Tuesday 26 December 2017

राग काफी—ताल दीपचंदी

राग काफी—ताल दीपचंदी

केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम!   देखूँ एक तुम्हारी ओर।
अर्पण कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त, विभोर॥
प्रभो!   एक बस, तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार।
प्राणोंके तुम प्राण, आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥
भला-बुरा, सुख-दु:ख, शुभाशुभ मैं, न जानता कुछ भी नाथ! 
जानो तुम्हीं, करो तुम सब ही, रहो निरन्तर मेरे साथ॥
भूलूँ नहीं कभी तुमको मैं, स्मृति ही हो बस, जीवनसार।
आयें नहीं चित्त-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥
एकमात्र तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक।
एक प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित सङ्गी एक॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार

राधे-श्याम् राधे-श्याम् ।राधा-माधव राधे-श्याम् ॥
ईश-रमेश राधे-श्याम् ।केशव सुन्दर  मेघ-श्याम् ॥
वसुदेव-सुत राधे-श्याम् ।शेष-सुशयन मेघ-श्याम् ॥
पाण्डव-प्राण राधे-श्याम् ।खाण्डव-दहन  मेघ-श्याम् ॥
पाण्डव-रक्षक राधे-श्याम् ।कौरव-शिक्षक मेघ-श्याम् ॥
निगमागोचर राधे-श्याम् ।अगणित-महिमा-मेघ-श्याम् ॥
मुरळी-मनोहर राधे-श्याम् ।पवन-पुरेश  मेघ-श्याम् ॥



Tuesday 14 November 2017

ध्यान रखो

ध्यान रखो प्रभुके भक्तोंका, होय कभी अपमान नहीं ।
ध्यान रखो जीवनमें होवें, दुर्गुण दोष प्रधान नहीं ।
ध्यान रखो मनके मन्दिरसे, हों प्रभु अन्तर्धान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। १ ।।
ध्यान रखो हरिके सुमिरन बिन, बीते समय ललाम नहीं ।
ध्यान रखो दुष्कर्म बुद्धिसे, जीवन हो अधरगन नहीं ।
ध्यान रखो सत्कर्म धर्मसे, रहे कामीका काम नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। २ ।।
ध्यान रखो जीवनको जीतें, मृषा मोह मद मान नहीं ।
ध्यान रखो हो विनय भावका, जीवनमें अवसान नहीं ।
ध्यान रखो प्रभु भक्ति बिना हो, शिभित विभव महान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। ३ ।।
ध्यान रखो जीवन हो जगमें, केवल स्वार्थ-प्रधान नहीं ।
ध्यान रखो अपमान अयशमें, होय कभी मन म्लान नहीं ।
ध्यान रखो छूटे प्रभु पदमें, श्रद्धाका सोपान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। ४ ।।
ध्यान रखो जीवनमें होवे, प्रभु तज अन्य प्रधान नहीं ।
ध्यान रखो प्रभु प्राप्ति बिना हो, जीवनका अवसान नहीं ।
ध्यान रखो अब पुनर्जन्मका, आगे बने विधान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। ५ ।।
ध्यान लगे भगवान् का, बने लोक परलोक ।
‘हरिदास’ नर धन्य हो, पाकर परमालोक ।।
- स्वामी श्रीनर्मदानन्दजी सरस्वती ‘हरिदास’

Wednesday 4 October 2017

श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार

श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार—श्री राधा के प्रति
(राग वागेश्री-तीन ताल)
राधे ! तू ही चित्तरंजनी, तू ही चेतनता मेरी।
तू ही नित्य आत्मा मेरी, मैं हूँ बस, आत्मा तेरी॥
तेरे जीवनसे जीवन है, तेरे प्राणोंसे हैं प्राण।
तू ही मन, मति, चक्षु, कर्ण, त्वक्‌, रसना, तू ही इन्द्रिय-घ्राण॥
तू ही स्थूल-सूक्ष्म इन्द्रियके विषय सभी मेरे सुखरूप।
तू ही मैं, मैं ही तू बस, तेरा-मेरा सबन्ध अनूप॥
तेरे बिना न मैं हूँ, मेरे बिना न तू रखती अस्तित्व।
अविनाभाव विलक्षण यह सबन्ध, यही बस, जीवन-तत्त्व॥

