Tuesday 30 August 2016

प्रेमरस-सागर---प्रेमभिखारी

प्रेमरस निधान प्रभुसे प्रेमी भक्तकी प्रेमभरी विलक्षण प्रार्थना ।


कहाँ तुच्छ सब, कहाँ महत् तुम, पर यह कैसा अनुपम भाव !
बने प्रेमके भूखे, सबसे प्रेम चाहते करते चाव ॥

धन देते, यश देते, देते ज्ञान-शक्ति-बल, देते मान।
'किसी तरह सब तुम्हें प्रेम दें', इसीलिये सब करते दान ॥

लेते छीन सभी कुछ, देते घृणा-विपत्ति, अयश-अपमान ।
करते निष्ठुर चोट, 'चाहते तुम्हें प्रेम सब दें' भगवान ! ॥

सभी ईश्वरोंके ईश्वर तुम बने विलक्षण भिक्षु महान ।
उच्च-नीच सबसे ही तुम नित प्रेम चाहते प्रेमनिधान ॥

अनुपम, अतुल, अनोखी कैसी अजब तुम्हारी है यह चाह !
रस-समुद्र रसके प्यासे बन, रस लेते मन भर उत्साह ॥

रस उँड़ेल, रस भर, तुम करते स्वयं उसी रसका मधु पान ।
धन्य तुम्हारी रसलिप्सा यह धन्य तुम्हारा रस-विज्ञान ॥

यही प्रार्थना, प्रेम-भिखारी ! प्रेम-रसार्णव ! तुमसे आज ।
दान-पानकी मधुमय लीला करते रहो, रसिक रसराज! ॥

॥ ओम नारायण ॥ ओम नारायण ॥ ओम नारायण ॥

गीता प्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित 'भगवन्नाम-महिमा और प्रार्थना-अंक (कल्याण ) से

Monday 29 August 2016

आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।

आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
    आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
        
         रात अँधेरी अष्टमी।
         महीना था वो भादो।
             
नन्द भी नाचे और नाची थी  मैया।
             
    आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
    आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
         
      माखन चोर कहाये तुम।
खुद भी खाया – सबको खिलाया।
             
       पी गए थे तुम दहिया।
       
    आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
    आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
                
      गोपी संग में रास रचाया।
     राधा संग त्योहार मनाया।
          
    वृन्दावन के अमर नचैया।
            
  आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
   आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
            
    उस रास रंग में वृन्दावन के –
  क्यों न तब हमको भी मिलाया।
           
     हम भी बनते रास रचैया।
          
   आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
   आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
             
   छोड़ के पीछे सबको तुमने।
   त्याग उदाहरण पेश किया।
            
   वापस आओ धूम मचैया।
          
   आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
   आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
              
     पाप बढ़े थे कंसराज में –
        बढ़ रही थी बुराइयाँ।
     
    खुशियां बांटी कंस वधैया।
             
    आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।
    आ भी जाओ कृष्ण कन्हैया।

Thursday 25 August 2016

नन्दजी के अंगना में डोले रे साँवरिया,

नन्दजी के अंगना में डोले रे साँवरिया,
लाड लड़ाये सारी गूजरियां...देखो डोले रे साँवरिया ||

गोरे~गोरे मुखड़े पे लट काली लटके,
टेढ़ी~मेढ़ी चाल बाँकी आड़े टेडे झटके |
हाथो में सोहे प्यारी बाँसुरिया...देखो डोले रे साँवरिया ||

गूजरी ठिठोरी करे कान्हा मुस्काये,
बलिहारी जाये सारी लेवे रे बलायेँ |
लीला करे है नट नागरिया...देखो डोले रे साँवरिया ||

गुजरी सूं बोली मैया जाओ घर जाओ,
थक जावेगो लल्लो ऐसे ना नचाओ |
माखन की लाई क्यूँ तूं गागरिया...देखो डोले रे साँवरिया ||

रोको मत मैया मैँ तो लाड लडाउंगी,
कान्हुड़ा ने ताजा~ताजा माखन चटाऊँगी |
हर्ष हुई रे मैँ तो बावरिया...देखो डोले रे साँवरिया ||

