Friday 23 June 2017

श्री राधा कृष्णाय नमः


चन्द्रमुखी चंचल चितचोरी,
जय श्री राधा
सुघड़ सांवरा सूरत भोरी,
जय श्री कृष्ण
श्यामा श्याम एक सी जोड़ी
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

पंच रंग चूनर, केसर न्यारी,
जय श्री राधा
पट पीताम्बर, कामर कारी,
जय श्री कृष्ण
एकरूप, अनुपम छवि प्यारी
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

चन्द्र चन्द्रिका चम चम चमके,
 जय श्री राधा
मोर मुकुट सिर दम दम दमके,
 जय श्री कृष्ण
जुगल प्रेम रस झम झम झमके
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

कस्तूरी कुम्कुम जुत बिन्दा,
जय श्री राधा
चन्दन चारु तिलक गति चन्दा,
 जय श्री कृष्ण
सुहृद लाड़ली लाल सुनन्दा
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

घूम घुमारो घांघर सोहे,
जय श्री राधा
कटि कटिनी कमलापति सोहे,
 जय श्री कृष्ण
कमलासन सुर मुनि मन मोहे
*श्री राधा कृष्णाय नमः*

रत्न जटित आभूषण सुन्दर,
जय श्री राधा
कौस्तुभमणि कमलांचित नटवर,
जय श्री कृष्ण
तड़त कड़त मुरली ध्वनि मनहर
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

राधा राधा कृष्ण कन्हैया ,
जय श्री राधा
भव भय सागर पार लगैया ,
जय श्री कृष्ण .
मंगल मूरति मोक्ष करैया
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

मन्द हसन मतवारे नैना,
जय श्री राधा
मनमोहन मनहारे सैना,
जय श्री कृष्ण
मृदु मुसकावनि मीठे बैना
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

श्री राधा भव बाधा हारी,
जय श्री राधा
संकत मोचन कृष्ण मुरारी,
जय श्री कृष्ण
एक शक्ति, एकहि आधारी
*श्री राधा कृष्णाय नमः*

जग ज्योति, जगजननी माता,
 जय श्री राधा
जगजीवन, जगपति, जग दाता,
 जय श्री कृष्ण
जगदाधार, जगत विख्याता
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

राधा, राधा, कृष्ण कन्हैया,
जय श्री राधा
भव भय सागर पार लगैया,
जय श्री कृष्ण
मंगल मूरति, मोक्ष करैया
*श्री राधा कृष्णाय नमः* 🌸👏🏼

सर्वेश्वरी सर्व दुःखदाहनि,
जय श्री राधा
त्रिभुवनपति, त्रयताप नसावन,
 जय श्री कृष्ण
परमदेवि परमेश्वर पावन
*श्री राधा कृष्णाय नम:*

त्रिसमय युगल चरण चित ध्यावे,
 जय श्री राधा
सो नर जगत परम पद पावे ,
जय श्री कृष्ण
श्री राधाकृष्ण "भक्त" मन भावे
*श्री राधा कृष्णाय नम :* 
 *श्री राधे श्री कृष्ण श्री राधे श्री कृष्ण*

हे नाथ


मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...
हे! पावन परमेश्वर मेरे, 
मन ही मन शरमाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

तुने मुझको जग में भेजा, 
निर्मल देकर काया...
आकर के संसार में मैंने, 
इसको दाग लगाया...
जनम जनम की मैली चादर, 
कैसे दाग छुड़ाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

निर्मल वाणी पाकर तुझसे, 
नाम न तेरा गाया...
नयन मूंद कर हे परमेश्वर, 
कभी न तुझको ध्याया...
मन वीणा की तारे टूटी, 
अब क्या गीत सुनाऊं....
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

नेक कमाई करी न कोई, 
जग की माया जोड़ी...
जोड़ के नाते इस दुनिया से, 
तुम संग प्रीति तोड़ी...
करम गठरिया सिर पे राखे, 
पग भी चल न पाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

इन पैरों से चल के तेरे , 
मंदिर कभी न आया...
जहाँ जहां हो पूजा तेरी, 
कभी न शीश झुकाया...
हे हरिहर मैं हार के आया, 
अब क्या हार चढ़ाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

हे! पावन परमेश्वर मेरे, 
मन ही मन शरमाऊं...
मैली चादर ओढ़ के कैसे, 
द्वार तिहारे आऊं...

*💙 जय श्री कृष्ण*

Thursday 22 June 2017

सोलह श्रृंगार

सीता जी ने पूछा मैया से
बताओ ---- माँ एक सार !
विवाहोपरांत --- हर नारी
क्यों करती सोलह श्रृंगार!!

मैया ने -----मीठी वाणी में 
समझाई ------- हर बात !
सोलह श्रृंगार से पूर्ण होती
धरा पर ------- नारी जात !!

मेंहदी ---को हर समय
अपने हाथों में रचाना !
कर्मो  की  लालिमा से
सारा जग -- महकाना !!

आँखों में प्रेम बसा कर
काजल  उनमें लगाना !
भलै सम्पति खो जाये
पर , शील जल बचाना!!

सूर्य की भाँति प्रकाशवान हो
छोड़ देना -- शरारत -- जिद्दी !
इसिलिए तो ---- नारी लगाये 
अपने माँथे पर ------- बिन्दी !!

मन को  काबू में  करके 
लगा देना उस पर लगाम !
नारी की नाक की नथनी
देती है - यह सुंदर पैगाम !!

बूरे कर्म से परहेज करना
यश कमाना ---- भरपूर !
पतिव्रत धर्म का  पालन 
यह सिखलाता है -सिंदूर !!

खुद की प्रशंसा सुनने की
मत करना तुम ---- भूल !
हर  हाल  में खुश  रहना 
शिक्षा यह देता कर्णफूल !!

सबके मन को मोहने वाले
कर्म करना तू ------ बाला !
सुख - दुख में --सम रहना 
यह सीख देती मोहन माला !!

सीघा-सादा जीवन रखना
मत करना तुम ----- फंद !
इसिलिए तो -- नारी बाँधे
अपने हाथ में -- बाजूबंद !!

कभी किसी में छल न करना
रुपया हो या -------- गल्ला !
कमर में --- लटकाये रखना
अपना --------- सुंदर छल्ला !!

बड़े - बूढ़ो की सेवा करके
कर देना उनको --- कायल !
घर-आँगन छनकाती रहना 
अपने पैरों की ----- पायल !!

छोटो को  आशीष  देना
खबरदार-जो उनसे रुठी !
हाथों की --अँगुलियों में 
पहने रखना ---- अँगूठी !!

परिवार को बिछड़ने न देना
रखना सबको ------- साथ !
पैरों की बिछिया --- प्यारी
बतलाती ------- यह बात !!

कठोर वाणी का त्याग कर
करना सबका ---- मंगल !
जीवन को - रंगो से भरना 
पहने रखना ------ कंगन !!

कमरबंद की  भाँति तुम
सेवा में ------- बँध जाना !
पति के संग - --संग तुम
पूरे परिवार को अपनाना !!

Wednesday 21 June 2017

कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब

तर्ज़:कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब

सेठ कहे तुझे सेठ साँवरा,दीन कहे तुझे दीनानाथ
तुम्हीं बताओ सेठ साँवरा,हो या तुम दीनों के नाथ ||

सेठ भरे तेरी हाजरी,करते हैं तेरा मनुवार ..
दीन करे तेरी चाकरी,आते दर पर ले परिवार
एक भरोसा तेरा मुझको,लाज मेरी है तेरे हाथ ||1||

मैं जो तुझे बुलाना चाहूँ,घर आँगन में मेरे श्याम ...
सोच-सोच कर मैं शरमाऊं,कहाँ बिठाऊंगा तुझे श्याम
नहीं बिछाने को है चादर, नहीं है सर पर मेरे छात ||2||

सुदामा के तन्दुल भाये,झूठे बैर शबरी के खाये .........
दुर्योधन का महल त्याग कर,विदुराईन के घर तुम आये
कब आओगे घर तुम मेरे,'टीकम' से तुम करने बात ||3||