                                       (१४)
श्रीराधाके प्रेमोद्गार—श्रीकृष्णके प्रति
(राग वागेश्री-तीन ताल)
तुम अनन्त सौन्दर्य-सुधा-निधि, तुममें सब माधुर्य अनन्त।
तुम अनन्त ऐश्वर्य-महोदधि, तुममें सब शुचि शौर्य अनन्त॥
सकल दिव्य सद्‌गुण-सागर तुम लहराते सब ओर अनन्त।
सकल दिव्य रस-निधि तुम अनुपम, पूर्ण रसिक, रसरूप अनन्त॥
इस प्रकार जो सभी गुणोंमें, रसमें अमित असीम अपार।
नहीं किसी गुण-रसकी उसे अपेक्षा कुछ भी किसी प्रकार॥
फिर मैं तो गुणरहित सर्वथा, कुत्सित-गति, सब भाँति गँवार।
सुन्दरता-मधुरता-रहित कर्कश कुरूप अति दोषागार॥
नहीं वस्तु कुछ भी ऐसी, जिससे तुमको मैं दूँ रसदान।
जिससे तुम्हें  रिझाऊँ, जिससे करूँ तुम्हारा पूजन-मान॥
एक वस्तु मुझमें अनन्य आत्यन्तिक है विरहित उपमान।
’मुझे सदा प्रिय लगते तुम’-यह तुच्छ किंतु अत्यन्त महान॥
रीझ गये तुम इसी एक पर, किया मुझे तुमने स्वीकार।
दिया स्वयं आकर अपनेको, किया न कुछ भी सोच-विचार॥
भूल उच्चता भगवत्ता सब सत्ताका सारा अधिकार।
मुझ नगण्यसे मिले तुच्छ बन, स्वयं छोड़ संकोच-सँभार॥
मानो अति आतुर मिलनेको, मानो हो अत्यन्त अधीर।
तत्त्वरूपता भूल सभी नेत्रोंसे लगे बहाने नीर॥
हो व्याकुल, भर रस अगाध, आकर शुचि रस-सरिताके तीर।
करने लगे परम अवगाहन, तोड़ सभी मर्यादा-धीर॥
बढ़ी अमित, उमड़ी रस-सरिता पावन, छायी चारों ओर।
डूबे सभी भेद उसमें, फिर रहा कहीं भी ओर न छोर॥
प्रेमी, प्रेम, परम प्रेमास्पद-नहीं ज्ञान कुछ, हु‌ए विभोर।
राधा प्यारी हूँ मैं, या हो केवल तुम प्रिय नन्दकिशोर॥
-नित्यलीलालीन श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार भाईजी

Tuesday 3 October 2017

श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार—श्री राधा के प्रति

श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार—श्री राधा के प्रति
(राग भैरवी-तीन ताल)
राधा ! तुम-सी तुम्हीं एक हो, नहीं कहीं भी उपमा और।
लहराता अत्यन्त सुधा-रस-सागर, जिसका ओर न छोर॥
मैं नित रहता डूबा उसमें, नहीं कभी ऊपर आता।
कभी तुम्हारी ही इच्छासे हूँ लहरोंमें लहराता॥
पर वे लहरें भी गाती हैं एक तुम्हारा रम्य महत्त्व।
उनका सब सौन्दर्य और माधुर्य तुम्हारा ही है स्वत्व॥
तो भी उनके बाह्य रूपमें ही बस, मैं हूँ लहराता।
केवल तुम्हें सुखी करनेको सहज कभी ऊपर आता॥
एकछत्र स्वामिनि तुम मेरी अनुकपा अति बरसाती।
रखकर सदा मुझे संनिधिमें जीवनके क्षण सरसाती॥
अमित नेत्रसे गुण-दर्शन कर, सदा सराहा ही करती।
सदा बढ़ाती सुख अनुपम, उल्लास अमित उरमें भरती॥
सदा सदा मैं सदा तुम्हारा, नहीं कदा को‌ई भी अन्य।
कहीं जरा भी कर पाता अधिकार दासपर सदा अनन्य॥
जैसे मुझे नचा‌ओगी तुम, वैसे नित्य करूँगा नृत्य।
यही धर्म है, सहज प्रकृति यह, यही एक स्वाभाविक कृत्य॥

                                            (१६)
श्रीराधाके प्रेमोद्गार—श्रीकृष्णके प्रति
(राग भैरवी तर्ज-तीन ताल)
तुम हो यन्त्री, मैं यन्त्र, काठकी पुतली मैं, तुम सूत्रधार।
तुम करवा‌ओ, कहला‌ओ, मुझे नचा‌ओ निज इच्छानुसार॥
मैं करूँ, कहूँ, नाचूँ नित ही परतन्त्र, न को‌ई अहंकार।
मन मौन नहीं, मन ही न पृथक्‌, मैं अकल खिलौना, तुम खिलार॥
क्या करूँ, नहीं क्या करूँ-करूँ इसका मैं कैसे कुछ विचार ?
तुम करो सदा स्वच्छन्द, सुखी जो करे तुम्हें  सो प्रिय विहार॥
अनबोल, नित्य निष्क्रिय, स्पन्दनसे रहित, सदा मैं निर्विकार।
तुम जब जो चाहो, करो सदा बेशर्त, न को‌ई भी करार॥
मरना-जीना मेरा कैसा, कैसा मेरा मानापमान।
हैं सभी तुम्हारे ही, प्रियतम ! ये खेल नित्य सुखमय महान॥
कर दिया क्रीड़नक  बना मुझे निज करका तुमने अति निहाल।
यह भी कैसे मानूँ-जानूँ, जानो तुम ही निज हाल-चाल॥
इतना मैं जो यह बोल गयी, तुम ज्ञान रहे-है कहाँ कौन ?
तुम ही बोले भर सुर मुझमें मुखरा-से मैं तो शून्य मौन॥
-नित्यलीलालीन श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार - भाईजी