यमुना जल मा

यमुना जल मा केसर घोली स्नान कराऊँ सांवरा
हल्के हाथो अंगो चौड़ी लाड लडाऊँ सांवरा

अंगो लुछि आपु वस्त्रो पीडू पीताम्बर प्यार मा
तेल सुगन्धी नाखि आपु वांकड़िया तूझ वाड मा

कुमकुम केसर तिलक सजाउ त्रिकम तारा बालमा
अलबेली आँखो मा आजू अंजन मारा बालमा

हँसती जाऊँ वाटे घाटे नाची उठ~उठ ताल मा
नजर ना लागे श्याम सुन्दर ने टपका करी दऊँ
गाल मा

पग मा झाँझर रुमझुम वागे कर मा कंकण बालमा
कंठे माला काने कुण्डल चोरे चिथरू चालमा

मोर मुकुट माथे पेहराऊँ मुरली आपु हाथमा
कृष्ण कृपालु निरखी शोभा वारी जाऊ मारा बालमा

दूध कटोरी भरी ने आपु पिओ ने मारा सांवरा
भक्त मंडल निरखी शोभा राखो शरणे मारा सांवरा....

कृष्णचंद्र उदय भ‌ए नंद-भवन सुँदर।

कृष्णचंद्र उदय भ‌ए नंद-भवन सुँदर।
सब के मन-कुमुद खिले, हरखे हिय-मंदिर॥

उमड्यौ आनंद-सिंधु ओर-छोर तज कर।
जन-मन के घाट-बाट डूबे सब सत्वर।
बाल-बृद्ध, जुवक-जुवति, सुध-बुध सब खोकर।
माते सब रंग-राग, लाज-सकुच धोकर॥-१॥

लखत नहीं को‌उ कहाँ, को‌उ नायँ बूझत।
आनँद-परिपूरन मन स्नेह-समर जूझत।
उछरत क्रमभंग सकल, अति उमंग कूदत।
मन-माने गावत सब, ताल-राग सूदत॥-२॥

नृत्य-गीत-कला-कुसल नाचत, गुन गावत।
सब के मन हरत अचिर, सबके मन भावत।
गावत सब बंदीजन-भाट सुर मिलाकर।
सबके मन मोद भरे जीवन-फल पाकर॥-३॥

दूध-दधि-माखन की मटुकिया भरकर।
आर्ईं ब्रजनागरि सब सुंदरि सज-धजकर।
माखन-दधि-दुग्ध-सरित बही चली पावन।
डूबत सिसु-गनहि मातु लगी सब उठावन॥-४॥

आनँद-‌उन्मा सकल नाचि उठे जन-मन।
तरुन-तरुनि, बाल-बृद्ध खो‌ए सब तन-मन।
नाचे बिधि-सिव-सुरेस सुर-मुनि सुधि तजकर।
नाचे उपनंद-नंद-भानु, नहीं लजकर॥-५॥

हरदी-दधि-केसर-जुतपय-नदी नहाकर।
धन्य हु‌ए स्नेह-सुधा-सरस रूप पाकर।
दुंदुभि नभ बजत बिपुल, देव सुमन बरसत।
गोकुल के भाग्य कौं सिहात सुर तरसत॥-६॥

"पद रत्नाकर " श्रद्धेय भाई जी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी

Saturday 20 August 2016

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई
था घनघोर अंधेरा कैसी रात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई
था घनघोर अंधेरा कैसी रात होगई...

था बंधी खाना जनम लियो कान्हा
वो तब का ज़माना पुराना
ताले लगाना ये पहरे बिठाना
कंस का ज़ूलूम उठाना
उस रात का दृश्य भयंकर था
उस कंस को मारने का डर था
बादल छाए मन्ड्राए बरसात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

खुल गये ताले सोये थे रखवाले
हांथों में बरच्चियाँ भाले
वो दिल के काले पड़े थे पाले
वो काल के हवाले होने वाले
वासुदेव ने श्याम को उठाया था
टोकरी में श्री श्याम को लेटाया था
गोकुल धाये हर्षाए कैसी बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

घटाये थी काली अजब मतवाली
की टोकरी में मोहन मुरारी
सहस फन धारी करे रखवाली
की यमुना ने बात विचारी
श्री श्याम आये है भक्तो के हितकारी
इनके चरणों में जाऊ बलिहारी
जाऊ में वारि बलिहारी मुलाकात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई
था घनघोर अंधेरा कैसी रात होगई...

( तर्ज : तूने काजल लगाया दिन में रात होगई )

राम नाम के हीरे मोती

राम नाम के हीरे मोती, मैं बिखराऊं गली गली ।
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
दोलत के दीवानों सुन लो एक दिन ऐसा आएगा,
धन योवन और रूप खजाना येही धरा रह जाएगा ।
सुन्दर काया माटी होगी, चर्चा होगी गली गली,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
प्यारे मित्र सगे सम्बंधी इक दिन तुझे भुलायेंगे,
कल तक अपना जो कहते अग्नि पर तुझे सुलायेंगे ।
जगत सराय दो दिन की है, आखिर होगी चला चली,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
क्यूँ करता है तेरी मेरी, छोड़ दे अभिमान को,
झूठे धंदे छोड़ दे बन्दे जप ले हरी के नाम को ।
दो दिन का यह चमन खिला है, फिर मुरझाये कलि कलि,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥
जिस जिस ने यह हीरे लुटे, वो तो मला माला हुए,
दुनिया के जो बने पुजारी, आखिर वो कंगाल हुए ।
धन दौलत और माया वालो, मैं समझाऊं गली गली,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, शोर मचाऊं गली गली ॥

~~~~●◆■★|| राम राम ||★■◆●~~~~
~~~●◆■★|| जय बजरंगी ||★■◆●~~~
~~~●◆■★|| जय हनुमान ||★■◆●~~~

Saturday 13 August 2016

राधा के रमण !, श्यामा के रमण !!

तुझ ही में  जी  मेरा , तुझ ही  में  मन  ,
तेरी ही शरण  , गहूँ  तेरे   ही   चरण  ,
तेरे    ही   प्यार  में,      तरसे   नयन  ,
राधा के  रमण !, श्यामा  के रमण !!
               *
जो कुछ  दिया तूने , तुझको अर्पण ,
तेरी  ही स्वांस  हैं ,तेरी ही धड़कन  ,
तेरी  ही   प्यासा  है,    मेरा    मन ,
राधा के  रमण !, श्यामा  के रमण !!
                *
तेरी ही चाह  है , तेरी  ही   तड़पन ,
तुझको निहारूं सदा ,मन  के दर्पण,
तेरा  प्यार   है , दिल  की   धड़कन ,
राधा के  रमण !, श्यामा  के रमण !!
                  *
मैं  भुला  , न     तुम  भूले     मुझे  ,
निज   हाथों   से   दिए  झूले  मुझे,
तेरा   प्यार लगा ,मीठी सी  चुभन ,
राधा के  रमण !, श्यामा  के रमण !!
                    *
अंतिम  स्वांसों  में  प्रभु आना   तुम ,
उस  घडी , प्रभु    ना भुलाना  तुम ,
मुझको दीखें    बस,तेरे  ही  चरण  ,
राधा के  रमण !, श्यामा  के रमण !!
                   *

Wednesday 10 August 2016

तू श्याम सावरे मेरी ज़िन्दगी है

कभी रूठ नाना मुझसे तू श्याम सावरे मेरी ज़िन्दगी है अब तेरे नाम सांवरे...
मेरा सांवरा सवेरा तेरे नाम से तेरे नाम से ही ज़िन्दगी की शाम सावरे...
कभी रूठ नाना मुझसे तू श्याम सावरे मेरी ज़िन्दगी है अब तेरे नाम सांवरे...

चिंतन हो सदा इस मन में तेरा चरणों में तेरे मेरा ध्यान रहे...
चाहे दुःख में रहू चाहे सुख में राहु...
होठो पे सदा तेरा नाम रहे तेरे नाम से ही मेरी पेहचान है...
तेरी सेवा में ही मेरा कल्याण है...
मेरा रोम~रोम करजायि है तेरे कितने गिनाऊँ एहसान सावरे...
कभी रूठ नाना मुझसे तू श्याम सावरे मेरी ज़िन्दगी है अब तेरे नाम सांवरे...

दिल तुमसे लगाना सिखा है तुमसे ही सिखा याराना...
जीवन को सवारा है तुमने बदले मे मैं दू क्या नज़राना...
मैंने दिल हारा ये भी तेरी प्रित है...हा प्रित है...
मेरी हार में भी श्याम मेरी जीत है ...हा जीत है...
