Tuesday 14 November 2017

ध्यान रखो

ध्यान रखो प्रभुके भक्तोंका, होय कभी अपमान नहीं ।
ध्यान रखो जीवनमें होवें, दुर्गुण दोष प्रधान नहीं ।
ध्यान रखो मनके मन्दिरसे, हों प्रभु अन्तर्धान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। १ ।।
ध्यान रखो हरिके सुमिरन बिन, बीते समय ललाम नहीं ।
ध्यान रखो दुष्कर्म बुद्धिसे, जीवन हो अधरगन नहीं ।
ध्यान रखो सत्कर्म धर्मसे, रहे कामीका काम नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। २ ।।
ध्यान रखो जीवनको जीतें, मृषा मोह मद मान नहीं ।
ध्यान रखो हो विनय भावका, जीवनमें अवसान नहीं ।
ध्यान रखो प्रभु भक्ति बिना हो, शिभित विभव महान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। ३ ।।
ध्यान रखो जीवन हो जगमें, केवल स्वार्थ-प्रधान नहीं ।
ध्यान रखो अपमान अयशमें, होय कभी मन म्लान नहीं ।
ध्यान रखो छूटे प्रभु पदमें, श्रद्धाका सोपान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। ४ ।।
ध्यान रखो जीवनमें होवे, प्रभु तज अन्य प्रधान नहीं ।
ध्यान रखो प्रभु प्राप्ति बिना हो, जीवनका अवसान नहीं ।
ध्यान रखो अब पुनर्जन्मका, आगे बने विधान नहीं ।
छूट जाय सब कुछ पर छूटे, रसनासे हरि नाम नहीं ।। ५ ।।
ध्यान लगे भगवान् का, बने लोक परलोक ।
‘हरिदास’ नर धन्य हो, पाकर परमालोक ।।
- स्वामी श्रीनर्मदानन्दजी सरस्वती ‘हरिदास’

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