काया शुद्ध होत जब, ब्रज रज उडि अंग लगे।
माया शुद्ध होत कृष्ण नाम पे लुटाये ते।।
शुद्ध होत कान कथा कीर्तन के श्रवण किये।
नैंन शुद्ध होत दर्श युगल छवि पाये ते।।
हाथ शुद्ध होत श्री ठाकुर की सेवा किये।
पांव शुद्ध होत श्री वृन्दावन जाये ते।।
मस्तक शुद्ध होत श्री राधारमण चरण पडे।
रसना शुद्ध होत श्यामा श्याम गुण गाये ते।।
माया शुद्ध होत कृष्ण नाम पे लुटाये ते।।
शुद्ध होत कान कथा कीर्तन के श्रवण किये।
नैंन शुद्ध होत दर्श युगल छवि पाये ते।।
हाथ शुद्ध होत श्री ठाकुर की सेवा किये।
पांव शुद्ध होत श्री वृन्दावन जाये ते।।
मस्तक शुद्ध होत श्री राधारमण चरण पडे।
रसना शुद्ध होत श्यामा श्याम गुण गाये ते।।
।। श्री राधारमणाय समर्पणं ।।
No comments:
Post a Comment