Sunday 24 September 2017

राग मालकोस-तीन ताल

श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार—श्री राधा के प्रति
                (राग मालकोस-तीन ताल)
राधिके ! तुम मम जीवन-मूल।
अनुपम अमर प्रान-संजीवनि, नहिं कहुँ को‌उ समतूल॥
जस सरीर में निज-निज थानहिं सबही सोभित अंग।
किंतु प्रान बिनु सबहि यर्थ, नहिं रहत कतहुँ को‌उ रंग॥
तस तुम प्रिये ! सबनि के सुख की एकमात्र आधार।
तुहरे बिना नहीं जीवन-रस, जासौं सब कौ प्यार॥
तुहारे प्राननि सौं अनुप्रानित, तुहरे मन मनवान।
तुहरौ प्रेम-सिंधु-सीकर लै करौं सबहि रसदान॥
तुहरे रस-भंडार पुन्य तैं पावत भिच्छुक चून।
तुम सम केवल तुमहि एक हौ, तनिक न मानौ ऊन॥
सो‌ऊ अति मरजादा, अति संभ्रम-भय-दैन्य-सँकोच।
नहिं को‌उ कतहुँ कबहुँ तुम-सी रसस्वामिनि निस्संकोच।
तुहरौ स्वत्व अनंत नित्य, सब भाँति पूर्न अधिकार।
काययूह निज रस-बितरन करवावति परम उदार॥
तुहरी मधुर रहस्यम‌ई मोहनि माया सौं नित्य।
दच्छिन बाम रसास्वादन हित बनतौ रहूँ निमिा॥

राग रागेश्वरी-ताल दादरा

श्रीराधाके प्रेमोद्गार—श्रीकृष्णके प्रति
(राग रागेश्वरी-ताल दादरा)
हौं तो दासी नित्य तिहारी।
प्राननाथ जीवनधन मेरे, हौं तुम पै बलिहारी॥
चाहैं तुम अति प्रेम करौ, तन-मन सौं मोहि अपना‌औ।
चाहैं द्रोह करौ, त्रासौ, दुख दे‌इ मोहि छिटका‌औ॥
तुहरौ सुख ही है मेरौ सुख, आन न कछु सुख जानौं।
जो तुम सुखी हो‌उ मो दुख में, अनुपम सुख हौं मानौं॥
सुख भोगौं तुहरे सुख कारन, और न कछु मन मेरे।
तुमहि सुखी नित देखन चाहौं निस-दिन साँझ-सबेरे॥
तुमहि सुखी देखन हित हौं निज तन-मन कौं सुख देऊँ।
तुमहि समरपन करि अपने कौं नित तव रुचि कौं सेऊँ॥
तुम मोहि ’प्रानेस्वरि’, ’हृदयेस्वरि’, ’कांता’ कहि सचु पावौ।
यातैं हौं स्वीकार करौं सब, जद्यपि मन सकुचावौं॥

Saturday 23 September 2017

षोडश गीत

  श्रीराधा-माधव-रस-सुधा 
                     
                 महाभाव रसराज वन्दना 
दो‌उ चकोर, दो‌उ चंद्रमा, दो‌उ अलि, पंकज दो‌उ।
दो‌उ चातक, दो‌उ मेघ प्रिय, दो‌उ मछरी, जल दो‌उ॥
आस्रय-‌आलंबन दो‌उ, बिषयालंबन दो‌उ।
प्रेमी-प्रेमास्पद दो‌उ, तत्सुख-सुखिया दो‌उ॥
लीला-‌आस्वादन-निरत, महाभाव-रसराज।
बितरत रस दो‌उ दुहुन कौं, रचि बिचित्र सुठि साज॥
सहित बिरोधी धर्म-गुन जुगपत नित्य अनंत।
बचनातीत अचिन्त्य अति, सुषमामय श्रीमंत॥
श्रीराधा-माधव-चरन बंदौं बारंबार।
एक तव दो तनु धरें, नित-रस-पाराबार॥

क्या तन माँजता रे

क्या तन माँजता रे
आखिर माटी में मिल जाना...