जै श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णायसमर्पणं

तुमको लाखों प्रणाम

||श्रीहरिः||

हरि का नाम जपानेवाले, हरि का नाम जपानेवाले,
गीता पाठ पढ़ानेवाले, गीता रहस्य बतानेवाले,
जग की चाह छुड़ानेवाले, प्रभु से संबंध जुड़ानेवाले,
प्रभुकी याद दिलानेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥टेक॥
जग में महापुरुष नहिं होते, सिसक सिसक कर सब ही रोते,
आँसू पोंछनेवाले, सबका आँसू पोंछनेवाले,
सबकी पीड़ा हरनेवाले, सबकी जलन मिटानेवाले,
सबको गले लगानेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥१॥
जनम मरन के दुख से मारे, भटक रहे हैं लोग बिचारे,
पथ दरशानेवाले, प्रभु का पथ दरशानेवाले,
प्रभु का मार्ग दिखानेवाले, सत का संग करानेवाले,
हरि के सनमुख करनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥२॥
उच्च नीच जो भी नर नारी, संशय हरनेवाले, सबका संशय हरनेवाले,
सबका भरम मिटानेवाले, सबकी चिन्ता हरनेवाले,
सबको आसिस देनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥३॥
हम तो मूरख नहीं समझते, संतन का आदर नहिं करते,
नित समझानेवाले, हमको नित समझानेवाले,
हमसे नहिं उकतानेवाले, हमपर क्रोध न करनेवाले,
हमपर किरपा करनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥४॥
अब तो भवसागर से तारों, शरण पड़े हम बेगि उबारो,
पार लगानेवाले, हमको पार लगानेवाले,
हमको पवित्र करनेवाले, हमपर करुणा करनेवाले,
हमको अपना कहनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥५॥

Tuesday 13 June 2017

कृष्णा तुम पर क्या लिखूं !


कृष्णा तुम पर क्या लिखूं ! कितना लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं !

प्रेम का सागर लिखूं या चेतना का चिंतन लिखूं !
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं !

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय चराने वाला लिखूं !
कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का रखवाला लिखूं।

पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगश्वर लिखूं !
विश्व चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं !

जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं !
देवकी की गोद लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं !

गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।
रुक्मणी का श्री लिखूं या सत्यभामा-श्रीतम लिखूं।

देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।
वासुदेव का तनय लिखूं या नन्दगोपाल लिखूं।

नदियों सा बहता लिखूं या सागर सा गहरा लिखूं।
झरनों सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।

आत्मतत्व वेत्ता लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं !
स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

Saturday 10 June 2017

जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे

जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

खग मृग व्याध पषान विटप जड़, यवन कवन सुर तारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज, सब माया-विवश बिचारे ।
तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।

Friday 9 June 2017

जमाने को रंग बदलते देखा

मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा हे,
उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है।

वो जो चलते थे तो,
शेर के चलने का होता था गुमान।

उनको भी पाँव उठाने के लिए
सहारे को तरसते देखा है।

जिनकी नजरों की चमक,
देख सहम जाते थे लोग।

उन्ही नजरों को,
बरसात की तरह रोते देखा है।

जिनके हाथों के जरा से,
इशारे से टूट जाते थे पत्थर।

उन्ही हाथों को पत्तों की तरह,
थर-थर काँपत हुएे देखा है।

जिनकी आवाज़ से कभी बिजली के,
कड़कने का होता था भरम।

उनके होठों पर भी जबरन,
चुप्पी का ताला लगा देखा है।

ये जवानी,ये ताकत,ये दौलत,
सब कुदरत की इनायत है।

इनके रहते हुए भी इंसान को,
बेजान हुआ देखा है।

अपने आज पर इतना ना इतराना मेरे यारों,
वक्त की धारा में अच्छे अच्छों को मजबूर हुआ देखा है।

 कर सको तो किसी को खुश करो,
दुःख देते हुए तो हजारों को देखा है।

Thursday 8 June 2017

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम.....

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम.....

