प्रकटोत्सव की शुभ कामनाएं

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ॥

दोहा :

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥

भावार्थ:- दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए । मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई । नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे । इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए ॥ दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी- हे अनंत ! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूँ । वेद और पुराण तुम को माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित बतलाते हैं । श्रुतियाँ और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं ॥ वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह (भरे) हैं । वे तुम मेरे गर्भ में रहे- इस हँसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है) । जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए । वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो (भगवान के प्रति पुत्र भाव हो जाए) ॥ माता की वह बुद्धि बदल गई, तब वह फिर बोली- हे तात ! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, (मेरे लिए) यह सुख परम अनुपम होगा । (माता का) यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया । (तुलसीदासजी कहते हैं-) जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्री हरि का पद पाते हैं और (फिर) संसार रूपी कूप में नहीं गिरते ॥

ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया । वे (अज्ञानमयी, मलिना) माया और उसके गुण (सत्‌, रज, तम) और (बाहरी तथा भीतरी) इन्द्रियों से परे हैं । उनका (दिव्य) शरीर अपनी इच्छा से ही बना है (किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं) ॥

Sunday 2 April 2017

मेरे मन के धन तुम ही हो, तुम ही मेरे तन के श्वास



।। श्री हरि ।।

मेरे मन के धन तुम ही हो, तुम ही मेरे तन के श्वास।
आश्रय एक, भरोसा तुम ही, तुम ही एकमात्र विश्वास॥
मैं अति दीन सर्वथा सब विधि, हूँ अयोग्य असमर्थ मलीन।
नहीं तनिक बल-पौरुष, आश्रय अन्य नहीं, सब साधन-हीन॥
नहीं जानता भुक्ति-मुक्ति मैं, नहीं जानता है क्या बन्ध।
एक तुम्हारे सिवा कहीं भी मेरा रह न गया सबन्ध॥
नहीं जानता तुम कैसे हो, क्या हो, नहीं जानता तव।
तुम मेरे हो, मेरे ही’, बस तुमसे ही मेरा अपनत्व॥
दीनोंको आदर देने, उनको अपनानेका नित चाव-
रहता तुम्हें, तुम्हारा ऐसा सहज विलक्षण मृदु स्वभाव॥
इस ही निज स्वभाववश तुम दौड़े आते दीनोंके द्वार।
उन्हें उठाकर गले लगाते, करते उन्हें स्व-जन स्वीकार॥
जैसे शिशु मलभरा, न धो सकता गंदा मल किसी प्रकार।
नहीं जानता मल भी क्या है, केवल माँको रहा पुकार॥
शिशुकी करुण पुकार सहज सुन, स्नेहमयी माँ आ तत्काल।
मल धो-पोंछ स्व-कर कर देती स्तन्य-सुधा दे उसे निहाल॥
वैसे ही तुम आकर उसके हरते पाप-ताप त्रयशूल।
हृदय लगा उल्लासभरे मुख, देते स्नेह-सुधा सुखमूल॥
करते उसे परम पावन तुम, पूजनीय सबका सब ठौर।
धन्य तुम्हारी दीनबन्धुता! धन्य स्वभाव सकल सिरमौर॥
तब भी मानव दीन न बनता, नहीं छोड़ता वह अभिमान।
इसीलिये वचित रह जाता, कृपासुधासे कृपानिधान!
पूर्ण दैन्यका भाव जगा दो, पूर्ण बना दो अज अमान।
मातृपरायण शिशु-सा उसे बना दो, करुणाकर भगवान!
जिससे वह पा जाये सहज कृपामृत-सागरका संधान।
डूबा उसमें रहे निरन्तर, करता रहे सदा रसपान॥

पूज्य हनुमानप्रसादजी पोद्दार संग्रह: पद-रत्नाकर
नारायण । नारायण । नारायण । नारायण ।

ठुकरा दो या प्यार करो



ठुकरा दो या प्यार करो
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देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो