चलते-चलते कर्ममार्गमें
नाथ ! शिथिल मैं हो जाऊँ।
भव-सागरकी तरल वीचिमें
पड़कर जब घबरा जाऊँ ॥
कृपाशील होकर तुम मुझको
गीता-ज्ञान बता देना ।
अपने चरण-कमलमें; स्वामी !
मेरा चित्त लगा देना ॥
ईर्ष्या-द्वेष नष्ट हो जाये ,
हृदय प्रेमसे भर जाये ।
मन-मोहनकी सुन्दरतामें,
मेरा मानस मिल जाये ॥
जभी कामना मेरे अन्त
स्तलमें शोर मचायेगी ।
उथल-पुथल जब हो जायेगी,
हृत्तन्त्री बज जायेगी ॥
प्रियतम ! मुझको तब तुम कृपया
वंशी-तान सुना देना ।
पाप-पङ्कसे मुझे बचाना,
अपनी झलक दिखा देना ॥
भगवत्सेवासे प्रक्षालित
हो जाये निर्मल संसार ।
पशुताके भग्नावशेषपर
मानवताकी जय-जयकार ॥
॥ ओम नारायण ॥ ओम नारायण॥ ओम नारायण ॥
गीता प्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित 'भगन्नाम महिमा और प्रार्थना अंक' (कल्याण ) से
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