Tuesday 28 February 2017

जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...

जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...
भरोसा भी तुम पे हमारा साँवरे...

ये संसार है इक माया
इस माया से कौन बच पाया
इस माया से...वही जीत पाया...
जिसके सिर पर साँवरे का साया...
जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...
भरोसा भी तुम पे हमारा साँवरे...

मोह माया भी चाहे जकड़ना
बड़ा मुश्किल है बच के निकलना
फंस न जाये...कहीं इनमें...
बचा लो आ के हमें...
जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...
भरोसा भी तुम पे हमारा साँवरे...

अपने मतलब की दुनिया है सारी
रिस्ते कैसे निभायें मुरारी
बस तुमसे...है निभाना...
हमें तो रिस्ता साँवरे...
जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...
भरोसा भी तुम पे हमारा साँवरे...

रोज़ दर पे हैं आते
अपने भजनों से तुझको रिझाते
ऐसा आनन्द...परमानन्द हमें मिले...
यही पे रे साँवरे...
जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...
भरोसा भी तुम पे हमारा साँवरे...

जबसे लागी लगन तुमसे है प्यारे
हो गये दिवाने तुम्हारे
राज तुम ही...प्यारे बसते...
हमारे दिल में हो साँवरे...
जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...
भरोसा भी तुम पे हमारा साँवरे...

जहाँ में सहारा तुम्हारा साँवरे...
भरोसा भी तुम पे हमारा साँवरे...

(तर्ज : सुहाना सफर और ये मौसम हसि...)

Thursday 23 February 2017

*राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा .....*

*राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा ...*

*आओ रंग लें जीवन अपना राधा नाम की मस्ती में।*

आओ रंग ले जीवन अपना
 राधा नाम की मस्ती में।
राधा नाम रटे हर रसना ,
घर घर बस्ती बस्ती में।

*राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा .....*

आओ रंग लें जीवन अपना
 राधा नाम की मस्ती में।
ऐसे रंग मे रंग जाये जो
फीका कभी पड़े ना,
रंग बिरंगे जग का जिस पर
कोई रंग चढ़े ना।

*राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा ...*

आओ रंग लें जीवन अपना
 राधा नाम की मस्ती में।
मन मंदिर मे भानु लली की
 सुंदर छवि बसाएं,
जीवन के हर स्वास स्वास में
राधे राधे गाए।

*राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा .....*

आओ रंग लें जीवन अपना
 राधा नाम की मस्ती में।
मन के हंस चुने दुनिया में
 राधा नाम के मोती,
अलौकिक कर देगी जग में
राधा नाम की ज्योति।
खुद की मिटा के हस्ती मिल जाएँ
हम सब उसकी हस्ती में।

*राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा .....*

आओ रंग ले जीवन अपना
राधा नाम की मस्ती में।
विष की देन है मोह माया ये
इस से बच के रहना,
भव तारिणी भव पार करेंगी
मेरी मानो दास का कहना,
नाम ही बस पार करेगा
 संतो का ये गहना।
नाम ही बस पार करेगा
मानो गुरुदेव का कहना।

*राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा .....*

*आओ रंग लें जीवन अपना राधा नाम की मस्ती में।*

*युगल सरकार की जय*

*मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

विभत्स हूँ... विभोर हूँ...
मैं समाधी में ही चूर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

घनघोर अँधेरा ओढ़ के...
मैं जन जीवन से दूर हूँ...
श्मशान में हूँ नाचता...
मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

साम – दाम तुम्हीं रखो...
मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

चीर आया चरम में...
मार आया “मैं” को मैं...
“मैं” , “मैं” नहीं...
”मैं” भय नहीं...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

जो सिर्फ तू है सोचता...
केवल वो मैं नहीं...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

मैं काल का कपाल हूँ...
मैं मूल की चिंघाड़ हूँ...
मैं मग्न...मैं चिर मग्न हूँ...
मैं एकांत में उजाड़ हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

मैं आग हूँ...
मैं राख हूँ...
मैं पवित्र राष हूँ...
मैं पंख हूँ...
मैं श्वाश हूँ...
मैं ही हाड़ माँस हूँ...
मैं ही आदि अनन्त हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

मुझमें कोई छल नहीं...
तेरा कोई कल नहीं...
मौत के ही गर्भ में...
ज़िंदगी के पास हूँ...                        
अंधकार का आकार हूँ...
प्रकाश का मैं प्रकार हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

मैं कल नहीं मैं काल हूँ...
वैकुण्ठ या पाताल नहीं...
मैं मोक्ष का भी सार हूँ...     
मैं पवित्र रोष हूँ...
मैं ही तो अघोर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।* 

सरस किशोरी

*सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर*

साधन हीन, दीन मैं राधे, तुम करुणामई प्रेम-अगाधे.....

काके द्वारे, जाय पुकारे, कौन निहारे, दीन दुखी की ओर....

सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।

करत अघन नहिं नेकु उघाऊँ, भरत उदर ज्यों शूकर धावूँ,

करी बरजोरी, लखि निज ओरी, तुम बिनु मोरी, कौन सुधारे दोर।

सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।

भलो बुरो जैसो हूँ तिहारो, तुम बिनु कोउ न हितु हमारो,

भानुदुलारी, सुधि लो हमारी, शरण तिहारी, हौं पतितन सिरमोर।

सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।

गोपी-प्रेम की भिक्षा दीजै, कैसेहुँ मोहिं अपनी करी लीजै,

तव गुण गावत, दिवस बितावत, दृग झरि लावत, ह्वैहैं प्रेम-विभोर।

सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।

पाय तिहारो प्रेम किशोरी !, छके प्रेमरस ब्रज की खोरी,

गति गजगामिनि, छवि अभिरामिनी, लखि निज स्वामिनी, बने कृपालु चकोर॥
सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।

तुम करुणामई कहलाती हो... श्रीराधे मुझ पापी पर एक कोर करदो... दासी बना लो... निज चरणों की जिन चरणों में श्याम सुंदर का है वास ।
श्री राधे कीजो कृपा की कोर श्री राधे.....

सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।

Wednesday 22 February 2017

तूँ क्यों घबराता है

तूँ क्यों घबराता है…तेरा श्याम से नाता है ।
जब मालिक है सिर पे…क्यों जी को जलाता है ।। (टेर)

तूँ देख विनय करके…तेरी लाज बचायेगा,
तूँ जब भी बुलायेगा…हर बार वो चला आयेगा ।
अपने प्रेमी को दुखी…वो देख ना पाता है ।।
तूँ क्यों घबराता है…तेरा श्याम से नाता है…

जब कुछ ना दिखाई दे…तूँ श्याम का ध्यान लगा,
मेरा श्याम सहारा है…मन में विश्वास जगा ।
जब श्याम कृपा होती…रास्ता मिल जाता है ।।
तूँ क्यों घबराता है…तेरा श्याम से नाता है…

तेरी हर मुश्किल को…चुटकी में ये हल कर दे,
कोई दाव चलाये तो…श्याम झट से विफल कर दे ।
कोई ना जान सके…किस रूप में आता है ।।
तूँ क्यों घबराता है…तेरा श्याम से नाता है…

पड़ती जो जरूरत है…आता ये तब~तब है,
"" भक्त "" का ये अनुभव है…यहाँ सब कुछ सम्भव है ।
मेरे श्याम की लीला को…कोई समझ ना पाता है ।।
तूँ क्यों घबराता है…तेरा श्याम से नाता है…

तूँ क्यों घबराता है…तेरा श्याम से नाता है ।
जब मालिक है सिर पे…क्यों जी को जलाता है ।।

( तर्ज : सौ बार जनम लेंगे…)

Friday 17 February 2017

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*


होरी तो खेलूंगी हरि सौं,
कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...

आयो बसंत सभी बन फूलें,
खेतन फूली सरसों
मैं पीरी भई पिय के विरह में,
निकसत प्राण अधर सौं,
कहो कोई श्यामसुन्दर सौं....

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*

फाल्गुन में सब होरी खेलत हैं,
अपने-अपने वर सौं।
पिय के विरह योगन बन निकसि,
धुरी उड़ावत कर सौं,
चली मथुरा की डगर सौं।

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*

ऊधौ जाय के द्वारिका पे कहियो,
इतनी अरज हरि सौं।
विरह व्यथा पे जियरा जरत है,
जब से गये है हरि घर सौं।
जिया देखन को तरसे,
कहो कोई श्यामसुन्दर सौं।

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं..*

सूरदास मेरी इतनी अरज है,
कृपासिंधु गिरिधर सौं।
गहरी नदिया मेरी नाव है पुरानी,
किमि उभरे सागर सो,
कहो कोई राधावर सौं,

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*

*ये संसार दीवाना है मेरे राधा रमण का...*


*ये संसार दीवाना है*
*मेरे राधा रमण का...*

*मेरे रमण बिहारी की*
 हर बात निराली है।
 हर बोल तराना है
मेरे राधा रमण का।

*मदमस्त भरे नैना*
अमृत जो बरसे 
ऐसा मुस्काना है ,
मेरे राधा रमण का।

*ये ही आस बसु ब्रज में*
गुरु देव कृपा से 
निष् दिन गुनगाना है
मेरे राधारमण का।

*रिश्ता नहीं दो दिन का*
मेरा तो इन संग।
सदियों से याराना है
मेरे राधारमण का।

*श्री नरोत्तम प्रार्थना* *(लालसा)*



*श्री रूप मञ्जरी-पद, सेइ मोर सम्पद,*
      सेर मोर भजन-पूजन।
सेइ मोर प्राण-धन, सेइ मोर आभरण,
     सेइ मोर जीवनेर जीवन।

सेइ मोर रसनिधि, सेइ मोर वांछासिद्धि,
      सेइ मोर वेदेर-धरम।
सेइ व्रत, सेइ तप, सेइ मोर मन्त्र-जप,
      सेइ मोर धरम-करम।

अनुकूल ह 'बे विधि, सेइ पदे हइबे सिद्धि,
     निरखिब ए दुइ नयने।
से रूपमाधुरी राशी, प्राण-कुवलय-शशी,
      प्रफुल्लित ह 'बे निशि दिने।