बस दिल की यही है एक आरज़ू तुजे दिल का बना लू मेहमान सावरे...
कभी रूठ नाना मुझसे तू श्याम सावरे मेरी ज़िन्दगी है अब तेरे नाम सांवरे...

दुनिया के मैं क्या अवगुण देखु मेरे अवगुण कयी हज़ार प्रभु...
तुम अवगुण मेरे सब रख लोगे इतना है मुझे ऐतबार प्रभु...
मेरे अवगुणों से नज़रों को फेर लो...हा फेर लो...
अपनी बाहों में प्रभुजी मुझे घेर लो...हा घेर लो...
ऎसी किरपा करो ना इस दास पे रहे पाँपो ना कोई भी निशान सावरे...

कभी रूठ नाना मुझसे तू श्याम सावरे मेरी ज़िन्दगी है अब तेरे नाम सांवरे...
मेरा सांवरा सवेरा तेरे नाम से तेरे नाम से ही ज़िन्दगी की शाम सावरे...
कभी रूठ नाना मुझसे तू श्याम सावरे मेरी ज़िन्दगी है अब तेरे नाम सांवरे...

Tuesday 9 August 2016

सावन की आई है बहार

सावन की आई है बहार…चलो रे वृन्दावन में |
देखेंगे झांकी हज़ार…चलो रे वृन्दावन में ||

हर गलियों में श्याम मिलेंगे…
सखियों के संग ग्वाल मिलेंगे…
छोड़ दे सोच विचार…चलो रे वृन्दावन में…
सावन की आई है बहार…चलो रे वृन्दावन में…

माखन मिश्री खाओगे प्यारे…
रबड़ी मलाई चखाओगे प्यारे…
दही मिलेगा मजेदार…चलो रे वृन्दावन में…
सावन की आई है बहार…चलो रे वृन्दावन में…

रास रचाये कान्हा झूला झूले…
जमुना किनारे कान्हा गेंद को खेले…
देखेंगे लीला अपार…चलो रे वृन्दावन में…
सावन की आई है बहार…चलो रे वृन्दावन में…

टिकट कटालो मनसा बनालो…
चलना है " भक्त " मन से मनालो…
पायेंगे "" साँवरे "" का प्यार…चलो रे वृन्दावन में…
सावन की आई है बहार…चलो रे वृन्दावन में…

सावन की आई है बहार…चलो रे वृन्दावन में |
देखेंगे झांकी हज़ार…चलो रे वृन्दावन में ||

...✍ ʝaï ֆɦʀɛɛ kʀɨֆɦռa...✍

Wednesday 3 August 2016

भक्तकी प्रभुसे प्रार्थना



चलते-चलते कर्ममार्गमें
नाथ ! शिथिल मैं हो जाऊँ।
भव-सागरकी तरल वीचिमें
पड़कर जब घबरा जाऊँ ॥

कृपाशील होकर तुम मुझको
गीता-ज्ञान बता देना ।
अपने चरण-कमलमें; स्वामी !
मेरा चित्त लगा देना ॥

ईर्ष्या-द्वेष नष्ट हो जाये ,
हृदय प्रेमसे भर जाये ।
मन-मोहनकी सुन्दरतामें,
मेरा मानस मिल जाये ॥

जभी कामना मेरे अन्त
स्तलमें शोर मचायेगी ।
उथल-पुथल जब हो जायेगी,
हृत्तन्त्री बज जायेगी ॥

प्रियतम ! मुझको तब तुम कृपया
वंशी-तान सुना देना ।
पाप-पङ्कसे मुझे बचाना,
अपनी झलक दिखा देना ॥

भगवत्सेवासे प्रक्षालित
हो जाये निर्मल संसार ।
पशुताके भग्नावशेषपर
मानवताकी जय-जयकार ॥

॥ ओम नारायण ॥ ओम नारायण॥ ओम नारायण ॥ 


गीता प्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित 'भगन्नाम महिमा और प्रार्थना अंक' (कल्याण ) से

क्या करूँ अर्पण आपको

क्या करूँ अर्पण आपको…मेरे श्याम…
…गया था पुष्प लेने…जैसे ही छुआ…
…एक सिहरन सी हुई…क्यों तोड़ने लगा हूँ…
…ये तो आपकी ही कृति है…आपकी ही महक इसमें…मेरे सरकार…
…आपकी वस्तु आपको कैसे दूँ…

फिर सोचता हूँ…क्या अर्पण करूँ…मेरे घनश्याम…
…ये मन…ये तो सबसे मलिन है…
…अवगुणों से भरा हुआ…जिसमे कुछ रिक्त नहीं
…छल कपट भरे पड़े…प्रेम कहाँ रखूँगा आपका नहीं नहीं…
…ये कपटी मन योग्य नहीं…आपको अर्पण करने को…

…तो क्या अर्पण करूँ…मेरे गोविन्द…
अश्रु धारा निकल पड़ी…ये अश्रु भी धोखा हैं…
…प्रेम के नहीं…
ये तो अपने सुख के अभाव में निकले…