चरण पादुका लेकर सब से पूछ रहे रसखान॥
वो नन्ना सा बालक है, सांवली सी सूरत है,बाल घुंघराले उसके, पहनता मोर मुकुट है।

नयन उसके कजरारे, हाथ नन्ने से प्यारे,बांदे पैजन्यिया पग में, बड़े दिलकश हैं नज़ारे।

घायल कर देती है दिल को, उसकी इक मुस्कान॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

समझ में आया जिसका पता तू पूछ रहा है,वो है बांके बिहारी, जिसे तू ढूंढ रहा है।

कहीं वो श्याम कहाता, कहीं वो कृष्ण मुरारी,कोई सांवरिया कहता, कोई गोवर्धन धारी।

नाम हज़ारो ही हैं उसके कई जगह में धाम॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

मुझे ना रोको भाई, मेरी समझो मजबूरी,श्याम से मिलने देदो, बहुत है काम ज़रूरी।

सीडीओं पे मंदिर के दाल कर अपना डेरा,कभी तो घर के बाहर श्याम आएगा मेरा।

इंतज़ार करते करते ही सुबह से हो गई श्याम॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

जाग कर रात बिताई भोर होने को आई,तभी उसके कानो में कोई आहात सी आई।

वो आगे पीछे देखे, वो देखे दाए बाए,वो चारो और ही देखे, नज़र कोई ना आए।

झुकी नज़र तो कदमो में ही बैठा नन्ना श्याम॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

ख़ुशी से गदगद होकर गोद में उसे उठाया,लगा कर के सीने से बहुत ही प्यार लुटाया।

पादुका पहनाने को पावं जैसे ही उठाया,नज़ारा ऐसा देखा कलेजा मूह को आया।

कांटे चुभ चुभ कर के घायल हुए थे नन्ने पावं॥बताओ कहाँ मिलेगा श्याम…

खबर देते तो खुद ही तुम्हारे पास मैं आता,ना इतने छाले पड़ते ना चुबता कोई काँटा।

छवि जैसी तू मेरी बसा के दिल में लाया,उसी ही रूप में तुमसे यहाँ मैं मिलने आया।

गोकुल से मैं पैदल आया तेरे लिए बृजधाम॥भाव के भूखे हैं भगवान्…

श्याम की बाते सुनकर कवि वो हुआ दीवाना,कहा मुझको भी देदो अपने चरणों में ठिकाना।

तू मालिक है दुनिया का यह मैंने जान लिया है,लिखूंगा पद तेरे ही आज से ठान लिया है।

श्याम प्रेम रस बरसा ‘सोनू’ खान बना रसखान॥भाव के भूखे हैं भगवान्…

कांटो पर चलकर के रखते अपने भगत का मान।
भाव के भूखे हैं मेरे भगवान्....

सुधाधारा


 जगत में साधु-संग प्रथम साधन ।
           कहते है भगवान रामनारायण ॥  

कुछ न भुवन में,  साधु-संग के समान ।
          साधु-संग गुण पाते महापापी त्राण ॥   
साधु-संग पाये जीव नामरुपी वित्त ।
        जपते ही जपते उसका भर जाये चित्त ॥

नाम के नशे में झुले,  हँसे नाचे गाये ।
      परमानन्द सागर में,  डुबे और उतराये ॥

साधु का सहारा नाम सर्व-धन सार ।
     नाम के ही बल से करते पापी का उद्धार॥

मरुभूमि में मिले न जल कभी जैसे मानो ।
     जगत में भी सुख की आशा वैसे ही जानो॥

सकल असार यदि समझा है मन ।
        शीघ्र ही शरण लो साधु के चरण ॥

साघु कृपा हो यदि नहीं और भय ।
     गाओ दास सीताराम जय नाम जय ॥
===============================
  - श्रीश्री सीतारामदास ओंकारनाथदेव -

Saturday 3 June 2017

श्रीगङ्गास्तोत्र

॥ श्रीगङ्गास्तोत्र ॥
.
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरल तरङ्गे ।
शङ्कर मौलिविहारिणि विमले मम मति रास्तां तव पद कमले ॥ १॥
.
भागिरथि सुखदायिनि मातः तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्नानम् ॥ २॥
.
हरि पद पाद्य तरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृति भारं कुरु कृपया भव सागर पारम् ॥ ३॥
.
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४॥
.
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डित गिरिवरमण्डित भङ्गे ।
भीष्म जननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ ५॥
.
कल्पलतामिव फलदाम् लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवति कृततरलापाङ्गे ॥ ६॥
.
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ ७॥
.
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८॥
.
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमति कलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९॥
.
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तट निकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १०॥
.
वरमिह मीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनः तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ ११॥
.
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२॥
.
येषां हृदये गङ्गा भक्तिः तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकन्ता पञ्झटिकाभिः परमानन्दकलित ललिताभिः ॥ १३॥
.
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदम् विमलं सारम् ।
शङ्करसेवक शङ्कर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तम् ॥ १४॥
.
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं गङ्गास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्री राधे कीशोरी जूं