Sunday 1 October 2017

राग शिवरजनी-तीन ताल

श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार—श्री राधा के प्रति

मेरा तन-मन सब तेरा ही, तू ही सदा स्वामिनी एक।
अन्योंका उपभोग्य न भोक्ता है कदापि, यह सच्ची टेक॥
तन समीप रहता न स्थूलतः, पर जो मेरा सूक्ष्म शरीर।
क्षणभर भी न विलग रह पाता, हो उठता अत्यन्त अधीर॥
रहता सदा जुड़ा तुझसे ही, अतः बसा तेरे पद-प्रान्त।
तू ही उसकी एकमात्र जीवनकी जीवन है निर्भ्रान्त॥
हु‌आ न होगा अन्य किसीका उसपर कभी तनिक अधिकार।
नहीं किसीको सुख देगा, लेगा न किसीसे किसी प्रकार॥
यदि वह कभी किसीसे किंचित्‌ दिखता करता-पाता प्यार।
वह सब तेरे ही रसका बस, है केवल पवित्र विस्तार॥
कह सकती तू मुझे सभी कुछ, मैं तो नित तेरे आधीन।
पर न मानना कभी अन्यथा, कभी न कहना निजको दीन॥
इतने पर भी मैं तेरे मनकी न कभी हूँ कर पाता।
अतः बना रहता हूँ संतत तुझको दुःखका ही दाता॥
अपनी ओर देख तू मेरे सब अपराधोंको जा भूल।
करती रह कृतार्थ मुझको वे पावन पद-पंकजकी धूल॥


तुमसे सदा लिया ही मैंने, लेती-लेती थकी नहीं।
अमित प्रेम-सौभाग्य मिला, पर मैं कुछ भी दे सकी नहीं॥
मेरी त्रुटि, मेरे दोषोंको तुमने देखा नहीं कभी।
दिया सदा, देते न थके तुम, दे डाला निज प्यार सभी॥
तब भी कहते-’दे न सका मैं तुमको कुछ भी, हे प्यारी !
तुम-सी शील-गुणवती तुम ही, मैं तुमपर हूँ बलिहारी’॥
क्या मैं कहूँ प्राणप्रियतमसे, देख लजाती अपनी ओर।
मेरी हर करनीमें ही तुम प्रेम देखते नन्दकिशोर !॥

Sunday 24 September 2017

राग मालकोस-तीन ताल

श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार—श्री राधा के प्रति
                (राग मालकोस-तीन ताल)
राधिके ! तुम मम जीवन-मूल।
अनुपम अमर प्रान-संजीवनि, नहिं कहुँ को‌उ समतूल॥
जस सरीर में निज-निज थानहिं सबही सोभित अंग।
किंतु प्रान बिनु सबहि यर्थ, नहिं रहत कतहुँ को‌उ रंग॥
तस तुम प्रिये ! सबनि के सुख की एकमात्र आधार।
तुहरे बिना नहीं जीवन-रस, जासौं सब कौ प्यार॥
तुहारे प्राननि सौं अनुप्रानित, तुहरे मन मनवान।
तुहरौ प्रेम-सिंधु-सीकर लै करौं सबहि रसदान॥
तुहरे रस-भंडार पुन्य तैं पावत भिच्छुक चून।
तुम सम केवल तुमहि एक हौ, तनिक न मानौ ऊन॥
सो‌ऊ अति मरजादा, अति संभ्रम-भय-दैन्य-सँकोच।
नहिं को‌उ कतहुँ कबहुँ तुम-सी रसस्वामिनि निस्संकोच।
तुहरौ स्वत्व अनंत नित्य, सब भाँति पूर्न अधिकार।
काययूह निज रस-बितरन करवावति परम उदार॥
तुहरी मधुर रहस्यम‌ई मोहनि माया सौं नित्य।
दच्छिन बाम रसास्वादन हित बनतौ रहूँ निमिा॥

राग रागेश्वरी-ताल दादरा

श्रीराधाके प्रेमोद्गार—श्रीकृष्णके प्रति
(राग रागेश्वरी-ताल दादरा)
हौं तो दासी नित्य तिहारी।
प्राननाथ जीवनधन मेरे, हौं तुम पै बलिहारी॥
चाहैं तुम अति प्रेम करौ, तन-मन सौं मोहि अपना‌औ।
चाहैं द्रोह करौ, त्रासौ, दुख दे‌इ मोहि छिटका‌औ॥
तुहरौ सुख ही है मेरौ सुख, आन न कछु सुख जानौं।
जो तुम सुखी हो‌उ मो दुख में, अनुपम सुख हौं मानौं॥
सुख भोगौं तुहरे सुख कारन, और न कछु मन मेरे।
तुमहि सुखी नित देखन चाहौं निस-दिन साँझ-सबेरे॥
तुमहि सुखी देखन हित हौं निज तन-मन कौं सुख देऊँ।
तुमहि समरपन करि अपने कौं नित तव रुचि कौं सेऊँ॥
तुम मोहि ’प्रानेस्वरि’, ’हृदयेस्वरि’, ’कांता’ कहि सचु पावौ।
यातैं हौं स्वीकार करौं सब, जद्यपि मन सकुचावौं॥

Saturday 23 September 2017

षोडश गीत

  श्रीराधा-माधव-रस-सुधा 
                     
                 महाभाव रसराज वन्दना 
दो‌उ चकोर, दो‌उ चंद्रमा, दो‌उ अलि, पंकज दो‌उ।
दो‌उ चातक, दो‌उ मेघ प्रिय, दो‌उ मछरी, जल दो‌उ॥
आस्रय-‌आलंबन दो‌उ, बिषयालंबन दो‌उ।
प्रेमी-प्रेमास्पद दो‌उ, तत्सुख-सुखिया दो‌उ॥
लीला-‌आस्वादन-निरत, महाभाव-रसराज।
बितरत रस दो‌उ दुहुन कौं, रचि बिचित्र सुठि साज॥
सहित बिरोधी धर्म-गुन जुगपत नित्य अनंत।
बचनातीत अचिन्त्य अति, सुषमामय श्रीमंत॥
श्रीराधा-माधव-चरन बंदौं बारंबार।
एक तव दो तनु धरें, नित-रस-पाराबार॥

क्या तन माँजता रे

क्या तन माँजता रे
आखिर माटी में मिल जाना...