…आपकी याद में आते तो…यही अर्पण कर देता…
…पर नहीं…ये भी झूठे है…
…क्या अर्पण करूँ…
सब मलिन है…

क्या अर्पण करूँ…मेरे साँवरे…
…मेरी आत्मा…???
…ये तो नित्य आपका दास है…ये तो आपसे ही आया है…आपका ही है…
…यही आपको अर्पण…
…शेष तो सब छूटने वाला है…
…तो यही आत्मा आपको अर्पित है…
आपका ही दास है…
…आपकी ही शरण में है…


जय श्री कृष्णा
राधे राधे

Tuesday 2 August 2016

शिव शम्भो शम्भो शिव शम्भो महादेव

शिव शम्भो शम्भो शिव शम्भो महादेव
हर हर महादेव शिव शम्भो महादेव
हल हल धर शम्भो अनाथ नाथ शम्भो
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ नमः शिवाय
गंगाधर शिव गौरी शिव शम्भो शंकर साम्ब शिव
जय जगदीश्वर जय परमेश्वर हे जगदीश जगदीश्वर
विश्वाधार विश्वेश्वर शम्भो शंकर साम्ब शिव

भगवान शिव वैष्णव शिरोमणि हैं -
वैष्णवानाम यथा शम्भो ।
शिवजी गुरुतत्व भी हैं --
वन्दे बोधमयं नित्यम् गुरुम् शंकर रूपिणम् ।

हरि भक्ति और हरि नाम का आश्रय -
यही शिवजी की शिक्षाएं हैं ।
आदि शकराचार्य का सूत्र
भज गोविन्दम् मूढ़ मते ।

गाँजा- भाँग आदि पीना शिवजी की शिक्षा नहीं है
जैसा कि पाखण्डी करते हैं ।

अतः हरि नाम जपिये --
मंगल भवन अमंगल हारी ।
उमा सहित जेहिं जपत पुरारी ।।

हरि सेवा के लिए ही शिवजी हनुमान बने ।
हर और हरी का रस एक सामान है ,
व्याकरण रूप से भी हर और हरी का अर्थ एक समान ही है ,
रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌ ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌ ॥
गीत ।8।23।
भावार्थ :  मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ।
मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥23॥

शिव को राम और राम को शिव , अति प्रिय हैं।
जो भोलेनाथ को प्रिय हैं ,
उनके स्मरण मात्र से भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं ।
** शिव शाबर मंत्र –
” हरि ॐ नमः शिवाय, शिव गुरु रामाय ”

Monday 1 August 2016

जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

जगतमें दु:ख भरे नाना । 
प्रेमधर्मकी रीति समझकर सब सहते जाना॥ 
जगतमें दु:ख भरे नाना ।। टेक ॥

झूठे वैभव पर क्यों फूला,
यह तो उँचा-नीचा झूला ।
धन-यौवनके चंचल-बलपर, कभी न इतराना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

नीति-सहित कर्तव्य निभाना,
अपने-अपने खेल दिखाना ।
सन्यासी हों या गृहस्थ हों, रंक हों कि राना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

उठना गिरना हँसना रोना,
पर चिन्तामें कभी न सोना ।
कर्मबंधके बीज न बोना, सत्य-योग-ध्याना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

ईश्वर एक, भरा हम सबमें,
श्रद्धा रहे राम या रबमें ।
'सबके सुखमें अपने सुख' का तत्व न बिसराना॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

दिव्य गुणोंकी कीर्ति बढ़ाना,
जग-जीवनको स्वर्ग बनाना ।
दुनियाका नंदन वन फूले, यह रस बरसाना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

सबही शास्त्र बने है सच्चे,
किन्तु समझनेमें हम कच्चे ।
पक्षपातका रंग चढ़ाकर, क्यों भ्रम फैलाना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

अविवेकी चक्कर खाता है,
