Tuesday 30 May 2017

सांवरिया थारा नाम हज़ार

सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी,
कुंकु पतरी रे श्याम प्रेम पतरी...

घनश्याम थारा नाम हज़ार  कैसे लिखूं कुंकु पतरी,
सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी...

कोई कहे यशोदा रो, कोई कहे देवकी रो,
कोई कहे नन्द जी रो लाल, कैसे लिखूं कुंकुं पतरी...

सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी...

कोई कहे गोकुल वारो, कोई कहे मथुरा वारो,
कोई कहे द्वारिका रो नाथ, कैसे लिखूं कुंकुं पतरी...

सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी...

कोई कहे राधा पति, कोई कहे रुकमणि पति,
कोई कहे गोपियाँ रो श्याम, कैसे लिखूं कुंकुं पतरी...

सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी...

कोई कहे माखन चोर, कोई कहे नंदकिशोर,
नरसिंग तो करे पुकार, कैसे लिखूं कुंकुं पतरी...

सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी...

कोई कहे गइयां वालो, कोई कहे बंशी वालो,
कोई कहे मदन गोपाल, कैसे लिखूं कुंकुं पतरी...

सांवरिया थारा नाम हज़ार कैसे लिखूं कुंकु पतरी...

सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी,
कुंकु पतरी रे श्याम प्रेम पतरी...

घनश्याम थारा नाम हज़ार  कैसे लिखूं कुंकु पतरी,
सांवरिया थारा नाम हज़ार, कैसे लिखूं कुंकु पतरी...

प्रियाजू

प्रियाजू! प्रीति-प्रसादी पाऊँ।
जनम-जनम की चेरि तिहारी, 
      पद-पंकज परिहरि कित जाऊँ॥
यह मन चंचरीक चरनन को, 
       और कतहुँ कोउ ठाउँ न पाऊँ।
रसत रहत सन्तत रति-रस यह,
       यही परम निज भाग्य मनाऊँ॥
कृपा-कोर नित रहै तिहारी, 
         पिय की प्यारी बात सुनाऊँ।
कबहुँ न न्यारी होहुँ छाँह तजि, 
        तव मृदु मूरति हृदय बसाऊँ॥
प्रीतम की हो प्रान-पोसिनी, 
     हौं हूँ जुगल-जोति नित ध्याऊँ।
जब-जब मिलन चलहु लालन सों 
       आगे चलि-चलि गेल बताऊँ॥
सुमति-कुमति कछु और न जानों, 
      तुव रति-रसकों नित्य ललाऊँ।
हिये होत अब यही लालसा, 
        मति न रहै रति हो रह जाऊँ॥
लोक जाय परलोक जाय अब, 
       सुगति-कुगति की कुमति भुलाऊँ।
एकमात्र तुम हो मेरी गति, 
        तुव रति-रस में ही रम जाऊँ॥



*जय श्री हित वृंदावन विश्राम धाम*

Sunday 28 May 2017

हे बाँके बिहारी गिरधारी,


बोल बांके बिहारी लाल की जय
.
हे बाँके बिहारी गिरधारी,
हो प्यार तुम्हारे चरणोँ मेँ।
.
नटवर मधुसूदन बनवारी,
हो प्यार तुम्हारे चरणोँ मेँ।
हे बाँके बिहारी.....
.
मैँ जग से ऊब चुका मोहन,
सब जग को परख चुका मोहन।
अब शरण तिहारी गिरधारी,
हो प्यार तुम्हारे चरणोँ मेँ।
हे बाँके बिहारी.....
.
भाई, सुत, दारौँ, कुटुम्बीजन,
मैँ, मेरे के सिगरे बन्धन।
सब स्वार्थ के हैँ संसारी,
हो प्यार तुम्हारे चरणोँ मेँ।
हे बाँके बिहारी.....
.
पापी, आजापी, नर-नारी,
इन चरणोँ से जिनकी यारी।
उनके हरि हो तुम भयहारी,
हो प्यार तुम्हारे चरणोँ मेँ।
हे बाँके बिहारी.....
.
मैँ सुख मेँ रहुँ, चाहे दुख मेँ रहुँ,
काँटोँ मेँ रहुँ, फूलोँ मेँ रहुँ।
वन मेँ, घर मेँ, जहाँ भी रहुँ,
हो प्यार तुम्हारे चरणोँ मेँ।
हे बाँके बिहारी.....