माटी ओढ़न माटी पहरन
माटी का सिरहाना
माटी का एक बुत बनाया
जामे भंवर लुभाना....
क्या तन माँजता रे
आखिर माटी में मिल जाना....

फाटा चोला भया पुराना
कब लगि सीवें दरजी
कबीर चोला अमर भया
संत जो मिल गये दरजी...
क्या तन माँजता रे...

माल पड़ा साहूकार का
चोर लगा सरकारी
एक दिन मुश्किल आन पड़ेगी
महसूल भरेगा भारी....
क्या तन माँजता रे...

चुन चुन लकड़ी महल बनाया
बंदा कहे घर मेरा
ना घर तेरा ना घर मेरा
चिड़िया रैन बसेरा....
क्या तन माँजता रे....

माटी कहे कुम्हार से
तू क्यों रौंदे मोहि
एक दिन ऐसा आयेगा
मैं रौंदूँगी तोहि....
क्या तन माँजता रे
आखिर माटी में मिल जाना....
*🙏 जय श्रीकृष्ण🙏*

Tuesday 19 September 2017

स्वरचित


आप जानते हो मेरे राघव कि मेरा क्या हाल है...
आपकी एक प्रेम भरी नजर और मेरी पूरी ज़िन्दगी का सवाल है.... 
हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

तुम जानत मैं अधम कुलीना... 
फिर भी तुमने जीवन दीन्हा....
अब तुम ही सही दिशा दो...
ओ राघव मेरे सिया प्यारे.... 

भव सागर में फँसा हुआ हूँ.... 
हर पल हर क्षण तडप रहा हूँ..... 
अपने कर कमलन से पकड लो... ओ मेरे अवध सुकुमारे.... 

हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

ना हम कीन्हो भजन और ध्याना.. ना हम दीन्हो भिक्षुक दाना.... 
एक बार आकर हमें सिखाई दो... ओ राघव मेरे सिया प्यारे... 

कैसे करें हम संतन सेवा.... 
कैसे करें गुरुदेव की सेवा... 
बस आकर करके दिखाई दो... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे.... 

हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

प्रभु जी आओ देर न लगाओ... 
आके हमको सब कुछ सिखाओ..
मोहे अपने दासों का दास बनाई दो.. 
ओ राघव मेरे सिया प्यारे... 

सिया जू इनको जल्दी पठाओ....
हर पल हर क्षण व्यर्थ ना गँवाओ..
मोहे शीघ्र दासानुदास बनाई दो...
ओ सिया राघव प्राण प्यारे... 

सिया जू मोरी इतनी अर्ज लगाइ दो.. 
करुणा निधान की स्वीकृति दिलाई दो... 
मैं धरूँ शीश पायन तुम्हारे.. 

हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

जय जय श्री सीताराम

राम-नामकी अगाध महिमा।


हर-हृदयाब्धि-समुद्भव, रामनाम सदरत्न ।
भक्ति-भाग्यप्रद भासुर, ज्ञान-ज्योति चिदरत्न ॥

अब नहिं भूलूँ नामको, नाम सहारा मोहिं ।
आप कृपा करि कीजिये, नाम सुहावें मोहिं ॥

पावन हरिको नाम है, रसना है अनुकूल।
जप-ज़प प्यारे मधुमय, नाम हरत त्रैशूल ॥

रसमय हैं हरिनाम अति, सुलभ सरल निज़तन्त्र ।
पातक हरत समस्त अरु, जीवन होत स्वतन्त्र ॥

रक्षक, शिक्षक-तारक, मारक मोह, विकार ।
रामनाम कलिकालमें, केवल एक अधार ॥

मन बस करना सहज नहिं, मैं दुर्बल मतिमन्द ।
आप सम्भालो रामजी, नाम रटूँ निर्द्वन्द॥

रामनाम जननी-जनक, रामनाम परिवार ।
राम-नाम धन-वैभव, राम-नाम सुखसार ॥

॥ ओम नारायण ॥

Wednesday 16 August 2017

हे प्रभु श्री कृष्ण

ना रईस हूँ , ना अमीर हूँ ...
न मैं बादशाह हूँ ना वजीर हूँ ...

.................... हे प्रभु श्री कृष्ण ..................

तेरा इश्क है मेरी सल्तनत ,
मैं उसी सल्तनत का फ़क़ीर हूँ .......

खूबसूरत है वो लब ........ जिन पर , 
केवल श्री कृष्ण नाम ......की चर्चा है !!

खूबसूरत है ............ वो दिल जो , 
केवल श्री कृष्ण के लिये धडकता है !!

खूबसूरत है वो जज़बात जो ,
श्री कृष्ण संग की भावनाओं को समझ जाए !!

खूबसूरत है.....वो एहसास जिस में , 
श्री कृष्ण प्रेम ......की मिठास हो जाए !!

खूबसूरत हैं ....... वो बाते जिनमे ,
श्री कृष्ण ......... की बाते शमिल हो !! 