करदो कृपा की इक नजर हे लाडली राधे ,
हे लाडली राधे , हे लाडली राधे , 
भटकाओ न यूं दर बदर हे लाडली राधे
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

किसको कहुँ मैं अपना कोई नहीं है मेरा ,
मतलब के नाते तोड़े पकड़ा है दामन तेरा
पल पल मैं तड़पा इस कदर हे लाडली राधे ,
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

हमराही थे जो कल तक देते नहीं दिखाई ,
गैरों से कैसा शिकवा अपनों से चोट खाई
तडपे है दिल दर्दे जिगर हे लाडली राधे ,
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

थक सा गया हूँ लाडली मंज़िल मिली नहीं ,
पतझड़ सा मेरा जीवन कोई कली खिली नहीं
मेरी आके लेना तुम खबर हे लाडली राधे ,
करदो कृपा की इक नजर *हे लाडली राधे...*

कोई नहीं है मेरा श्यामा तुम्ही हो मेरी ,
जीवन ये बीता जाए अब तुम करो न देरी .
भटके न चित्र विचित्र डगर हे लाडली राधे ,
भटकाओ न यूं दर बदर *हे लाडली राधे...*

*करदो कृपा की इक नजर हे लाडली राधे ,*
*हे लाडली राधे , हे लाडली राधे ,* 🌸

*जय श्री राधे.

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं


*अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं,* 
*राम नारायणं जानकी वल्लभं ||* 🌸

कौन कहता है भगवान आते नहीं, 
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं |

*अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं,* 
*राम नारायणं जानकी वल्लभं ||* 🌸

कौन कहता है भगवान खाते नहीं, 
बेर शबरी के जैसे खिलते नहीं |

*अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं,* 
*राम नारायणं जानकी वल्लभं ||* 🌸

कौन कहता है भगवान सोते नहीं, 
माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं |

*अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं,* 
*राम नारायणं जानकी वल्लभं ||*

कौन कहता है भगवान नाचते नहीं, 
तुम गोपी के जैसे नचाते नहीं |

*अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं,* 
*राम नारायणं जानकी वल्लभं ||* 🌸

कौन कहता है भगवान नचाते नहीं, 
गोपियों की तरह तुम नाचते नहीं |

*अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं,* 
*राम नारायणं जानकी वल्लभं ||* 🌸

जय श्री कृष्ण.

Friday 2 June 2017

जरी की पगड़ी बांधे वो सुंदर आँखों वाला

जरी की पगड़ी बांधे वो सुंदर आँखों वाला, 
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे प्यारा |

कानो में कुंडल साजे सर मोर मुकुट विराजे, 
संखियाँ पगली होती जब होठों पे बंसी बाजे, 
है चंदा ये सांवरा तारे ग्वाल बाला ....
कितना सुंदर लागे बिहारी..........

लट घुंगराले बाल तेरे कारे कारे गाल, 
सुंदर श्याम सलोना तेरी टेडी मेढ़ी चाल, 
हवा में सर सर करता तेरा पीताम्बर मतवाला.....
कितना सुंदर लागे बिहारी ..........

मुख पे माखन मलता तू बल घुटनों के चलता, 
देख यशोदा मात को देवो का मन भी जलता 
माथे पे तिलक है सोहे आँखों में काजल डाला.......
कितना सुंदर लागे बिहारी.........