Saturday 27 May 2017

तुम्हें मनाता हूँ

त्याग तपस्या वश में नहीं है 
भक्तिपथ को गाता हूँ     ।
भाग्य-कर्म से फूटा जग में 
श्रीहरि ! तुम्हें मनाता हूँ  ।।
किस-किसको मैं गिनूँ यहाँ पर 
एक दो नहीं हजारों हैं  ।
विपदा क्लेश के किस्से ढेरों 
चित में मची पुकारें हैं   ।।
श्रीमन्नारायण रक्षा करदो 
गज को जैसे बचाया था  ।
भवसागर में ग्राह है जकड़ा 
कहो क्यों कर मुझे बनाया था ।।
राम मेरे मेरा जीवन भी 
अब खुशियों के नाम करो  ।
पाऊँ परमानन्द कृपा मैं 
सुभाग-कर्म वरदान धरो  ।।
वदलो कुअंक भाल मेरे से 
नितनव उल्लास सुमंगल हो ।
रोग व्याधि और भय शंका की 
मेरे जीवन जगह न हो  ।।

जय सीयाराम जय-जय सीयाराम
हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरेराम हरेराम राम राम हरे हरे ।।
मंगल भवन अमंगल हारी ।
द्रवहु सो दशरथ अजिरबिहारी ।।

Friday 26 May 2017

हरि तोरे दर्शन केहि बिधि पाऊँ



हरि तोरे दर्शन केहि बिधि पाऊँ ||
घर गृहस्थिन में मैं उलझ रह्यो हूँ,
भजन नहीं कर पाऊँ ||
ज्यों बैठूँ तोहि सुमिरन को,
इत उत भटक के जाऊँ ||
थिर न रहे यह पापी मनवा,
केहि बिधि एहि समझाऊँ ||
फिर भी चाहत तोरे दरस की,
हिय में मैं अकुलाऊँ ||
मुझ पे दीनदयाल कृपा करो,
रो रो मैं पूछूँ उपाय ||
हरि तोरे दर्शन केहि बिधि पाऊँ ||

ʝaï ֆɦʀɛɛ kʀɨֆɦռa
!! Զเधे Զเधे !!

Wednesday 24 May 2017

हरि ॐ

*कितने करिशमाई हैं ये शब्द* 
           *" हरि ॐ  "*

*हरि ॐ  कहने से*-- मन हलका हो जाता है !

*हरि ॐ  कहने से--*नकारात्मक विचार नहीं आते !

*हरि ॐ कहने से--* पीड़ा शांत हो जाती है !

*हरि ॐ  कहने से---* खुशी उमड़ पड़ती है !

*हरि ॐ  कहने से--*गम कोसो दूर चले जाता है !

*हरि ॐ कहने से --* मान सम्मान बढ जाता है !

*हरि ॐ कहने से--*  ताज़गी का एह्सास होता है !

*हरि ॐ कहने से--* बिगड़े काम बनते हैं !

*हरि ॐ कहने से--* भजन सुमरन समृद्धि आती है !

*हरि ॐ  कहने से--*मानसिक बल मिलता है !
*हरि ॐ   कहने से--* मोक्ष और मुक्ति मिलती है !

*हरि ॐ कहने से--*  हर सपने साकार होते हैं !!



    हरि ॐ 

प्यारे गर तू प्रभु का प्यारा हो गया

II श्री हरिः शरणम् II 

प्यारे गर तू प्रभु का प्यारा हो गया,
                 जान ले जहान तेरा सारा हो गया
दीन और अनाथों का दुःख है सहारता,
                  जिसे दीनानाथ का सहारा हो गया
नाचता है फिर प्रभु यहां झट आन कर,
                  जहां जहां भक्त का इशारा हो गया
जिंदगी को काटना भी कठिन था तेरे बिना,
                  पर दीद कीउम्मद में गुजारा हो गया,
खाक सारी में ही बशर मिल गया जो खाक में,
                 वही आसमान का सहारा हो गया।
              
 जय जय श्रीराधे

Tuesday 23 May 2017

राम राम बोल

राम राम बोल प्यारे राम राम बोल~~~
हनुमानजी को पाना है तो राम राम बोल~~~
राम जी के अँग सँग रहते हनुमान है ~~~
जहाँ मेरे राम जी वहाँ हनुमान है~~~
राम राम बोल प्यारे राम राम बोल ~~~
युग युग का राम हनुमान जी का साथ है ~~~
बीर हनुमान के सिर राम जी का हाथ है~~~
राम राम बोल प्यारे राम राम बोल ~~~
हनुमानजी को पाना है तो राम राम बोल~~~
हनुमानजी के नाम र्कीत अपार है~~~
सदा अपने भक्तोँ का करते बेङापार है~~~
जीवन एक सागर है राम नाम नाव है~~~
हनुमानजी को सौँप दो तो नाव लगे पार है~~~
राम राम बोल प्यारे राम राम बोल~~~
हनुमानजी को पाना है तो राम राम बोल~~~
पवन पुत्र श्री हनुमान जी महाराज की जय !!