खूबसूरत है.......वो आँखे जिनमें , 
श्री कृष्ण के ..... दर्शन की प्यास है !!

खूबसूरत है .... वो हाथ जो
श्री कृष्ण की सेवा में लगे रहते है !! 

खूबसूरत है........... वो सोच जिसमें ,केवल श्री कृष्ण की ही सोच हो !! 

खूबसूरत हैं .......... वो पैर जो , 
दिन रात केवल प्यारे श्री कृष्ण की तरफ बढ़ते है !! 

खूबसूरत हैं ...... वो आसूँ ,
जो केवल प्यारे श्री कृष्ण के लिये बहते हैं !! 

खुबसुरत हैं ....... वो कान ,
जो श्री कृष्ण नाम का गुणगान सुनते है !! 

खुबसुरत है वो शीश ........ जो
श्री कृष्ण के चरणों में नमन को झुकता है 
जय श्री कृष्णा 
............श्री राधे ............

Saturday 29 July 2017

हे नाथ

राग भीमपलासी-ताल कहरवा

हे नाथ ! तुम्हीं सबके मालिक, तुम ही सबके रखवारे हो ।
तुम ही सब जग में व्याप रहे विभु ! रूप अनेकों धारे हो ।।

तुम ही नभ-जल-थल-अग्नि तुम्हीं, तुम सूरज-चाँद-सितारे हो ।
यह सभी चराचर है तुममें, तुम ही सबके ध्रुवतारे हो ।।

* * *

हम महामूढ़ अज्ञानी-जन प्रभु ! भव-सागर में डूब रहे ।
नहिं नेक तुम्हारी भक्ति करें, मन मलिन विषय में खूब रहे ।।

सत्संगति में नहिं जायँ कभी, खल-संगति में भरपूर रहे ।
सहते दारुण दुख दिवस-रैन, हम सच्चे सुख से दूर रहे ।।

* * *

तुम दीनबन्धु, जग-पावन हो, हम दीन-पतित अति भारी हैं ।
है नहीं जगत में ठौर कहीं, हम आये शरण तुम्हारी हैं ।।

हम पड़े तुम्हारे हैं दरपर, तुमपर तन-मन-धन वारे हैं ।
अब कष्ट हरो हरि, हे हमरे ! हम निंदित निपट दुखारे हैं ।।

* * *

इस टूटी-फूटी नैया को, भवसागर से खेना होगा ।
फिर निज हाथों से नाथ ! उठाकर, पास बिठा लेना होगा ।।

हे अशरण-शरण ! अनाथनाथ ! अब तो आश्रय देना होगा ।
हमको निज चरणों का निश्चित नित दास बना लेना होगा ।।

Friday 14 July 2017

जय श्रीवृन्दावन

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय रजरानी
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति यमुने रसरानी

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति  गिरिराज गोवर्धन
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय इंद्रमद मर्दन

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय बरसाना धाम
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय श्रीराधा नाम

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय गह्वरवन
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय मधुबन

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय ब्रज लतापतन
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय युगलचरण

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय युगल किशोर
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय प्रेमरस कोर

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति परमप्रेम धाम
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
मन आठों पहर जपत अभिराम

जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जिव्हा रटे क्षण क्षण यही नाम
जयति जयति जय श्रीवृन्दावन
जयति जयति जय परम सुखधाम

Friday 23 June 2017

श्री राधा कृष्णाय नमः


चन्द्रमुखी चंचल चितचोरी,
जय श्री राधा
सुघड़ सांवरा सूरत भोरी,
जय श्री कृष्ण
श्यामा श्याम एक सी जोड़ी
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

पंच रंग चूनर, केसर न्यारी,
जय श्री राधा
पट पीताम्बर, कामर कारी,
जय श्री कृष्ण
एकरूप, अनुपम छवि प्यारी
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

चन्द्र चन्द्रिका चम चम चमके,
 जय श्री राधा
मोर मुकुट सिर दम दम दमके,
 जय श्री कृष्ण
जुगल प्रेम रस झम झम झमके
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

कस्तूरी कुम्कुम जुत बिन्दा,
जय श्री राधा
चन्दन चारु तिलक गति चन्दा,
 जय श्री कृष्ण
सुहृद लाड़ली लाल सुनन्दा
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

घूम घुमारो घांघर सोहे,
जय श्री राधा
कटि कटिनी कमलापति सोहे,
 जय श्री कृष्ण
कमलासन सुर मुनि मन मोहे
*श्री राधा कृष्णाय नमः*

रत्न जटित आभूषण सुन्दर,
जय श्री राधा
कौस्तुभमणि कमलांचित नटवर,
जय श्री कृष्ण
तड़त कड़त मुरली ध्वनि मनहर
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

राधा राधा कृष्ण कन्हैया ,
जय श्री राधा
भव भय सागर पार लगैया ,
जय श्री कृष्ण .
मंगल मूरति मोक्ष करैया
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

मन्द हसन मतवारे नैना,
जय श्री राधा
मनमोहन मनहारे सैना,
जय श्री कृष्ण
मृदु मुसकावनि मीठे बैना
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

श्री राधा भव बाधा हारी,
जय श्री राधा
संकत मोचन कृष्ण मुरारी,
जय श्री कृष्ण
एक शक्ति, एकहि आधारी
*श्री राधा कृष्णाय नमः*

