Wednesday 30 December 2015

मनमोहना....मनमोहना...कान्हा सुनो ना...

मनमोहना....मनमोहना...कान्हा सुनो ना...
तुम बिन पाऊं कैसे चैन...
तरसूं तुम्ही को दिन रेन..
छोड़ के अपने काशी- मथुरा आके बसो मोरे नैन
यौम बिन पाऊं कैसे चैन...कान्हा....
तरसूं तुम्ही को दिन- रैन
इक पल उजियारा आये, इक पल अँधियारा छाये,
मन क्यूं ना घबराये, कैसे ना घबराये..
मन जो कोई गाना हाँ अपनी राहों में पाए
कौन दिशा जाए तूम बिन कौन समझाए
रास रचइया वृन्दावन के गोकुल के वाशी
राधा तुम्हरी दासी दरसन को है प्यासी
श्याम सलोने नंदलाला कृष्णा बनवारी
तुम्हरी छवि है न्यारी मैं तो तन- मन हारी
मनमोहना....मनमोहना... कान्हा सुनो ना...
तुम बिन पाऊं कैसे चैन... तरसूं तुम्ही को दिन रेन..
जीवन इक नदियां है लहरो- लहरो बहती जाए
इसमें मन की नइया डूबे,कभी तर जाए
तुम ना खेवइया हो तो कोई तट कैसे पाए
मझदार बहलाये,तो तुम्हरी शरण आये
हम तुम्हरी शरण आये
मैं हूँ तुम्हारी, है तुम्हारा ये मेरा जीवन
तुमको देखूं मैं ,देखूं कोई दर्पण
बंशी बन जाउंगी,इन होठों की हो जाउंगी
इन सपनो से जल- थल है मेरा मन आँगन
श्री राधा रमण परिवार प्रयास

थोड़ा देता है ज्यादा देता है,

थोड़ा देता है ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता कान्हा देता है |

मांग लो दरबार से ये बहुत बड़ा दानी,
ऐसा मौका मतना चूको मत कर नादानी,
सब कुछ देता है ये कुछ नहीं लेता है |
हमको तो जो कुछ भी देता कान्हा देता है ||

हाजरी दरबार की मैं रोज लगाता हूँ,
सांवरिये का दर्शन करके शीश नवाता हूँ,
क्या~क्या देता है ये क्या नहीं देता है |
हमको तो जो कुछ भी देता कान्हा देता है ||

यशोमती का लाडला मैथुरावाला है,
दीन दुखी को गले लगाता मुरलीवाला है,
खुशियाँ देता है गम हर लेता है |
हमको तो जो कुछ भी देता कान्हा देता है ||


जय श्री कृष्णा
राधे राधे

Tuesday 29 December 2015

प्राणधन श्रीराधारमण लाल मण्डल।।


                     
काया शुद्ध होत जब, ब्रज रज उडि अंग लगे।
माया शुद्ध होत कृष्ण नाम पे लुटाये ते।।
शुद्ध होत कान कथा कीर्तन के श्रवण किये।
नैंन शुद्ध होत दर्श युगल छवि पाये ते।।
हाथ शुद्ध होत श्री ठाकुर की सेवा किये।
पांव शुद्ध होत श्री वृन्दावन जाये ते।।
मस्तक शुद्ध होत श्री राधारमण चरण पडे।
रसना शुद्ध होत श्यामा श्याम गुण गाये ते।।
।। श्री राधारमणाय समर्पणं ।।  