Monday 22 May 2017

क्या खूब लिखा है

*आहिस्ता  चल  जिंदगी,अभी* 
*कई  कर्ज  चुकाना  बाकी  है* 
*कुछ  दर्द  मिटाना   बाकी  है* 
*कुछ   फर्ज निभाना  बाकी है* 
                   *रफ़्तार  में तेरे  चलने से* 
                   *कुछ रूठ गए कुछ छूट गए* 
                   *रूठों को मनाना बाकी है* 
                   *रोतों को हँसाना बाकी है* 
*कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए* 
*कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए* 
*उन टूटे -छूटे रिश्तों के* 
*जख्मों को मिटाना बाकी है* 
                    *कुछ हसरतें अभी  अधूरी हैं* 
                    *कुछ काम भी और जरूरी हैं* 
                    *जीवन की उलझ  पहेली को* 
                    *पूरा  सुलझाना  बाकी     है* 
*जब साँसों को थम जाना है* 
*फिर क्या खोना ,क्या पाना है* 
*पर मन के जिद्दी बच्चे को* 
*यह   बात   बताना  बाकी  है* 
                     *आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी* 
                     *कई कर्ज चुकाना बाकी    है*
                     *कुछ दर्द मिटाना   बाकी   है*   
                     *कुछ  फर्ज निभाना बाकी है !*..........

कृष्ण की चेतावनी

वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।

मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।

‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।

‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।

‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?

‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’

थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
भीष्म-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!


Saturday 20 May 2017

वृन्दावन

कोई जाये जो वृन्दावन,
         मेरा पैगाम ले जाना,
मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ,
          मेरा प्रणाम ले जाना ।
🌴🌸🌴🌸🌴🌸🌴
ये पूछना मुरली वाले से
        मुझे तुम कब बुलाओगे,
पड़े जो जाल माया के
      उन्हे तुम कब छुडाओगे ।
मुझे इस घोर दल-दल से,
         मेरे भगवान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
🌴🌸🌴🌸🌴🌸🌴
जब उनके सामने जाओ
          तो उनको देखते रहना,
मेरा जो हाल पूछें तो
        ज़ुबाँ से कुछ नहीं कहना ।
बहा देना कुछ एक आँसू
          मेरी पहचान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
🌴🌸🌴🌸🌴🌸🌴
जो रातें जाग कर देखें,
          मेरे सब ख्वाब ले जाना,
मेरे आँसू तड़प मेरी..
        मेरे सब भाव ले जाना ।
न ले जाओ अगर मुझको, 
         मेरा सामान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
🌴🌸🌴🌸🌴🌸🌴
मैं भटकूँ दर ब दर प्यारे,
          जो तेरे मन में आये कर,
मेरी जो साँसे अंतिम हो..
        वो निकलें तेरी चौखट पर ।
‘हरिदासी’ हूँ मैं तेरी..
          मुझे बिन दाम ले जाना॥
🌴🌸🌴🌸🌴🌸🌴
कोई जाये जो वृन्दावन
             मेरा पैगाम ले जाना 
मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ
             मेरा प्रणाम ले जाना ॥
🌴🌸🌴🌸🌴🌸🌴

.        ๑;ु
        ,(-_-),
  '\'''''.\'='-. *Զเधे Զเधे*
     \/..\\,' 
        //"")      *Զเधे Զเधे*
        (\  /   🌹🌹
          \ |,
  जय श्री कृष्णा  

श्री राधिके नमःस्तुते

श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 

प्राणेश्वरी कुंजेश्वरी रासेश्वरी परमेश्वरी ब्रजेश्वरी सुरेश्वरी
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 

आनन्दिनी भानुनन्दिनी सुनन्दिनी संगिनी मृदुले कोमल अंगिनी 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 

हितकारिणी सुखकारिणी सुखसारिणी विस्तारिणी जगत पलनहारिणी 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 

भामिनी सुवासनी कृपलानी दयालिनी कृपालिनी ममपालिनी 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 

हर्षिणी रसवर्षिणी तरंगिणी कृष्णसंगिनी श्यामली नवलरंगिणी 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 
श्री राधिके नमःस्तुते 

!! सब द्वारिन को छाड़िके आयो मैं तेरे द्वार !! 
!! ओ वृषभानु की लाड़ली अब मेरी ओर निहार !! 