जग ज्योति, जगजननी माता,
 जय श्री राधा
जगजीवन, जगपति, जग दाता,
 जय श्री कृष्ण
जगदाधार, जगत विख्याता
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

राधा, राधा, कृष्ण कन्हैया,
जय श्री राधा
भव भय सागर पार लगैया,
जय श्री कृष्ण
मंगल मूरति, मोक्ष करैया
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

सर्वेश्वरी सर्व दुःखदाहनि,
जय श्री राधा
त्रिभुवनपति, त्रयताप नसावन,
 जय श्री कृष्ण
परमदेवि परमेश्वर पावन
*श्री राधा कृष्णाय नम:*

त्रिसमय युगल चरण चित ध्यावे,
 जय श्री राधा
सो नर जगत परम पद पावे ,
जय श्री कृष्ण
श्री राधाकृष्ण "भक्त" मन भावे
*श्री राधा कृष्णाय नम :* 
 *श्री राधे श्री कृष्ण श्री राधे श्री कृष्ण*

हे नाथ


मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...
हे! पावन परमेश्वर मेरे, 
मन ही मन शरमाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

तुने मुझको जग में भेजा, 
निर्मल देकर काया...
आकर के संसार में मैंने, 
इसको दाग लगाया...
जनम जनम की मैली चादर, 
कैसे दाग छुड़ाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

निर्मल वाणी पाकर तुझसे, 
नाम न तेरा गाया...
नयन मूंद कर हे परमेश्वर, 
कभी न तुझको ध्याया...
मन वीणा की तारे टूटी, 
अब क्या गीत सुनाऊं....
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

नेक कमाई करी न कोई, 
जग की माया जोड़ी...
जोड़ के नाते इस दुनिया से, 
तुम संग प्रीति तोड़ी...
करम गठरिया सिर पे राखे, 
पग भी चल न पाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

इन पैरों से चल के तेरे , 
मंदिर कभी न आया...
जहाँ जहां हो पूजा तेरी, 
कभी न शीश झुकाया...
हे हरिहर मैं हार के आया, 
अब क्या हार चढ़ाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

हे! पावन परमेश्वर मेरे, 
मन ही मन शरमाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

*💙 जय श्री कृष्ण*

Thursday 22 June 2017

सोलह श्रृंगार

सीता जी ने पूछा मैया से
बताओ ---- माँ एक सार !
विवाहोपरांत --- हर नारी
क्यों करती सोलह श्रृंगार!!

मैया ने -----मीठी वाणी में 
समझाई ------- हर बात !
सोलह श्रृंगार से पूर्ण होती
धरा पर ------- नारी जात !!

मेंहदी ---को हर समय
अपने हाथों में रचाना !
कर्मो  की  लालिमा से
सारा जग -- महकाना !!

आँखों में प्रेम बसा कर
काजल  उनमें लगाना !
भलै सम्पति खो जाये
पर , शील जल बचाना!!

सूर्य की भाँति प्रकाशवान हो
छोड़ देना -- शरारत -- जिद्दी !
इसिलिए तो ---- नारी लगाये 
अपने माँथे पर ------- बिन्दी !!

मन को  काबू में  करके 
लगा देना उस पर लगाम !
नारी की नाक की नथनी
देती है - यह सुंदर पैगाम !!

बूरे कर्म से परहेज करना
यश कमाना ---- भरपूर !
पतिव्रत धर्म का  पालन 
यह सिखलाता है -सिंदूर !!

खुद की प्रशंसा सुनने की
मत करना तुम ---- भूल !
हर  हाल  में खुश  रहना 
शिक्षा यह देता कर्णफूल !!

सबके मन को मोहने वाले
कर्म करना तू ------ बाला !
सुख - दुख में --सम रहना 
यह सीख देती मोहन माला !!

सीघा-सादा जीवन रखना
मत करना तुम ----- फंद !
इसिलिए तो -- नारी बाँधे
अपने हाथ में -- बाजूबंद !!

कभी किसी में छल न करना
रुपया हो या -------- गल्ला !
कमर में --- लटकाये रखना
अपना --------- सुंदर छल्ला !!

बड़े - बूढ़ो की सेवा करके
कर देना उनको --- कायल !
घर-आँगन छनकाती रहना 
अपने पैरों की ----- पायल !!

छोटो को  आशीष  देना
खबरदार-जो उनसे रुठी !
हाथों की --अँगुलियों में 
पहने रखना ---- अँगूठी !!

परिवार को बिछड़ने न देना
रखना सबको ------- साथ !
पैरों की बिछिया --- प्यारी
बतलाती ------- यह बात !!

कठोर वाणी का त्याग कर
करना सबका ---- मंगल !
जीवन को - रंगो से भरना 
पहने रखना ------ कंगन !!

कमरबंद की  भाँति तुम
सेवा में ------- बँध जाना !
पति के संग - --संग तुम
पूरे परिवार को अपनाना !!

