Friday 4 December 2015

क्षुद्र कामना पूर्ति को, जब करते हम पाप।

क्षुद्र कामना पूर्ति को, जब करते हम पाप।
तब तब हरि नाराज हों, अरु देते सन्ताप।।
इससे कोई भी नहीं, बचा है " रोटीराम "।
इस कारण करिए मती, पापयुक्त कोई काम।।
जितने भी हम देखते , दीन हीन परिवार।
रोगी निर्धन अनपढे , भूखे इस संसार।।
वे सब जीते जागते , इसके सत्य प्रमाण।
गीता में भी खुद कहे , यही वाक्य भगवान।। (गीता ज्ञान 3 /37 )
श्लोक -काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भव:।
महाशनो महापाप्मा विध्दयेनमिह वैरिणम्।।
( भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, रजोगुण से उत्पन्न यह काम यानी कामना ही, सारे पापों का कारण है । यही काम जब कामना पूर्ण नहीं होतीं, तो क्रोध में परिणित हो जाता है।यह काम ही महापाप कराने बाला महापापी है।यही आगे जाकर मनुष्य का बैरी बन जाता है।
प्रातः स्मरणीय संत श्री रामसुख दास जी महाराज कहते थे कि, जैसा मैं चाहूँ वैसा हो जाय, यह काम यानी कामना है।किसी भी क्रिया - वस्तु और व्यक्ति का अच्छा लगना अथवा उससे सुख पाने की कामना ही काम है।इस काम रूप एक दोष में अनन्त पाप भरे हुए हैं।इसलिए जब तक जीव में कामनाऐं भरी हुई हैं, तब तक वह सर्वदा निष्पाप व निर्दोष नहीं हो सकता।कामनाओं के अलावा पाप का अन्य कोई कारण नहीं है।यानी तात्पर्य यह निकला कि, जीव से न तो ईश्वर, न कलियुग, न भाग्य, न समय, न परिस्थिति पाप करवाते हैं, वल्कि कामनाऐं ही पाप करने को मजबूर कर देती हैं।

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