!! मुझे चरणों से लगा ले मेरे श्याम मुरली वाले !! 
!! मेरी सांस सांस में है तेरा नाम मुरली वाले !! 

जय श्री राधे !! 
जय श्री कृष्णा !! 
जय श्री राधे कृष्णा !! 
जय जय श्री यशोदानंदन !! 
श्री राधा कृष्णाय नमः !!: श्री कृष्ण:शरणम् मम !! 

!! श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी !! 
|| हे नाथ नारायण वासुदेवाय !!

हरि मैं तो लाख यतन कर हारी

हरि मैं तो लाख यतन कर हारी।
महलन ढूंढा, गिरिबन ढूंढा, ढूंढी दुनिया सारी॥

गोलुक कुंज गली में ढूंढा, ढूंढा वृन्दावन में।
डाल डाल से, फूल पात से, जा पूछा कुंजन में।
बीती की सब कहे हरि ना अब की कहे बनवारी॥

कोई कहे श्री राम है क्या या गौरी काली मैया।
मैं कहू नहीं गोपाल हैं वो एक बन में चरावे गैया॥

उमापति परमेश्वर नहीं, ना नारायण भयहारी।
मीरा का हृदय विहारी, मीरा का हृदय विहारी॥

अंग पीताम्बर मोरे मुकुट, सर माला गले सुहावे।
बहुरूपी बड़े रूप धरे, जिस नाम बुलावो आवे॥

मीरा कहे अब लाज रखो प्रभु आवो मुरली धारी॥

हरे कृष्णा 
जय जय श्री राधे

Friday 19 May 2017

मेरी लाड़ली के जैसा कोई दूसरा नहीं है


जहाँ बरसे कृपा हर पल बरसाना वो यही है।।
ऐसी दयालु जग में, पाओगे ना कही भी,
बे-सहारो को सहारा, वो आसरा यही है,
जहाँ बरसे कृपा हर पल बरसाना वो यही है।।
एक बार जो शरण में, आजाये लाडली के,
जनमो की मिटे भटकन, दरबार वो यही है,
जहाँ बरसे कृपा हर पल बरसाना वो यही है।।
बिगड़े नसीब तुमने, कितनो के है सँवारे,
किस्मत का चमके तारा, वो सितारा भी यही है,
जहाँ बरसे कृपा हर पल बरसाना वो यही है।।
कहे चित्र विचित्र श्यामा, तुम हो दया की सागर,
पागल ने जो दिखाया, वो नज़ारा भी यही है
जहाँ बरसे कृपा हर पल बरसाना वो यही है।।
मेरी लाड़ली के जैसा कोई दूसरा नहीं है,
जहाँ बरसे कृपा हर पल बरसाना वो यही है।।
मेरी लाड़ली के जैसा कोई दूसरा नहीं है

Thursday 18 May 2017

धन धन राधा नाम

धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
धन धन राधा नाम, प्यारो सुन्दर श्याम, 
जय जय श्री हरिवंश दुलारी,जय वृन्दावन धाम
 श्री राधा राधा,श्री राधा राधा,श्री राधा राधा
श्री राधा राधा,श्री राधा राधा,श्री राधा राधा
श्री राधा राधा,श्री राधा राधा,श्री राधा राधा

Friday 12 May 2017

करुणानिधान

करुणानिधान स्वामिनी किशोरी करुणा अब बरसाओ
नाम तिहारा रटूं किशोरी मोहे सेवा योग्य बनाओ |
हूँ निर्धन दो नाम धन अपना श्यामा तुम करुणा की खान
शरण पड़ा हो तेरी राधिके अपनाया है अपना जान...
इस दासी की विनती सुनलो श्यामा मोहे दासी अपनाओ ||1|

तेरे महलों की बनूँ बुहारिन श्यामा नित नित कुञ्ज सजाऊँ
नहीं जानूँ मैं कोई विधि भी किशोरी तुमको कैसे रिझाऊँ
कृपाकोर अब कृपा करो तुम जैसी भी हूँ मुझे अपनाओ ||2||
ब्रजमण्डल की तुम हो स्वामिनी सारे जगत की तुम्हीं आधारा
क्या गुण गाऊँ तेरी रहमत के श्यामा मैंने अपना जीवन वारा
जैसे चाहो तुम रखना मुझको अपनाओ या मुझे ठुकराओ ||3||


जै श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णायसमर्पणं

Thursday 11 May 2017

जागो ! जागो !!