तू जब बंसी बजाये तब मोर भी नाच दिखाए, 
यमुना में लहरें उठती और कोयल कुह कुह गाये,
हाथ में कंगन पहने और गल वैजन्ती माला......
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे प्यारा 
जरी की पगड़ी बांधे वो सुंदर आँखों वाला, 
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे प्यारा |

चित्र-विचित्र मण्डपों से है शोभित अवधपुरी रमणीय

चित्र-विचित्र मण्डपों से है शोभित अवधपुरी रमणीय।
सर्वकाम सब सिद्धिप्रदायक उसमें कल्पवृक्ष कमनीय॥
उसके मूलभाग में शोभित परम मनोहर सिंहासन।
अति अमूल्य मरकत, सुवर्ण, नीलम से निर्मित अतिशोभन॥

दिव्य कान्ति से करता वह अति गहरे अन्धकार का नाश।
होता रहता उससे दुर्लभ विमल ज्ञान का सहज प्रकाश॥
उसपर समासीन जन-मन के मोहन राघवेन्द्र भगवान।
श्रीविग्रहका रंग हरित-द्युति-श्यामल दूर्वापत्र समान॥

उज्ज्वल आभा से आलोकित दिव्य सच्चिदानन्द-शरीर।
देवराज-पूजित हरता जो सत्वर जन-मन की सब पीर॥
प्रभु के सुन्दर मुखमण्डल की सुषमा का अतिशय विस्तार।
देता रहता जो राका के पूर्ण सुधाधर को धिक्कार॥

उसकी अति कमनीय कान्ति भी लगती अति अपार फीकी।
राघव के वदनारविन्द की अनुपम छबि विचित्र नीकी॥
लसित अष्टमी के शशांक की सुषमा तेजपुञ्ज शुभ भाल।
काली घुँघराली अलकावलि की सुन्दरता विशद विशाल॥

दिव्य मुकुट के मणि-रत्नों की रश्मि कर रही द्युति-विस्तार।
मकराकार कुण्डलोंका सौन्दर्य वर्णनातीत अपार॥
सुन्दर अरुण ओष्ठ विद्रुम-सम, दन्तपंक्ति शशि-किरण-समान।
अति शोभित जिह्वस्न ललाम अति जपापुष्प सम रंग सुभान॥

कबु-कंठ, जिसमें ऋक् आदिक वेद-शास्त्र करते नित वास।
श्रीविग्रह की शोभा वर्धित करते ये सब अंग-विलास॥
केहरि-कंधर-पुष्ट समुन्नत कंधे प्रभु के शोभाधाम।
भुज विशाल, जिन पर अति शोभित कङङ्कण-केयूरादि ललाम॥

हीरा-जटित मुद्रिका की शोभा देदीप्यमान सब काल।
घुटनों तक लंबे अति सुन्दर राघवेन्द्र के बाहु विशाल॥
विस्तृत वक्षःस्थल लक्ष्मी-निवास से अतिशय शोभासार।
श्रीवत्सादि चिह्नसे अङिङ्कत परम मनोहर नित्य उदार॥

उदर रुचिर गम्भीर नाभि, अति सुन्दर सुषमामय कटिदेश।
मणिमय काञ्ची से सुषमा श्री‌अंगों की बढ़ रही विशेष॥
जङ्घा विमल, जानु अति सुन्दर, चरण-कमल की कान्ति अपार।
अंकुश-यव-वज्रादि चिह्नसे अंकित तलुवे शोभागार॥

योगिध्येय श्रीराघवके श्रीविग्रहका जो करते ध्यान।
प्रतिदिन शुभ उपचारोंसे जो पूजन करते हैं मतिमान॥
वे प्रिय जन प्रभु के होते, नित उन्हें पूजते सब सुर-भूप।
दुर्लभ भक्ति प्राप्त करते वे राघवेन्द्र की परम अनूप॥

तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में

तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,
चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में।

पल भर में आती पल भर में जाती थी वो।
छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।

बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा,
कोई तिनका था, ईंट उसकी कोई गारा।

कड़ी मेहनत से घर जब उसका बन गया,
आए खुशी के आँसू और सीना तन गया।

कुछ दिन बाद मौसम बदला और हवा के झोंके आने लगे,
नन्हे से प्यारे प्यारे दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।

पाल पोसकर कर रही थी चिड़िया बड़ा उन्हे,
पंख निकल रहे थे दोनों के पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे।