Wednesday 21 June 2017

कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब

तर्ज़:कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब

सेठ कहे तुझे सेठ साँवरा,दीन कहे तुझे दीनानाथ
तुम्हीं बताओ सेठ साँवरा,हो या तुम दीनों के नाथ ||

सेठ भरे तेरी हाजरी,करते हैं तेरा मनुवार ..
दीन करे तेरी चाकरी,आते दर पर ले परिवार
एक भरोसा तेरा मुझको,लाज मेरी है तेरे हाथ ||1||

मैं जो तुझे बुलाना चाहूँ,घर आँगन में मेरे श्याम ...
सोच-सोच कर मैं शरमाऊं,कहाँ बिठाऊंगा तुझे श्याम
नहीं बिछाने को है चादर, नहीं है सर पर मेरे छात ||2||

सुदामा के तन्दुल भाये,झूठे बैर शबरी के खाये .........
दुर्योधन का महल त्याग कर,विदुराईन के घर तुम आये
कब आओगे घर तुम मेरे,'टीकम' से तुम करने बात ||3||

जै श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णायसमर्पणं

तुमको लाखों प्रणाम

||श्रीहरिः||

हरि का नाम जपानेवाले, हरि का नाम जपानेवाले,
गीता पाठ पढ़ानेवाले, गीता रहस्य बतानेवाले,
जग की चाह छुड़ानेवाले, प्रभु से संबंध जुड़ानेवाले,
प्रभुकी याद दिलानेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥टेक॥
जग में महापुरुष नहिं होते, सिसक सिसक कर सब ही रोते,
आँसू पोंछनेवाले, सबका आँसू पोंछनेवाले,
सबकी पीड़ा हरनेवाले, सबकी जलन मिटानेवाले,
सबको गले लगानेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥१॥
जनम मरन के दुख से मारे, भटक रहे हैं लोग बिचारे,
पथ दरशानेवाले, प्रभु का पथ दरशानेवाले,
प्रभु का मार्ग दिखानेवाले, सत का संग करानेवाले,
हरि के सनमुख करनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥२॥
उच्च नीच जो भी नर नारी, संशय हरनेवाले, सबका संशय हरनेवाले,
सबका भरम मिटानेवाले, सबकी चिन्ता हरनेवाले,
सबको आसिस देनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥३॥
हम तो मूरख नहीं समझते, संतन का आदर नहिं करते,
नित समझानेवाले, हमको नित समझानेवाले,
हमसे नहिं उकतानेवाले, हमपर क्रोध न करनेवाले,
हमपर किरपा करनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥४॥
अब तो भवसागर से तारों, शरण पड़े हम बेगि उबारो,
पार लगानेवाले, हमको पार लगानेवाले,
हमको पवित्र करनेवाले, हमपर करुणा करनेवाले,
हमको अपना कहनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥५॥

Tuesday 13 June 2017

कृष्णा तुम पर क्या लिखूं !


कृष्णा तुम पर क्या लिखूं ! कितना लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं !

प्रेम का सागर लिखूं या चेतना का चिंतन लिखूं !
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं !

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय चराने वाला लिखूं !
कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का रखवाला लिखूं।

पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगश्वर लिखूं !
विश्व चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं !

जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं !
देवकी की गोद लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं !

गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।
रुक्मणी का श्री लिखूं या सत्यभामा-श्रीतम लिखूं।

देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।
वासुदेव का तनय लिखूं या नन्दगोपाल लिखूं।

नदियों सा बहता लिखूं या सागर सा गहरा लिखूं।
झरनों सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।

आत्मतत्व वेत्ता लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं !
स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

Saturday 10 June 2017

जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे

जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

खग मृग व्याध पषान विटप जड़, यवन कवन सुर तारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज, सब माया-विवश बिचारे ।
तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

Friday 9 June 2017

जमाने को रंग बदलते देखा

मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा हे,
उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है।

वो जो चलते थे तो,
शेर के चलने का होता था गुमान।

उनको भी पाँव उठाने के लिए
सहारे को तरसते देखा है।

जिनकी नजरों की चमक,
देख सहम जाते थे लोग।

उन्ही नजरों को,
बरसात की तरह रोते देखा है।

जिनके हाथों के जरा से,
इशारे से टूट जाते थे पत्थर।

उन्ही हाथों को पत्तों की तरह,
थर-थर काँपत हुएे देखा है।

जिनकी आवाज़ से कभी बिजली के,
कड़कने का होता था भरम।

उनके होठों पर भी जबरन,
चुप्पी का ताला लगा देखा है।

ये जवानी,ये ताकत,ये दौलत,
सब कुदरत की इनायत है।

इनके रहते हुए भी इंसान को,
बेजान हुआ देखा है।

अपने आज पर इतना ना इतराना मेरे यारों,
वक्त की धारा में अच्छे अच्छों को मजबूर हुआ देखा है।

 कर सको तो किसी को खुश करो,
दुःख देते हुए तो हजारों को देखा है।

Thursday 8 June 2017

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम.....

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम.....

चरण पादुका लेकर सब से पूछ रहे रसखान॥
वो नन्ना सा बालक है, सांवली सी सूरत है,बाल घुंघराले उसके, पहनता मोर मुकुट है।

नयन उसके कजरारे, हाथ नन्ने से प्यारे,बांदे पैजन्यिया पग में, बड़े दिलकश हैं नज़ारे।

घायल कर देती है दिल को, उसकी इक मुस्कान॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

समझ में आया जिसका पता तू पूछ रहा है,वो है बांके बिहारी, जिसे तू ढूंढ रहा है।

कहीं वो श्याम कहाता, कहीं वो कृष्ण मुरारी,कोई सांवरिया कहता, कोई गोवर्धन धारी।

नाम हज़ारो ही हैं उसके कई जगह में धाम॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