माता नास्ति पिता नास्ति नास्ति बन्धु सहोदरः ।
अर्थे नास्ति गृहं नास्ति, तस्माद् जाग्रत जाग्रत ।।

 इस असार संसार में माता- पिता सगे भाई, धन-सम्पत्ति और गृह आदि स्थायी सत्य नहीं है, इसलिये जागो ! जागो !!

 आशया बध्यते लोको कर्मणा बहुचिंतया ।
आयुः क्षीणं न जानाति, तस्माद् जाग्रत जाग्रत ।।

 यहाँ आशा में बंधे हुए एवं कर्मजाल और चिन्ताओं से घिरे हुए संसार के जीव, अपनी आयु की क्षण-क्षण होने वाली क्षीणता को नहीं जानते, इसलिये जागो ! जागो !!

 कामः क्रोधश्च लोभश्च, देहे तिष्ठन्ति तस्काराः ।
ज्ञानरत्नापहाराय, तस्माद जाग्रत जाग्रत ।।

 इस देह के भीतर घुसे हुए काम, क्रोध, लोभरुपी चोर अमूल्य ज्ञानरत्न का अपहरण कर रहे है, इसलिये जागो ! जागो !!

 जन्मदुःखं जरा दुःखं जायादुःखं पुनः पुनः ।
संसार सागरं दुःखं, तस्माद् जाग्रत जाग्रत ।।

 यहाँ बारम्बार जन्म से लेकर जरावस्था तक स्त्री, पुत्रादि से संबंध में दुःख ही दुःख है । यह संसार ही दुःखो का सागर है, इसलिये जागो ! जागो !!

Wednesday 10 May 2017

राधारमण

*चाँद सा सलोना मुख*

चाँद सा सलोना मुख
लटें घुंघरारी है।
भोएं है कटीली,
आंखें तिरछी कटारी है।
हो याके मधुर रसीले वचन
*हो मेरा या पे अटक गया मन.....*
*हो याको नाम है राधारमण,*
हो मेरा या पे अटक गया मन...

*राधारमण मेरो राधारमण री ....* राधारमण मेरो राधा रमण री।

*गुन्ज माल गले सोहे*
 मुरली अधर पे।
पीत पट झोंटा खाए,
पतली कमर पे।
हो याको चन्दन सा महके बदन,
*हो मेरा या पे अटक गया मन.....*
राधारमण मेरो राधारमण री ..
राधारमण मेरो राधारमण री।

*कनक कड़ोला कर*
पायल रही पाँव में।
रहने दे पिया मोहे,
क़दमों की छाँव में।
हो मेरी लागी है तुमसे लगन,
*हो मेरा या पे अटक गया मन...*
राधारमण मेरो राधारमण री ..
राधारमण मेरो राधारमण री
राधारमण मेरो राधारमण री..
राधारमण मेरो राधारमण री।

वृदांवन

वृदांवन की रोटी,बरसाने की दाल।
        छप्पन भोग में भी नही ऐसा कमाल। 

वृदांवन का आचार। 
        बदल देता है विचार। 

वृदावंन  का पानी। 
        शुद करे वाणी। 

वृदावंन  के फल और फूल। 
        उतार देती है जन्मों -जन्मों की घूल। 

वृदावन की छाया। 
        बदल देती है काया। 

      वृदावंन का रायता। 
        मिलती है चारों और से सहायता।
 
वृदावंन के आम। 
       नई सुबह नई शाम। 

वृदावंन का हलवा। 
       दिखाता है जलवा। 

वृदावन  की सेवा। 
       मिलता है मिश्री और मेवा। 

वृदावंन का स्नान। 
       चारों धाम के तीर्थ के समान। 

वृदावंन  को जो सजाऐ। 
       उस का कुल् सवर जाये।

वृदावंन  का जो सवाली। 
       उसकी हर दिन होली हर रात दीवाली।।
श्री वृन्दावन बिहारी लाल की जय

दो निज चरणों में स्थान

*राधे राधे जी....

*राम, दो निज 👣 चरणों में स्थान,*
*शरणागत अपना जन जान ।।*

अधमाधम मैं पतित पुरातन ।
साधनहीन निराश दुखी मन।
अंधकार में भटक रहा हूँ ।
राह दिखाओ अंगुली थाम।
*राम, दो ...

