Wednesday 3 August 2016

क्या करूँ अर्पण आपको

क्या करूँ अर्पण आपको…मेरे श्याम…
…गया था पुष्प लेने…जैसे ही छुआ…
…एक सिहरन सी हुई…क्यों तोड़ने लगा हूँ…
…ये तो आपकी ही कृति है…आपकी ही महक इसमें…मेरे सरकार…
…आपकी वस्तु आपको कैसे दूँ…

फिर सोचता हूँ…क्या अर्पण करूँ…मेरे घनश्याम…
…ये मन…ये तो सबसे मलिन है…
…अवगुणों से भरा हुआ…जिसमे कुछ रिक्त नहीं
…छल कपट भरे पड़े…प्रेम कहाँ रखूँगा आपका नहीं नहीं…
…ये कपटी मन योग्य नहीं…आपको अर्पण करने को…

…तो क्या अर्पण करूँ…मेरे गोविन्द…
अश्रु धारा निकल पड़ी…ये अश्रु भी धोखा हैं…
…प्रेम के नहीं…
ये तो अपने सुख के अभाव में निकले…
…आपकी याद में आते तो…यही अर्पण कर देता…
…पर नहीं…ये भी झूठे है…
…क्या अर्पण करूँ…
सब मलिन है…

क्या अर्पण करूँ…मेरे साँवरे…
…मेरी आत्मा…???
…ये तो नित्य आपका दास है…ये तो आपसे ही आया है…आपका ही है…
…यही आपको अर्पण…
…शेष तो सब छूटने वाला है…
…तो यही आत्मा आपको अर्पित है…
आपका ही दास है…
…आपकी ही शरण में है…


जय श्री कृष्णा
राधे राधे

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