कृष्णा तुम पर क्या लिखूं ! कितना लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं !
प्रेम का सागर लिखूं या चेतना का चिंतन लिखूं !
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं !
ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय चराने वाला लिखूं !
कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का रखवाला लिखूं।
पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगश्वर लिखूं !
विश्व चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं !
जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं !
देवकी की गोद लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं !
गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।
रुक्मणी का श्री लिखूं या सत्यभामा-श्रीतम लिखूं।
देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।
वासुदेव का तनय लिखूं या नन्दगोपाल लिखूं।
नदियों सा बहता लिखूं या सागर सा गहरा लिखूं।
झरनों सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।
आत्मतत्व वेत्ता लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं !
स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
ये कविता आपने किस की परमिशन से अपने ब्लॉग पर प्रकाशित की है ये मेरे द्वारा रचित कविता है कृपया मेरे नाम से प्रकाशित करें।
ReplyDeleteधन्यवाद
सुशील शर्मा