इच्छुक है हर इंसान कोई जमीन आसमान के लिए,
कोशिश थी जारी उन दोनों की एक ऊंची उड़ान के लिए।

देखता था मैं हर रोज उन्हें जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए ,
पंख निकलने पर दोनों बच्चे मां को छोड़ अकेला उड़ गए।

चिड़िया से पूछा मैंने तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,
तू तो थी मां उनकी फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए।

इंसान के बच्चे अपने मां बाप का घर नहीं छोड़ते,
जब तक मिले न हिस्सा अपना, रिश्ता नहीं तोड़ते ।

चिड़िया बोली परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है,
आज के इंसान का बच्चा मोह माया के दरिया में गर्क है।

इंसान का बच्चा पैदा होते ही हर शह पर अपना हक जमाता है,
न मिलने पर वो मां बाप को कोर्ट कचहरी तक ले जाता है।

मैंने बच्चों को जन्म दिया पर करता कोई मुझे याद नहीं,
मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे,क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं

अति सुंदर पंक्तियां -

समय की .. इस अनवरत बहती धारा में .. 
अपने चंद सालों का .. हिसाब क्या रखें .. !! 

जिंदगी ने .. दिया है जब इतना .. बेशुमार यहाँ .. 
तो फिर .. जो नहीं मिला उसका हिसाब क्या रखें .. !! 

दोस्तों ने .. दिया है .. इतना प्यार यहाँ .. 
तो दुश्मनी .. की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !! 

दिन हैं .. उजालों से .. इतने भरपूर यहाँ .. 
तो रात के अँधेरों का .. हिसाब क्या रखे .. !! 

खुशी के दो पल .. काफी हैं .. खिलने के लिये .. 
तो फिर .. उदासियों का .. हिसाब क्या रखें .. !! 

हसीन यादों के मंजर .. इतने हैं जिंदगानी में .. 
तो चंद दुख की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !! 

मिले हैं फूल यहाँ .. इतने किन्हीं अपनों से .. 
फिर काँटों की .. चुभन का हिसाब क्या रखें .. !! 

चाँद की चाँदनी .. जब इतनी दिलकश है .. 
तो उसमें भी दाग है .. ये हिसाब क्या रखें .. !! 

जब खयालों से .. ही पुलक .. भर जाती हो दिल में .. 
तो फिर मिलने .. ना मिलने का .. हिसाब क्या रखें .. !! 

कुछ तो जरूर .. बहुत अच्छा है .. सभी में यारों .. 
फिर जरा सी .. बुराइयों का .. हिसाब क्या रखें .. !!!

ये रंग तेरा

*ये रंग तेरा, कभी उतरे ना,**
*कुछ ऐसा कर दे साँवरिया**

*मेरा अंग-अंग हो, रंग मेँ तेरे-**
*कुछ ऐसा कर दे साँवरिया.**

*खिल जाये मुझमें रंग सभी**
*कुछ ऐसा कर दे साँवरिया**

*मन का मयूर, मेरा नाच उठे**
*कुछ ऐसा कर दे साँवरिया.**

*तुझमें हों मेरे, अब रंग सभी**
*कुछ ऐसा कर दे साँवरिया**

*"जय श्री राधे कृष्णा *
    *राधे राधे राधे राधे राधे*

श्रीराधिका

अपनी ठकुरानी श्रीराधिका रानी

"आँख मिलीं मनमोहन सौं, वृषभानु लली मन में मुस्कानी।
भौंह मरोरिकें दूसरि ओर, कछू वह घूँघट में शरमानी॥
देखि निहाल भई सजनी वह सूरत या मन माँहि समानी।
औरन की परवाह नहीं, अपनी ठकुरानी श्रीराधिका रानी॥"

"लाल भये जिनके बस में उनको लखिकै बिन मोल बिकानी।
केलि करैं यमुना तट पै अंखियाँ जिनकी भाई प्रेम दिवानी॥
रस रंग रहें उरझें सुरझें सखि एक दिपैं नही दोय लखानी।
औरन की परवाह नहीं, अपनी ठकुरानी श्रीराधिका रानी॥"

जय जय श्री राधे-कृष्ण