Sunday 20 December 2015

रहकर घर - परिवार में , नहीं

रहकर घर - परिवार में , नहीं डालोगे झाग।
देख हानि सन्तान की , नहीं डालोगे झाग।
यह सम्भव है ही नहीं , विल्कुल " रोटीराम "।
क्योंकि हृदय तो रोएगा, जब फुंकते देखे दाम।।
चूँकि आपमें जान है , सो बोलोगे ही आप।
कैसे ? चुप रह पाओगे , आखिर में हो बाप।।
इसको ही गीता कहे , मानव मन का राग।
रागावश ही डालता , है हर व्यक्ति झाग।।

उदासीन रह जगत से , मत हो ज्यादा लिप्त।
हल्का सा सम्बन्ध रख , बोलचाल संक्षिप्त।।
वह भी बस व्यवहार को , चल सा जाऐ काम।
ऊर्ध्वगति होकर रहे , इससे " रोटीराम "।।
इसके उल्टे जो रहें , घर में बहु मशगूल।
वे भक्ति - भगवान को , विल्कुल जाते भूल।।
सन्तति ममता मोहवश,वे जप नहीं पाते " नाम "।
सो दुर्गति को प्राप्त हों,पा सूकर - कूकर चाम।।

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