माटी ओढ़न माटी पहरन
माटी का सिरहाना
माटी का एक बुत बनाया
जामे भंवर लुभाना....
क्या तन माँजता रे
आखिर माटी में मिल जाना....

फाटा चोला भया पुराना
कब लगि सीवें दरजी
कबीर चोला अमर भया
संत जो मिल गये दरजी...
क्या तन माँजता रे...

माल पड़ा साहूकार का
चोर लगा सरकारी
एक दिन मुश्किल आन पड़ेगी
महसूल भरेगा भारी....
क्या तन माँजता रे...

चुन चुन लकड़ी महल बनाया
बंदा कहे घर मेरा
ना घर तेरा ना घर मेरा
चिड़िया रैन बसेरा....
क्या तन माँजता रे....

माटी कहे कुम्हार से
तू क्यों रौंदे मोहि
एक दिन ऐसा आयेगा
मैं रौंदूँगी तोहि....
क्या तन माँजता रे
आखिर माटी में मिल जाना....
*🙏 जय श्रीकृष्ण🙏*

Tuesday 19 September 2017

स्वरचित


आप जानते हो मेरे राघव कि मेरा क्या हाल है...
आपकी एक प्रेम भरी नजर और मेरी पूरी ज़िन्दगी का सवाल है.... 
हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

तुम जानत मैं अधम कुलीना... 
फिर भी तुमने जीवन दीन्हा....
अब तुम ही सही दिशा दो...
ओ राघव मेरे सिया प्यारे.... 

भव सागर में फँसा हुआ हूँ.... 
हर पल हर क्षण तडप रहा हूँ..... 
अपने कर कमलन से पकड लो... ओ मेरे अवध सुकुमारे.... 

हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

ना हम कीन्हो भजन और ध्याना.. ना हम दीन्हो भिक्षुक दाना.... 
एक बार आकर हमें सिखाई दो... ओ राघव मेरे सिया प्यारे... 

कैसे करें हम संतन सेवा.... 
कैसे करें गुरुदेव की सेवा... 
बस आकर करके दिखाई दो... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे.... 

हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

प्रभु जी आओ देर न लगाओ... 
आके हमको सब कुछ सिखाओ..
मोहे अपने दासों का दास बनाई दो.. 
ओ राघव मेरे सिया प्यारे... 

सिया जू इनको जल्दी पठाओ....
हर पल हर क्षण व्यर्थ ना गँवाओ..
मोहे शीघ्र दासानुदास बनाई दो...
ओ सिया राघव प्राण प्यारे... 

सिया जू मोरी इतनी अर्ज लगाइ दो.. 
करुणा निधान की स्वीकृति दिलाई दो... 
मैं धरूँ शीश पायन तुम्हारे.. 

हो एक नजर करुणा भरी कर दो,
राघव मेरे सिया प्यारे... 
तुम मेरो हाल सवाँर दो.... 
ओ मेरे अवध सुकुमारे....

जय जय श्री सीताराम

राम-नामकी अगाध महिमा।


हर-हृदयाब्धि-समुद्भव, रामनाम सदरत्न ।
भक्ति-भाग्यप्रद भासुर, ज्ञान-ज्योति चिदरत्न ॥

अब नहिं भूलूँ नामको, नाम सहारा मोहिं ।
आप कृपा करि कीजिये, नाम सुहावें मोहिं ॥

पावन हरिको नाम है, रसना है अनुकूल।
जप-ज़प प्यारे मधुमय, नाम हरत त्रैशूल ॥

रसमय हैं हरिनाम अति, सुलभ सरल निज़तन्त्र ।
पातक हरत समस्त अरु, जीवन होत स्वतन्त्र ॥

रक्षक, शिक्षक-तारक, मारक मोह, विकार ।
रामनाम कलिकालमें, केवल एक अधार ॥

मन बस करना सहज नहिं, मैं दुर्बल मतिमन्द ।
आप सम्भालो रामजी, नाम रटूँ निर्द्वन्द॥

रामनाम जननी-जनक, रामनाम परिवार ।
राम-नाम धन-वैभव, राम-नाम सुखसार ॥

॥ ओम नारायण ॥