Tuesday 28 March 2017

जय माता दी

सजा तेरा दरबार जहाँ...धूम मची भक्तो की वहाँ

रंग रंगीला मन मेरा...झूम उठा तुम्हें देख वहाँ
हो गये हम तेरे.....हो गये हम तेरे.....

ढूंढता मैं फिर रहा था तुझ्को मारा-मारा
जहाँ तुम्हारी चर्चा होती मैं वहीँ रुक जाता
सुनके तेरी श्री लीला मन मेरा भी खिल जाता
हो गये हम तेरे.....हो गये हम तेरे.....

आया था दरबार में तेरे हाजरी लगाने
क्या पता था मिळ जाओगीे मुझको मेरी मैया
ये भरम हो या सपना टूटे ना मेरी मैया
हो गये हम तेरे.....हो गये हम तेरे.....

में खड़ा अपलक निहारूँ तुझको ही "" मैया ""
हो न जाओ तुम कहीं इन नैनो से ओझल रे
अब न छूटे साथ तेरा आन मिलो मेरी माता.....
हो गये हम तेरे.....हो गये हम तेरे.....

सजा तेरा दरबार जहाँ...धूम मची भक्तो की वहाँ

रंग रंगीला मन मेरा...झूम उठा तुम्हें देख वहाँ
हो गये हम तेरे.....हो गये हम तेरे.....

|| जय माता दी ||

Monday 27 March 2017

राम नाम के हीरे मोती

राम नाम के हीरे मोती, मैं बिखराऊं गली गली ।
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥

दोलत के दीवानों सुन लो एक दिन ऐसा आएगा,
धन योवन और रूप खजाना येही धरा रह जाएगा ।
सुन्दर काया माटी होगी, चर्चा होगी गली गली,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
राम नाम के हीरे मोती *, मैं बिखराऊं गली गली....
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली.......

प्यारे मित्र सगे सम्बंधी इक दिन तुझे भुलायेंगे,
कल तक अपना जो कहते अग्नि पर तुझे सुलायेंगे ।
जगत सराय दो दिन की है, आखिर होगी चला चली,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
राम नाम के हीरे मोती *, मैं बिखराऊं गली गली...
ले लो रे कोई राम का प्यारा शोर मचाऊं गली गली.....

क्यूँ करता है तेरी मेरी, छोड़ दे अभिमान को,
झूठे धंदे छोड़ दे बन्दे जप ले हरी के नाम को ।
दो दिन का यह चमन खिला है, फिर मुरझाये कलि कलि,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
राम नाम के हीरे मोती*, मैं बिखराऊं गली गली.......
ले लो रे कोई राम का प्यारा शोर मचाऊं गली गली......

जिस जिस ने यह हीरे लुटे, वो तो मला माला हुए,
दुनिया के जो बने पुजारी, आखिर वो कंगाल हुए ।
धन दौलत और माया वालो, मैं समझाऊं गली गली,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
राम नाम के हीरे मोती*, मै बिखराऊं गली गली......
ले लो रे कोई राम का प्यारा शोर मचाऊं गली गली.....

 || राम राम  ||  || जय बजरंगी || || जय हनुमान ||
जय जय श्री राधे राधे जी

Prayer

*What a simple and beautiful prayer.* 

When you wake up say:
 Krishna I love you ... 

When leaving the house say: 
Krishna come with me ... 

When you feel like crying, say: 
Krishna hug me ... 

When you feel happy say: 
Krishna I adore you ... 

When you do something, say: 
Krishna help me ... 

When you make a mistake, say: 
 Krishna forgive me ... 

When you go to sleep say: 
Thank you Krishna and cover me with your holy mantle. 

Send this prayer to the people you care about ... 

