राग भीमपलासी-ताल कहरवा
हे नाथ ! तुम्हीं सबके मालिक, तुम ही सबके रखवारे हो ।
तुम ही सब जग में व्याप रहे विभु ! रूप अनेकों धारे हो ।।
तुम ही नभ-जल-थल-अग्नि तुम्हीं, तुम सूरज-चाँद-सितारे हो ।
यह सभी चराचर है तुममें, तुम ही सबके ध्रुवतारे हो ।।
* * *
हम महामूढ़ अज्ञानी-जन प्रभु ! भव-सागर में डूब रहे ।
नहिं नेक तुम्हारी भक्ति करें, मन मलिन विषय में खूब रहे ।।
सत्संगति में नहिं जायँ कभी, खल-संगति में भरपूर रहे ।
सहते दारुण दुख दिवस-रैन, हम सच्चे सुख से दूर रहे ।।
* * *
तुम दीनबन्धु, जग-पावन हो, हम दीन-पतित अति भारी हैं ।
है नहीं जगत में ठौर कहीं, हम आये शरण तुम्हारी हैं ।।
हम पड़े तुम्हारे हैं दरपर, तुमपर तन-मन-धन वारे हैं ।
अब कष्ट हरो हरि, हे हमरे ! हम निंदित निपट दुखारे हैं ।।
* * *
इस टूटी-फूटी नैया को, भवसागर से खेना होगा ।
फिर निज हाथों से नाथ ! उठाकर, पास बिठा लेना होगा ।।
हे अशरण-शरण ! अनाथनाथ ! अब तो आश्रय देना होगा ।
हमको निज चरणों का निश्चित नित दास बना लेना होगा ।।
हे नाथ ! तुम्हीं सबके मालिक, तुम ही सबके रखवारे हो ।
तुम ही सब जग में व्याप रहे विभु ! रूप अनेकों धारे हो ।।
तुम ही नभ-जल-थल-अग्नि तुम्हीं, तुम सूरज-चाँद-सितारे हो ।
यह सभी चराचर है तुममें, तुम ही सबके ध्रुवतारे हो ।।
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हम महामूढ़ अज्ञानी-जन प्रभु ! भव-सागर में डूब रहे ।
नहिं नेक तुम्हारी भक्ति करें, मन मलिन विषय में खूब रहे ।।
सत्संगति में नहिं जायँ कभी, खल-संगति में भरपूर रहे ।
सहते दारुण दुख दिवस-रैन, हम सच्चे सुख से दूर रहे ।।
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तुम दीनबन्धु, जग-पावन हो, हम दीन-पतित अति भारी हैं ।
है नहीं जगत में ठौर कहीं, हम आये शरण तुम्हारी हैं ।।
हम पड़े तुम्हारे हैं दरपर, तुमपर तन-मन-धन वारे हैं ।
अब कष्ट हरो हरि, हे हमरे ! हम निंदित निपट दुखारे हैं ।।
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इस टूटी-फूटी नैया को, भवसागर से खेना होगा ।
फिर निज हाथों से नाथ ! उठाकर, पास बिठा लेना होगा ।।
हे अशरण-शरण ! अनाथनाथ ! अब तो आश्रय देना होगा ।
हमको निज चरणों का निश्चित नित दास बना लेना होगा ।।