Tuesday 21 March 2017

अपने कृपा-सिन्धु प्रभुसे भक्तका प्रेमभरा कृतज्ञता ज्ञापन


सब छीनकर तुमने बहुत भला किया
भला किया प्रभु ! तुमने मुझको देकर कटु औषघका दान ।
भला किया तन चीर निकाला अंदरका मवाद भगवान ॥
भला किया जो छीना तुमने मीठा जहर भोगका घोर ।
भला किया जो दिया अभावोंका पूरा समूह सब ओर ॥
भला किया जो छीन मान-विष, दिया-सुधासुंदर अपमान ।
भला किया जो छुड़ा दिया दुस्संग भोगियोंका अघखान ।।
मिटा मोह, मद हटा, घटा अब विषयोंका दु:खद व्यामोह ।
बडी कृपा की कृपासिंधु ! तुमने हरि ! चिदानंद-संदोह ।।
करुणा कर निकाल नरकोंसे दिया पदाश्रय शुचि सुखमूल।
सहज अहैतुक सुहृद ! मिटा दी मेरी मोहजनित सब भूल ॥
भोगवासना कभी न उपजे कभी न जागे ममता-राग ।
छूटे नहीं चरण-आश्रय अब, बढ़ता रहे शुद्ध अनुराग ।।

गीता प्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित 'भगवन्नाम-महिमा और प्रार्थना-अंक (कल्याण ) से

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