*Krishna loves you!*

Sunday 26 March 2017

माँ

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
सिंह की सवार बनकर
रंगों की फुहार बनकर
पुष्पों की बहार बनकर
सुहागन का श्रंगार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

खुशियाँ अपार बनकर
रिश्तों में प्यार बनकर
बच्चों का दुलार बनकर
समाज में संस्कार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

रसोई में प्रसाद बनकर
व्यापार में लाभ बनकर
घर में आशीर्वाद बनकर
मुँह मांगी मुराद बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

संसार में उजाला बनकर
अमृत रस का प्याला बनकर
पारिजात की माला बनकर
भूखों का निवाला बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी बनकर
चंद्रघंटा, कूष्माण्डा बनकर
स्कंदमाता, कात्यायनी बनकर
कालरात्रि, महागौरी बनकर
माता सिद्धिदात्री बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

तुम्हारे आने से नव-निधियां
स्वयं ही चली आएंगी
तुम्हारी दास बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

सभी पर माँ की कृपा खूब बरसे ।

***※═❖═▩ஜ۩.۞.۩ஜ▩═❖═※***
🌟👣 🚩 जय माता दी 🚩 👣🌟
***※═❖═▩ஜ۩.۞.۩ஜ▩═❖═※***

Wednesday 22 March 2017

प्रार्थना: ॥ कृष्णाश्रय स्तुति ॥


सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खलधर्मिणि।
पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम॥१॥
कलियुग में धर्म के सभी मार्ग नष्ट हो गए हैं, विश्व में अधर्म और पाखंड का बाहुल्य है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥1

म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च।
सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥२॥
दुर्जनों से आक्रांत (परेशान) देशों में, पाप पूर्ण स्थानों में, सज्जनों की पीड़ा से व्यग्र संसार में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥2

गंगादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥३॥
गंगा आदि प्रमुख तीर्थ भी दुष्टों द्वारा घिरे हुए हैं, प्रत्यक्ष देवस्थान लुप्त हो गए हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥3

अहंकारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु।
लोभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥४॥
अहंकार से मोहित हुए सज्जन व्यक्ति भी पाप का अनुसरण कर रहे हैं और लोभ वश ही पूजा करते हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥4

अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु।
तिरोहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥५॥
मंत्र ज्ञान नष्ट हो गया है, योगी नियमों का पालन न करने वाले हो गए हैं, वेदों का वास्तविक अर्थ लुप्त हो गया है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥5

नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु।
पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥६॥
भिन्न-भिन्न प्रकार के मतों के कारण शुभ कर्म और व्रत आदि का नाश हो गया है, पाखंडपूर्ण कर्मों का ही आचरण हो रहा है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥6

अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः।
ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम॥७॥
आपका नाम अजामिल आदि के दोषों का नाश करने वाला है, ऐसा सबने सुना है, आपके ऐसे संपूर्ण माहात्म्य को जानने के बाद, केवल आप श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥7

प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत्।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्कृष्ण एव गतिर्मम॥८॥
सभी देवता प्रकृति के अंतर्गत हैं, विराट का आनंद भी सीमित है, केवल श्रीहरि पूर्ण आनंद स्वरुप हैं, अतः केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥8

विवेकधैर्यभक्त्यादिरहितस्य विशेषतः।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम॥९॥
विवेक, धैर्य, भक्ति आदि से रहित, विशेष रूप से पाप में आसक्त मुझ दीन के लिए केवल श्रीकृष्ण ही आश्रय हैं॥9

सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्।
शरणस्थमुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम्॥१०॥
अनंत सामर्थ्यवान, सर्वत्र सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाले, शरणागतों का उद्धार करने वाले श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ॥10

कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ।
तस्याश्रयो भवेत्कृष्ण इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत्॥११॥
श्रीकृष्ण के आश्रय में और उनकी मूर्ति के समीप जो इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते हैं, ऐसा श्रीवल्लभाचार्य का कथन है॥11