तब लड़ना भिड़ना भाता है।
रागद्वेषसे बैर बसाकर, धर्म न लजवाना ॥
. जगतमें दु:ख भरे नाना ॥
॥ ओम नारायण ॥

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर बोले नमः शिवाय

रामेश्वराय शिव रामेश्वराय
हर हर बोले नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर बोले नमः शिवाय

गंगाधराय शिव गंगाधाराय
हर हर बोले नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर बोले नमः शिवाय

जटाधाराय शिव जटाधाराय
हर हर बोले नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर बोले नमः शिवाय

सोमेश्वराय शिव सोमेश्वराय
हर हर बोले नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर बोले नमः शिवाय

विश्वेशराय शिव विश्वेशराय
हर हर बोले नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर बोले नमः शिवाय

कोटेश्वराय शिव कोटेश्वराय
हर हर बोले नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर बोले नमः शिवाय
 

 हर हर महादेव

महादेव आजकल मौन हैं

महादेव” आजकल मौन हैं
नित्य हलाहल पीते हैं
संपूर्ण जगत विषैला जो हो गया है
“नील कंठ” का पूरा वर्ण
अब नीला हो गया है
“रुद्र वीणा” अब राग “विहाग” गाती है
“भैरव” को किसी श्मसान की
आवश्यकता नही रही
चलते फिरते लोग प्रायः मृतसमान हैं
शरीर जीवित है, आत्मा मृत
गण में मानव में भेद नही
क्या ये प्रकृति का उच्छेद नही
“शिव” भक्त रुद्राक्ष धारण कर रहे हैं
“रुद्र” की पीड़ा का उन्हे तनिक भी भान नही
अज्ञानी हैं, क्या जाने
आँखे मूंद कर विष पीना इतना आसान नही
“गंगाधर” के जल की धारा संकीर्ण हो रही है
मानव के उच्छेद की प्रक्रिया विस्तीर्ण हो रही है
“नागेश्वर” के गले मे आज भी सर्प है
ग्लानिहीन मनुष्य को व्यर्थ का दर्प है
सर्वश्रेष्ठ प्राणी – मनुष्य विवेकहीन सिल गया
पाशविकता जैसे उसके रक्त मे मिल गया
मानव में मानवता का तुम विश्वास भरो
हे “पशुपतिनाथ” अब मानव का त्रास हरो
ज्यूँ पृथ्वी मानवता भूलने लगी है
“व्योमकेश” की जटा खुलने लगी है
“नटराज” का बायाँ पाँव उठने को आतुर
किसी प्रत्याशित तांडव को निमंत्रण दे रहा है
एक नूतन सृष्टि के निर्माण का
ब्रह्मा को नियंत्रण दे रहा है|||||

तू क्यूँ घबराता है

तू क्यूँ घबराता है...तेरा श्याम से नाता है।
जब मालिक है सिर पे...क्यूँ जी को जलाता है।।

तू देख विनय करके...तेरी लाज बचायेगा।
तू जब भी बुलायेगा...हर बार वो आयेगा।
अपने प्रेमी को दुखी...वो देख ना पाता है।।
तू क्यूँ घबराता है...तेरा श्याम से नाता है...

जब कुछ ना दिखाई दे...तू श्याम का ध्यान लगा।
मेरा श्याम सहारा है...मन में विश्वास जगा।
जब श्याम कृपा होती...रस्ता मिल जाता है।।
तू क्यूँ घबराता है...तेरा श्याम से नाता है...

तेरी हर मुश्किल को...चुटकी में ये हल कर दे।
कोई दाव चलाये तो...ये झट से विफल कर दे।
कोई ना जान सके...किस रूप में आता है।।
तू क्यूँ घबराता है...तेरा श्याम से नाता है...

पड़ती जो जरूरत है...आता ये तब~तब है।
भक्त का ये अनुभव है...यहाँ सब कुछ सम्भव है।
मेरे श्याम की लीला को...कोई समज ना पता है।।
तू क्यूँ घबराता है...तेरा श्याम से नाता है...

तू क्यूँ घबराता है...तेरा श्याम से नाता है।
जब मालिक है सिर पे...क्यूँ जी को जलाता है।।


जय श्री कृष्ण
राधे राधे