श्रीकृष्ण: शरणं मम:, श्रीकृष्ण: शरणं मम : ।


कदंब के री डाली बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
यमुना के री पाल बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
ब्रज चौरासी कोस बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
कुन्ड कुन्ड की सीढी बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
कमल कमल पर मधुकर बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
डाल डाल पर पक्षी बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
वृन्दावन ना वृक्षों बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
गोकुलिया नी गायां बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
कुन्ज कुन्ज वन उपवन बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
बृज भूमि ना रज कण बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
रास रमत या गोपी बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
श्री धेनु चराता ग्वाला बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
बाजां मा तबला मा बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
शहनाई तम्बूर में बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
नृत्य करती नारी बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
केसर के री क्यारी बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
आकाशे-पाताले बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
चौदह लोक ब्रह्माण्डे बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
चन्द्र सरोवर चौको बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
पत्र पत्र शाखाएँ बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
आम नीम अरु जामुन बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
वनस्पति हरियाली बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
जतीपुरा ना लोग बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
मथुराजी ना चौबे बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
गोवर्धन ना शिखरे बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
गली गली गहवर वन बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
वेणु स्वर संगीत बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
कला करंता मोर बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
पुलिन कन्दरा मधुबन बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
श्री जमुना जी रे लहेरे बोले श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
आमा डालो कोयल बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
तुलसीजी नी क्यारी बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
सर्व जगत मा व्यापक बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
विरही जन ना लिया बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
कृष्ण वियोगी आतुर बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
वल्लभी वैष्णव सर्वे बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
मधुर वीणा वाजिन्तो बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
कुमुदिनी सरोवर मां बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
चन्द्र सूर्य आकाशे बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
तारा गणना मंडल बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
अष्ट प्रहर आनन्दे बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
रोम रोम व्याकुल थई बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
महामंत्र मन माहे बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
युगल चरण अनुरागी बोले – श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
श्रीकृष्ण: शरणं मम:, श्रीकृष्ण: शरणं मम : ।
श्रीकृष्ण: शरणं मम:, श्रीकृष्ण: शरणं मम: ।
जय श्री राधे

जय बजरंगी ||•~•*•~•*• •*•~•*•~•|| जय हनुमान

जय बजरंगी ||•~•*•~•*• •*•~•*•~•|| जय हनुमान

आज मंगलवार है महावीर का वार है यह सच्चा दरबार है |
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे उसका बेडा पार है ||

चैत्र सुदी पूनम मंगल को जन्म वीर ने पाया है |
लाल लंगोटा गदा हाथ में सर पर मुकट सजाया है ||
शंकर का अवतार है...महावीर का वार है...

ब्रह्मा जी से ब्रह्म ज्ञान का बल भी तुमने पाया है ।
राम काज शिवशंकर ने वानर का रूप धराया है ।।
लीला अपरम्पार है...महावीर का वार है...

बालपन में महावीर ने हरदम ध्यान लगाया है |
श्राप दिया ऋषियों ने तुमको बल का ध्यान भुलाया है ||
राम नाम आधार है...महावीर का वार है...

राम जन्म जब हुआ अयोध्या में कैसा नाच नचाया है |
कहा राम ने लक्ष्मण से यह वानर मन को भाया है ||
राम लक्ष्मण से प्यार है...महावीर का वार है...

पंचवटी से सीता को रावण जब लेकर आया है |
लंका में जाकर तुमने माता का पता लगाया है ||
अक्षय को दिया मार है...महावीर का वार है...

मेघनाद ने ब्रह्म पाश तुमको आन फंसाया है |
ब्रह्पाश में फँस करके ब्रह्मा का मान बढाया है ||
बजरंगी की बाँकी मार है...महावीर का वार है...

लंका जलाई आपने रावण भी घबराया है |
श्री राम लखन को आन करके सीता सन्देश सुनाया है ||
सीता शोक अपार है...महावीर का वार है...

शक्ति बाण लग्यो लक्ष्मण के बूटी लेने धाये हैं |
लाकर बूटी लक्ष्मण जी के प्राण बचाये हैं ||
राम लखन का प्यार है...महावीर का वार है...

राम चरण में महावीर ने हरदम ध्यान लगाया है |
राम तिलक में महावीर ने सीना फाड़ दिखाया है ||
सीने में राम दरबार है...महावीर का वार है...

आज मंगलवार है महावीर का वार है यह सच्चा दरबार है |
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे उसका बेडा पार है ||

Saturday 26 December 2015

तर्ज : दिल में हो तुम साँसों में तुम...

सपनों में तू अपनों में तू देखु जिधर तू ही तू...
सांसो में तू धड़कन में तू रग रग में तू है समाया...