श्री कृष्ण स्तुति


श्री शंकराचार्य विरचित संस्कृत स्तोत्र का भावानुवाद
युमना तट पर वृन्दावन में मनभावन एक बाग़ हरी
कल्पदुम तले खड़े है उसमे पैर मरोड़े श्याम हरी
घन श्याम हरी
चन्दन कर्पुत उटी में लिपटा तन कटी पीताम्बर सोहे
भया उजियारा विश्व ये सारा तेजस्वी प्रभु कांति से
कमल नयन आकर्ष कर्ण में कुण्डल सुंदर दो लटके
मुस्कान मन्द मुख की मोहे चमके कोस्तुभ सीने पे 
दमके अंगूठी ऊँगली में झूले वर्णमाला गले
देखत तेज महाप्रभु का कापन कलि काल भी लागे
हृषिकेश कुंतल से निकले गंध से मोहित गूजे भंवरे
गोप संग श्याम कुञ्ज में जेवे आओ प्रभु को नमन करे
भरे सुगंध मंदार समां में आनंदित मन आनंद दाता से
गंगापद आनंद निधि को करे परणाम महापुरुष को
फेले प्रीत दश दिशाओ में गोप्रिये गोपाल की कांति से
देवप्रिया देत्यारि हरी के हो नत मस्तक पड़ युग्मो में

Tuesday 21 March 2017

अपने कृपा-सिन्धु प्रभुसे भक्तका प्रेमभरा कृतज्ञता ज्ञापन


सब छीनकर तुमने बहुत भला किया
भला किया प्रभु ! तुमने मुझको देकर कटु औषघका दान ।
भला किया तन चीर निकाला अंदरका मवाद भगवान ॥
भला किया जो छीना तुमने मीठा जहर भोगका घोर ।
भला किया जो दिया अभावोंका पूरा समूह सब ओर ॥
भला किया जो छीन मान-विष, दिया-सुधासुंदर अपमान ।
भला किया जो छुड़ा दिया दुस्संग भोगियोंका अघखान ।।
मिटा मोह, मद हटा, घटा अब विषयोंका दु:खद व्यामोह ।
बडी कृपा की कृपासिंधु ! तुमने हरि ! चिदानंद-संदोह ।।
करुणा कर निकाल नरकोंसे दिया पदाश्रय शुचि सुखमूल।
सहज अहैतुक सुहृद ! मिटा दी मेरी मोहजनित सब भूल ॥
भोगवासना कभी न उपजे कभी न जागे ममता-राग ।
छूटे नहीं चरण-आश्रय अब, बढ़ता रहे शुद्ध अनुराग ।।

गीता प्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित 'भगवन्नाम-महिमा और प्रार्थना-अंक (कल्याण ) से

प्रेमरस-सागर---प्रेमभिखारी

प्रेमरस निधान प्रभुसे प्रेमी भक्तकी प्रेमभरी विलक्षण प्रार्थना”
(प्रेमरस-सागर---प्रेमभिखारी)

कहाँ तुच्छ सब, कहाँ महत् तुम, पर यह कैसा अनुपम भाव !
बने प्रेमके भूखे, सबसे प्रेम चाहते करते चाव ॥
धन देते, यश देते, देते ज्ञान-शक्ति-बल, देते मान।
'किसी तरह सब तुम्हें प्रेम दें', इसीलिये सब करते दान ॥
लेते छीन सभी कुछ, देते घृणा-विपत्ति, अयश-अपमान ।
करते निष्ठुर चोट, 'चाहते तुम्हें प्रेम सब दें' भगवान ! ॥
सभी ईश्वरोंके ईश्वर तुम बने विलक्षण भिक्षु महान ।
उच्च-नीच सबसे ही तुम नित प्रेम चाहते प्रेमनिधान ॥
अनुपम, अतुल, अनोखी कैसी अजब तुम्हारी है यह चाह !
रस-समुद्र रसके प्यासे बन, रस लेते मन भर उत्साह ॥
रस उँड़ेल, रस भर, तुम करते स्वयं उसी रसका मधु पान ।
धन्य तुम्हारी रसलिप्सा यह धन्य तुम्हारा रस-विज्ञान ॥
यही प्रार्थना, प्रेम-भिखारी ! प्रेम-रसार्णव ! तुमसे आज ।
दान-पानकी मधुमय लीला करते रहो, रसिक रसराज! ॥