सर्वशक्तिमय राम जपूँ मैं ।
दिव्य शान्ति आनन्द छकूँ मैं।
सिमरन करूं निरंतर प्रभु मैं।
राम नाम मुद मंगल धाम।
*राम, दो ...

केवल राम नाम ही जानूँ।
और धर्म मत ना पहिचानूँ।
जो गुरु मंत्र दिया सतगुरु ने।
उसमें है सबका कल्याण।
*राम, दो ...

हनुमत जैसा अतुलित बल दो,
पर-सेवा का भाव प्रबल दो ।
बुद्धि, विवेक, शक्ति इतनी दो,
पूरा करूं राम का काम ।
*राम, दो ...

*जय श्री कृष्ण....

Saturday 6 May 2017

आनंद छाये

श्रीहित हरिवंश प्रगटाये वृन्दावन आनंद छाये...
मथुरा निकट बाद ग्राम में प्रकट भए.. ब्रजमंडल में आये..वृन्दावन आनंद छाये...
श्रीव्यास मिश्र जी को देवो बधाई..तारा रानी की कूख सिहाये...वृन्दावन आनंद छाये...
हरि की वंशी ने जनम लियौ है..याते हित हरिवंश कहलाये..वृन्दावन आनंद छाये...
हिलमिल वैष्णव नाचत गावत..सोहर गीत बधाये...वृन्दावन आनंद छाये...
रास विलास श्याम श्यामा को..गाये और दुलराये...वृन्दावन आनंद छाये...
राधावल्लभ लाल जीवन धन..श्रीराधा-राधा गाये..वृन्दावन आनंद छाये...
"गौरदास" आचारज प्रगटे..बार बार बलि जाये...वृन्दावन आनंद छाये...

श्रीवृन्दावन रस-उद्भावक, आद्या रसिकाचार्य, वंशी अवतार, श्री युगल की प्राणप्रिया सहचरी स्वामिनी श्रीहित सजनी जू, अनंत श्रीविभूषित पूज्यपाद श्रीमन्महाप्रभु श्रीहित हरिवंशचन्द्र जू महाराज के प्रकाट्य की सभी की बहुत बहुत बधाई 

जय जय राधावल्लभ श्रीहरिवंश श्रीवृन्दावन श्रीवनचन्द

जय जय श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास

Thursday 4 May 2017

श्रीजानकी जी

श्रीजानकी जी की स्तुति

भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जन हितकारी भयहारी।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी।।
सुन्दर सिंहासन तेहिं पर आसन कोटि हुताशन द्युतिकारी।
सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजै निज -निज कारज करधारी।।
सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमाना समुदाई।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गुन गाई।।
देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़ें सुख बाढ़े उर अधिकाई।
अस्तुति मुनि करहीं आनन्द भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई ।।
ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी।
सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा गुन खानी।।
सिय सन मुनिराई विनय सुनाई समय सुहाई मृदुबानी।
लालनि तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी।।
सुनि मुनिबर बानी सिय मुसकानी लीला ठानी सुखदाई।
सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप बड़भागी उर लाई।।
दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउँ मनलाई।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाई।।

 दोहा- निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भईं सिय आय।
          चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय।।

               ||श्री जनकनन्दिनी की जय||

उठ जाग

उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।

क्यों भूल रहा यह कर्म भूमि, मानव जीवन का यही लक्ष्य,
क्यों विमुख हुआ है तू उससे, कर्त्तव्य जो कि तेरे समक्ष?
तज दे प्रमाद, खो दे विषाद, मत हो निराश, मत हो अधीर।
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।

यह स्वस्थ और सुन्दरर शरीर, जिसमें असीम बल बुद्धि व्याप्त,
तू चाहे तो कर सकता है इसके द्वारा सब सिद्धि प्राप्त,
हो सावधान, साहस-कृपाण लेकर कुभाग्य का वक्ष चीर,
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।

है मान तिलया तूने जिसको विधि के हाथों का लिखा लेख,
तेरे माथे के स्वेद-बिन्दु धो सकते हैं वह अमिट रेख,
वर वीर जाग! भीरुता त्याग, मत व्यर्थ दृगों सेस बहा नीर।
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।

श्रम से सब ही कुछ सम्भव है, दे छोड़ असम्भव का विचार,
निष्काम कर्म का मर्म जान, है इस जीवन का यही सार,
बस कर्मयोग के साधन से, प्रकटा ले फिर सुखमय समीर।
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।