फेरता नजरें जिधर तू ही तू आये नज़र,,,
छोड़ तुझको "" सांवरे "" बोल जाउँ मैं तो किधर,,,
फूलों में तू कलियों में तू चारों तरफ तेरी माया...
सपनों में तू अपनों में तू देखु जिधर तू ही तू...

चाहे धरती हो आसमां सबमें तेरा वास है,,,
सबका हारे का सहारा है तू मेरा ये विश्वास है,,,
तू ही मेरा मैं हूँ तेरा सबमें ही तेरी ही छाया...
सपनों में तू अपनों में तू देखु जिधर तू ही तू...

"" श्याम "" कहे जब गाऊँ मैं बांसुरी बजाता है तू,,,
प्यारी धुन पे तेरी सबको नचाता है तू,,,
देखा मैंने सारा जहाँ इस दिल को बस तू ही भाया...
सपनों में तू अपनों में तू देखु जिधर तू ही तू...

सपनों में तू अपनों में तू देखु जिधर तू ही तू...
सांसो में तू धड़कन में तू रग रग में तू है समाया...

खुद को सीख



क्या ? आनी है काम अब , धन - पुत्रादिक भूख।
जबकि काल सिर पर खडा , देह गई है सूख।।

चिंतन हरि के नाम का , ही अब आए काम।
क्योंकि जाएगा साथ में , " नाम " ही "रोटीराम "।।

जब तक काया चल रही , जपले भगवन्नाम।
वरना बहु पछताएगा , यम घर " रोटीराम " ।।

अब जब स्वाँसें कम बचीं , सीख मरण का ढंग।
" रोटीराम " संवाँरते , मृत्यु कथा - सत्संग।।

Sunday 20 December 2015

वह सखि !

वह सखि ! शशधर सुखद सुठार। 
यह सखि ! शुभ्र ज्योत्स्ना-सार॥
वह सखि ! सूर्य ज्योति-दातार। 

यह सखि ! द्युतिमा सूर्याधार॥
वह सखि ! अग्रि देवता ताप। 

यह सखि ! शक्ति दाहिका आप॥
वह सखि ! सागर अति गभीर। 

यह सखि ! जलनिधि जीवन नीर॥
वह सखि ! सुन्दर देह सुठाम।

यह सखि ! चेतन प्राण ललाम॥
वह सखि ! भूषण सुषमा-सार। 

यह सखि ! स्वर्ण भूषणाधार॥
वह सखि ! अतुल-शक्ति बलवान। 

यह सखि ! शक्तिमूल, बल-खान॥
वह सखि ! सदा सुवर्धन रूप। 

यह सखि ! रूपाधार अनूप॥
वह सखि ! अलख निरजन तव। 

यह सखि ! तवाधार महव॥
वह सखि ! मुनि-मोहन सुखधाम। 

यह सखि ! स्वयं मोहिनी श्याम॥
वह सखि ! कला-कुशल रमनीय। 

यह सखि ! स्वयं कला कमनीय॥
वह सखि ! अग-जग-सुख-‌आगार।

 यह सखि ! तत्सुखकी भण्डार॥

पदरत्नाकर

नारायण । नारायण ।

रहकर घर - परिवार में , नहीं

रहकर घर - परिवार में , नहीं डालोगे झाग।
देख हानि सन्तान की , नहीं डालोगे झाग।
यह सम्भव है ही नहीं , विल्कुल " रोटीराम "।
क्योंकि हृदय तो रोएगा, जब फुंकते देखे दाम।।
चूँकि आपमें जान है , सो बोलोगे ही आप।
कैसे ? चुप रह पाओगे , आखिर में हो बाप।।
इसको ही गीता कहे , मानव मन का राग।
रागावश ही डालता , है हर व्यक्ति झाग।।