[गीता प्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित 'भगवन्नाम-महिमा और प्रार्थना-अंक (कल्याण)’ से]

Tuesday 14 March 2017

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

ॐ गंग गणपतये नमः 

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची
कंठी झलके माल मुकताफळांची

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव

रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना
सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना
दास रामाचा वाट पाहे सदना
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव

शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को
दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को
हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को
महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी
विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी
कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी
गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

भावभगत से कोई शरणागत आवे
संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे

जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव

Friday 10 March 2017

गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा
भक्त वत्सल गोविंदा भागवता प्रिय गोविंदा

नित्य निर्मल गोविंदा नीलमेघ श्याम गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

पुराण पुरुषा गोविंदा पुंडरीकाक्ष गोविंदा
नंद नंदना गोविंदा नवनीत चोरा गोविंदा

पशुपालक श्री गोविंदा पाप विमोचन गोविंदा
दुष्ट संहार गोविंदा दुरित निवारण गोविंदा

गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा
शिष्ट परिपालक गोविंदा कष्ट निवारण गोविंदा

वज्र मकुटधर गोविंदा वराह मूर्ती गोविंदा
गोपीजन लोल गोविंदा गोवर्धनोद्धार गोविंदा

दशरध नंदन गोविंदा दशमुख मर्धन गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

पक्षि वाहना गोविंदा पांडव प्रिय गोविंदा
मत्स्य कूर्म गोविंदा मधु सूधना हरि गोविंदा

वराह न्रुसिंह गोविंदा वामन भृगुराम गोविंदा
बलरामानुज गोविंदा बौद्ध कल्किधर गोविंदा

गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा
वेणु गान प्रिय गोविंदा वेंकट रमणा गोविंदा

सीता नायक गोविंदा श्रितपरिपालक गोविंदा
दरिद्रजन पोषक गोविंदा धर्म संस्थापक गोविंदा

अनाथ रक्षक गोविंदा आपध्भांदव गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

शरणागतवत्सल गोविंदा करुणा सागर गोविंदा
कमल दलाक्षा गोविंदा कामित फलदात गोविंदा

पाप विनाशक गोविंदा पाहि मुरारे गोविंदा
श्रीमुद्रांकित गोविंदा श्रीवत्सांकित गोविंदा

गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा
धरणी नायक गोविंदा दिनकर तेजा गोविंदा

पद्मावती प्रिय गोविंदा प्रसन्न मूर्ते गोविंदा
अभय हस्त गोविंदा अक्षय वरदा गोविंदा

शंख चक्रधर गोविंदा सारंग गदाधर गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

विराज तीर्थ गोविंदा विरोधि मर्धन गोविंदा
सालग्राम हर गोविंदा सहस्र नाम गोविंदा

लक्ष्मी वल्लभ गोविंदा लक्ष्मणाग्रज गोविंदा
कस्तूरि तिलक गोविंदा कांचनांबरधर गोविंदा

गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा
गरुड वाहना गोविंदा गजराज रक्षक गोविंदा

वानर सेवित गोविंदा वारथि बंधन गोविंदा
एडु कोंडल वाडा गोविंदा एकत्व रूपा गोविंदा

रामकृष्णा गोविंदा रघुकुल नंदन गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

प्रत्यक्ष देव गोविंदा परम दयाकर गोविंदा
वज्र मकुटदर गोविंदा वैजयंति माल गोविंदा

वड्डी कासुल वाडा गोविंदा वासुदेव तनया गोविंदा
बिल्वपत्रार्चित गोविंदा भिक्षुक संस्तुत गोविंदा

गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा
स्त्री पुं रूपा गोविंदा शिवकेशव मूर्ति गोविंदा