मुझे ना रोको भाई, मेरी समझो मजबूरी,श्याम से मिलने देदो, बहुत है काम ज़रूरी।

सीडीओं पे मंदिर के दाल कर अपना डेरा,कभी तो घर के बाहर श्याम आएगा मेरा।

इंतज़ार करते करते ही सुबह से हो गई श्याम॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

जाग कर रात बिताई भोर होने को आई,तभी उसके कानो में कोई आहात सी आई।

वो आगे पीछे देखे, वो देखे दाए बाए,वो चारो और ही देखे, नज़र कोई ना आए।

झुकी नज़र तो कदमो में ही बैठा नन्ना श्याम॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

ख़ुशी से गदगद होकर गोद में उसे उठाया,लगा कर के सीने से बहुत ही प्यार लुटाया।

पादुका पहनाने को पावं जैसे ही उठाया,नज़ारा ऐसा देखा कलेजा मूह को आया।

कांटे चुभ चुभ कर के घायल हुए थे नन्ने पावं॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

खबर देते तो खुद ही तुम्हारे पास मैं आता,ना इतने छाले पड़ते ना चुबता कोई काँटा।

छवि जैसी तू मेरी बसा के दिल में लाया,उसी ही रूप में तुमसे यहाँ मैं मिलने आया।

गोकुल से मैं पैदल आया तेरे लिए बृजधाम॥भाव के भूखे हैं भगवान्…

श्याम की बाते सुनकर कवि वो हुआ दीवाना,कहा मुझको भी देदो अपने चरणों में ठिकाना।

तू मालिक है दुनिया का यह मैंने जान लिया है,लिखूंगा पद तेरे ही आज से ठान लिया है।

श्याम प्रेम रस बरसा ‘सोनू’ खान बना रसखान॥भाव के भूखे हैं भगवान्…

कांटो पर चलकर के रखते अपने भगत का मान।
भाव के भूखे हैं मेरे भगवान्....

सुधाधारा


 जगत में साधु-संग प्रथम साधन ।
           कहते है भगवान रामनारायण ॥  

कुछ न भुवन में,  साधु-संग के समान ।
          साधु-संग गुण पाते महापापी त्राण ॥   
साधु-संग पाये जीव नामरुपी वित्त ।
        जपते ही जपते उसका भर जाये चित्त ॥

नाम के नशे में झुले,  हँसे नाचे गाये ।
      परमानन्द सागर में,  डुबे और उतराये ॥

साधु का सहारा नाम सर्व-धन सार ।
     नाम के ही बल से करते पापी का उद्धार॥

मरुभूमि में मिले न जल कभी जैसे मानो ।
     जगत में भी सुख की आशा वैसे ही जानो॥

सकल असार यदि समझा है मन ।
        शीघ्र ही शरण लो साधु के चरण ॥

साघु कृपा हो यदि नहीं और भय ।
     गाओ दास सीताराम जय नाम जय ॥
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  - श्रीश्री सीतारामदास ओंकारनाथदेव -

Saturday 3 June 2017

श्रीगङ्गास्तोत्र

॥ श्रीगङ्गास्तोत्र ॥
.
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरल तरङ्गे ।
शङ्कर मौलिविहारिणि विमले मम मति रास्तां तव पद कमले ॥ १॥
.
भागिरथि सुखदायिनि मातः तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्नानम् ॥ २॥
.
हरि पद पाद्य तरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृति भारं कुरु कृपया भव सागर पारम् ॥ ३॥
.
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४॥
.
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डित गिरिवरमण्डित भङ्गे ।
भीष्म जननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ ५॥
.
कल्पलतामिव फलदाम् लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवति कृततरलापाङ्गे ॥ ६॥
.
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ ७॥
.
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८॥
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रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमति कलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९॥
.
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तट निकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १०॥
.
वरमिह मीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनः तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ ११॥
.
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२॥
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येषां हृदये गङ्गा भक्तिः तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकन्ता पञ्झटिकाभिः परमानन्दकलित ललिताभिः ॥ १३॥
.
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदम् विमलं सारम् ।
शङ्करसेवक शङ्कर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तम् ॥ १४॥
.
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं गङ्गास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्री राधे कीशोरी जूं

करदो कृपा की इक नजर हे लाडली राधे ,
हे लाडली राधे , हे लाडली राधे , 
भटकाओ न यूं दर बदर हे लाडली राधे
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

किसको कहुँ मैं अपना कोई नहीं है मेरा ,
मतलब के नाते तोड़े पकड़ा है दामन तेरा
पल पल मैं तड़पा इस कदर हे लाडली राधे ,
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

हमराही थे जो कल तक देते नहीं दिखाई ,
गैरों से कैसा शिकवा अपनों से चोट खाई
तडपे है दिल दर्दे जिगर हे लाडली राधे ,
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

थक सा गया हूँ लाडली मंज़िल मिली नहीं ,
पतझड़ सा मेरा जीवन कोई कली खिली नहीं
मेरी आके लेना तुम खबर हे लाडली राधे ,
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

कोई नहीं है मेरा श्यामा तुम्ही हो मेरी ,
जीवन ये बीता जाए अब तुम करो न देरी .
भटके न चित्र विचित्र डगर हे लाडली राधे ,
भटकाओ न यूं दर बदर *हे लाडली राधे...*

*करदो कृपा की इक नजर हे लाडली राधे ,*
*हे लाडली राधे , हे लाडली राधे ,* 🌸

*जय श्री राधे.