उदासीन रह जगत से , मत हो ज्यादा लिप्त।
हल्का सा सम्बन्ध रख , बोलचाल संक्षिप्त।।
वह भी बस व्यवहार को , चल सा जाऐ काम।
ऊर्ध्वगति होकर रहे , इससे " रोटीराम "।।
इसके उल्टे जो रहें , घर में बहु मशगूल।
वे भक्ति - भगवान को , विल्कुल जाते भूल।।
सन्तति ममता मोहवश,वे जप नहीं पाते " नाम "।
सो दुर्गति को प्राप्त हों,पा सूकर - कूकर चाम।।

Thursday 17 December 2015

भाग्य स्वयं का स्वयं खुद , लिखता है इन्सान ।

भाग्य स्वयं का स्वयं खुद , लिखता है इन्सान ।
ना तो बृह्माजी लिखें , और न आ भगवान।।
जो जैसे इस जन्म में , कर जाएगा काम।
विधि उसके अनुरूप ही , लिख भेजे " रोटीराम "।।

चार कदम भी चल पडें , गर हम " उनकी " ओर।
" उन्हें " बनाकर चन्द्रमा , खुद बन जायँ चकोर।।
तो हरि भी नहीं रह सकें , आऐं नंगे पांव।
क्या ? ध्रुव को अरु द्रोपदी , नहीं आए "रोटीराम "।

काया सुख रस - भोग में , आज भ्रमित संसार।
ठान के खुद से दुश्मनी , भूला सद् आचार ।।
अब पाने परमात्म सुख , करे न कोई काम ।
भूला नरतन हेतु को , सो भ्रमित है " रोटीराम "।।

हरि की लीला - रूप - गुण , जो न कर रहे याद।
वे व्यक्ति यह स्वाँस धन , कर रहे हैं बर्बाद।।
पा नरतन जैसी निधि , गर न किए सत्काम।
तो यह अपना दुर्भाग्य है , अतिशय "रोटीराम "।

Wednesday 16 December 2015

उड़ा जा रहा प्रकृति पर रथ-विमान आकाश।

उड़ा जा रहा प्रकृति पर रथ-विमान आकाश।
मानो हैं हय चल रहे, हरि-पग-तल-रथ-रास॥
दिव्य रत्नमणि-रचित अति द्युतिमय विमल विमान।
चिदानन्दघन सत्‌‌ सभी वस्तु-साज-सामान॥
अतुल मधुर सुन्दर परम रहे विराजित श्याम।
नव-नीरद-नीलाभ-वपु, मुनि-मन-हरण ललाम॥
पीत वसन, कटि किंकिणी, तन भूषण द्युति-धाम।
कण्ठ रत्नमणि, सौरभित सुमन-हार अभिराम॥

मोर-पिच्छ-मणिमय मुकुट, घन घुँघराले केश।
कर दर्पण-मुद्रा वरद विभु-विजयी वर वेश॥
शोभित कलित कपोल अति अधर मधुर मुसुकान।
पाते प्रेम-समाधि, जो करते नित यह ध्यान॥

पदरत्नाकर

मन

मन मक्खी मानिन्द है , मन को रखो दबाय।
इसको चर्चा ईश की , बिल्कुल नहीं सहाय।।
सो इसको रक्खो दबा , मोटा सोटा मार।
दब जाएगा तो नहीं , पाए जनम बिगार।।
छुट्टा मत छोडो इसे , लो विवेक से काम।
आदत डलवा दीजिए , जपने की हरिनाम।।
फिर देखो , यही आपकी , करदे नैय्या पार।
यही तो " रोटीराम " है , मुक्ति का आधार।।

󾮜 मन से समझौता मती , करिए " रोटीराम "।
इसको तो रखिए दबा , जपबाओ हरिनाम।।
समझौतावादी बने , तो करदे बेडागर्क।
यह बिल्कुल नहीं चूकता , भेजे सीधा नर्क।।
मगर न समझौता किया , डाल के रखी नकेल।
तो न तनिक चल पाएगा , इसका कोई खेल।।
और यही मन आपको , तब भेजे हरिधाम।
जिसको था यह तन मिला ,हो जाए वह काम।।

