Saturday 20 August 2016

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई
था घनघोर अंधेरा कैसी रात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई
था घनघोर अंधेरा कैसी रात होगई...

था बंधी खाना जनम लियो कान्हा
वो तब का ज़माना पुराना
ताले लगाना ये पहरे बिठाना
कंस का ज़ूलूम उठाना
उस रात का दृश्य भयंकर था
उस कंस को मारने का डर था
बादल छाए मन्ड्राए बरसात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

खुल गये ताले सोये थे रखवाले
हांथों में बरच्चियाँ भाले
वो दिल के काले पड़े थे पाले
वो काल के हवाले होने वाले
वासुदेव ने श्याम को उठाया था
टोकरी में श्री श्याम को लेटाया था
गोकुल धाये हर्षाए कैसी बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

घटाये थी काली अजब मतवाली
की टोकरी में मोहन मुरारी
सहस फन धारी करे रखवाली
की यमुना ने बात विचारी
श्री श्याम आये है भक्तो के हितकारी
इनके चरणों में जाऊ बलिहारी
जाऊ में वारि बलिहारी मुलाकात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई...

खुल गये सारे ताले वाह क्या बात होगई
जब थे जनमे कन्हैया करामात होगई
था घनघोर अंधेरा कैसी रात होगई...

( तर्ज : तूने काजल लगाया दिन में रात होगई )

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