ब्रह्मानंद रूपा गोविंदा भक्त तारका गोविंदा
नित्य कल्याण गोविंदा नीरज नाभा गोविंदा

हति राम प्रिय गोविंदा हरि सर्वोत्तम गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

जनार्धन मूर्ति गोविंदा जगत् साक्षि रूपा गोविंदा
अभिषेक प्रिय गोविंदा अभन्निरासाद गोविंदा

नित्य शुभात गोविंदा निखिल लोकेशा गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

आनंद रूपा गोविंदा अध्यंत रहित गोविंदा
इहपर दायक गोविंदा इपराज रक्षक गोविंदा

पद्म दलक्ष गोविंदा पद्मनाभा गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

तिरुमल निवासा गोविंदा तुलसी वनमाल गोविंदा
शेषशायी गोविंदा शेषाद्रिनीलय गोविंदा

श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा
गोविंदा हरि गोविंदा गोकुल नंदन गोविंदा

Thursday 9 March 2017

प्रेम


इन प्रेम के भावों को , लिखना आसान नहीँ ,
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ ।

कोई प्यास नहीँ बाकी , ना बेकरारी है
चढ़ कर न कभी उतरे , ये वो खुमारी है
राधा अब कृष्णा है , कृष्णा अब राधा है
आँखो से ह्रदय मे , तस्वीर उतारी है
ये प्रेम के मोती तो , निर्मल है पावन है
इनसे ज्यादा जग मे , कुछ मूल्यवान नहीँ
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ

देखूं मै छवि अपनी , दर्पण मुस्काता है
मुझमें तस्वीर तेरी , दर्पण दिखलाता है
मै तुझमे तू मुझमें , है कोई भेद नहीँ
बिन बोले ही मुझको , सब कुछ कह जाता है
कुछ भी ना अधूरा सा , खुद मे ही पूर्ण है
क्या पाना व खोना, कोई झूठी शान नहीँ
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ

बहती हुई नदियाँ का , सागर से मिलना सा
ये प्रेम है पतझड़ मे , फ़ूलॊ का खिलना सा
नैनो की चमक बढ़ती, संगीत सा बजता है
बस अच्छा लगता है , "कान्हा" को सुनना सा
मेरा तेरा कितने , जन्मों का नाता है
ये अमर कहानी है, पल का मेहमान नहीँ
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ


  ।। राधे राधे मेरे बांके बिहारी ।।

Wednesday 1 March 2017

साँवरा मेरा मनमोहना...

साँवरा मेरा मनमोहना...
मन मोरा देख इसे झूमे बन बांवरा...
साँवरा मेरा मनमोहना...

उसकी सांवली सुरत पे हुआ दिल फिदा...
काली कमली वाले ने ऐसा जादु किया...
जो भी देखे...वो ही बोले...
जो भी देखे...वो ही बोले...साँवरा है नशा...
साँवरा मेरा मनमोहना...
मन मोरा देख इसे झूमे बन बांवरा...
साँवरा मेरा मनमोहना...

आनंद मंगल करे है मेरा साँवरा...
अपने भक्तों की मुश्किल में ये रेहता खड़ा...
दिखता चाहे...ना हो हमको...
दिखता चाहे...ना ही हमको...
रेहता साथ सदा...
साँवरा मेरा मनमोहना...
मन मोरा देख इसे झूमे बन बांवरा...
साँवरा मेरा मनमोहना...

कण~कण में है बसता कौन बोलो भला...
किसके इशारों पे चलता है ये सारा जहाँ...
ऐसा " अनोखा "...कौन कहो ना...
ऐसा " अनोखा "...कौन कहो ना...
वो तो है साँवरा...
साँवरा मेरा मनमोहना...
मन मोरा देख इसे झूमे बन बांवरा...
साँवरा मेरा मनमोहना...

साँवरा मेरा मनमोहना...
मन मोरा देख इसे झूमे बन बांवरा...
साँवरा मेरा मनमोहना...

( तर्ज : रात का शमाँ.....)