यदुनन्दन गोपाला ।

यदुनन्दन गोपाला ।
जय वृन्दावन बाला ॥

जय मुरली गान विलोला ।
गोपाला गोपाला राधे गोपाला ॥

कृष्ण राम गोविन्द नारायणा ।
केशव माधव हरि नारायणा ॥

श्री वेणु गोपाल कृष्णा ।
माधव मधुसूदन नारायणा ॥

गोविन्द माधव गोपाल केशवा ।
जय नन्द मुकुन्द नन्द गोविन्द, राधे गोपाला ॥

गिरिधारी गिरिधारी जय राधे गोपाला ।
घन श्याम श्याम श्याम जय जय, राधे गोपाला ॥

जय नन्द मुकुन्द नन्द गोविन्द, राधे गोपाला ॥

Friday 4 December 2015

तर्ज: राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।

तर्ज: राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।
जपें जा राधे - राधे , भजें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।।
  है कृष्ण की यह सद् वाणी , गीता में स्वयं बखानी।
फिर क्यों? , फिकर करें बेकार,जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।।
( भगवान कृष्ण ने गीता के श्लोक 9/22 में )
  अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना : पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
अर्थ - भगवान कृष्ण कहते हैं कि, मैं अपने अनन्य भक्त को , उसके हित की आवश्यक साधन सामग्री उपलब्ध भी कराता हूँ , और उपलब्ध सामग्री की रक्षा भी करता हूं ।अपने हर अनन्य भक्त के योगक्षेम का जिम्मा मेरे ऊपर है , मैं उसकी  देखभाल स्वयं उस माँ की तरह करता हूँ , जो अपने बालक के सुख के लिए अपना भी सुख भूल कर अपने हाथों से उसकी सेवा करती है,  उसे नौकरों के भरोसे नहीं छोड देती।
  सो जो आ , खुद दे जाए , जितना भी कृष्ण भिजाए।
अपना उस पर ही अधिकार , जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे- राधे।।
  वह किसको , कितना देना , हलुआ या चना - चबैना ।
लेता निर्णय , कर्म नुसार , जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे ।।
  क्यों भक्ति,कलंकित करती , क्यों? जग कष्टों से डरती।
कृष्ण के वचनन , श्रध्दा धार , जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।।

क्षुद्र कामना पूर्ति को, जब करते हम पाप।

क्षुद्र कामना पूर्ति को, जब करते हम पाप।
तब तब हरि नाराज हों, अरु देते सन्ताप।।
इससे कोई भी नहीं, बचा है " रोटीराम "।
इस कारण करिए मती, पापयुक्त कोई काम।।
जितने भी हम देखते , दीन हीन परिवार।
रोगी निर्धन अनपढे , भूखे इस संसार।।
वे सब जीते जागते , इसके सत्य प्रमाण।
गीता में भी खुद कहे , यही वाक्य भगवान।। (गीता ज्ञान 3 /37 )
श्लोक -काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भव:।
महाशनो महापाप्मा विध्दयेनमिह वैरिणम्।।
( भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, रजोगुण से उत्पन्न यह काम यानी कामना ही, सारे पापों का कारण है । यही काम जब कामना पूर्ण नहीं होतीं, तो क्रोध में परिणित हो जाता है।यह काम ही महापाप कराने बाला महापापी है।यही आगे जाकर मनुष्य का बैरी बन जाता है।
प्रातः स्मरणीय संत श्री रामसुख दास जी महाराज कहते थे कि, जैसा मैं चाहूँ वैसा हो जाय, यह काम यानी कामना है।किसी भी क्रिया - वस्तु और व्यक्ति का अच्छा लगना अथवा उससे सुख पाने की कामना ही काम है।इस काम रूप एक दोष में अनन्त पाप भरे हुए हैं।इसलिए जब तक जीव में कामनाऐं भरी हुई हैं, तब तक वह सर्वदा निष्पाप व निर्दोष नहीं हो सकता।कामनाओं के अलावा पाप का अन्य कोई कारण नहीं है।यानी तात्पर्य यह निकला कि, जीव से न तो ईश्वर, न कलियुग, न भाग्य, न समय, न परिस्थिति पाप करवाते हैं, वल्कि कामनाऐं ही पाप करने को मजबूर कर देती हैं।