तुया-अदर्शन-अहि, गरले जारल देहि,
     चिर-दिन तापित जीवन।
हा हा प्रभु ! कर दया, देह मोरे पदछाया,
      नरोत्तम लइल शरण।

*हरि हरि ! कि मोर करम अनुरत।*

*हरि हरि ! कि मोर करम अनुरत।*
विषये कुटिलमति, सत्संग ना हइल रति,
     किसे आर तरिबार पथ।

स्वरूप, सनातन, रूप, रघुनाथ, भट्टयुग।
     लोकनाथ सिद्धांत सागर।
शुनिताम् से सब कथा, घुचित मनेर व्यथा,
     तबे भाल हइल अन्तर।

यखन गौर-नित्यानन्द, अद्वैतादि भक्तवृन्द,
      नदिया नगरे अवतार।
तखन ना हैल जन्म, एबे देहे किवा कर्म,
      मिछामात्र बहि' फिरी भार।

हरिदास-आदि बुले, महोत्सव-आदि करे,
     ना देखिनु से सुख-विलास।
कि मोर दुःखेर कथा, जन्म गोङ।इनु वृथा,
      धिक्-धिक् नरोत्तमदास।

*न यूँ घनश्याम तुमको दुःख से घबराकरके छोड़ूंगा।*

प्रेम अधिकाय में भाषा भी वक्र हो जाती है। ठाकुर जी पहले तो खूब जलवे दिखाते हैं, फिर पीढ़ा और विरह में तड़पने के लिए छोड़ देते हैं। न भक्त जी सकता है और न व्यवहार में किसी काम का रहता है। *राही न अब किसी काम की....*जब प्रेम भी भगवदीय हो और सम्बन्ध भी *भक्त और भगवान्* का हो तो हम मात्र इस वक्र भाव  का आस्वादन कर आनन्दित और रोमांचित हो सकते हैं। 

न यूँ घनश्याम तुमको दुःख से
 घबरा कर के छोड़ूंगा।
जो छोड़ूंगा तो कुछ मैं भी
तमाशा कर के छोड़ूंगा।

मेरी रुस्वाईआं देखो,
मज़े से शौक से देखो।
तुम्हें भी मैं सरे-बाजार
रुस्वा कर के छोड़ूंगा।

अगर था छोड़ना तुमको
तो फिर क्यों हाथ पकड़ा था।
जो अब छोड़ा तो मैं जाने
न क्या-क्या करके छोड़ूंगा।

तुम्हें नाज़ कि बेदर्द रहता है
तुम्हारा दिल।
मैं उस बेदर्द दिल में दर्द
पैदा करके छोड़ूंगा।

निकाला तुमने अपने दिल के
जिस घर से,
उसी घर पर, अगर दृग-बिन्दु
ज़िन्दा हैं तो कब्ज़ा करके छोड़ूँगा।

*चाँद सा सलोना मुख*


चाँद सा सलोना मुख
लटें घुंघरारी है।
भोएं है कटीली,
आंखें तिरछी कटारी है।
हो याके मधुर रसीले वचन
*हो मेरा या पे अटक गया मन.....*
*हो याको नाम है राधारमण,*
हो मेरा या पे अटक गया मन...

*राधारमण मेरो राधारमण री ....* राधारमण मेरो राधा रमण री।

*गुन्ज माल गले सोहे*
 मुरली अधर पे।
पीत पट झोंटा खाए,
पतली कमर पे।
हो याको चन्दन सा महके बदन,
*हो मेरा या पे अटक गया मन.....*
राधारमण मेरो राधारमण री ..
राधारमण मेरो राधारमण री।

*कनक कड़ोला कर*
पायल रही पाँव में।
रहने दे पिया मोहे,
क़दमों की छाँव में।
हो मेरी लागी है तुमसे लगन,
*हो मेरा या पे अटक गया मन...*
राधारमण मेरो राधारमण री ..
राधारमण मेरो राधारमण री
राधारमण मेरो राधारमण री..
राधारमण मेरो राधारमण री।

*कभी भूलूँ न, कभी भूलूँ न*

कभी भूलूँ न याद तुम्हारी रटूँ
    तेरा नाम मैं सांझ सवेरे
राधारमण मेरे, राधारमण मेरे
राधारमण मेरे, राधारमण मेरे

*सिर मोर मुकुट, कानन कुंडल*
     दो चंचल नैन कटारे
मुख कमल पे भँवरे बने केस
       लहराऐ कारे कारे
हो जाओ प्रकट् मम हृदय में...
हो जाओ प्रकट् मम हृदय में
     करो मन के दूर अंधेरे
राधारमण मेरे, राधारमण मेरे
राधारमण मेरे, राधारमण मेरे

*गल सोहे रही मोतिन माला*
  अधरो पर मुरली सजाए 
करे घायल तिरछी चितवन सें
     मुस्कान से चैन चुराय
ओ हो भक्तो के सिरताज किन्तु
        राधारानी के चेरे
राधारमण मेरे, राधारमण मेरे
राधारमण मेरे, राधारमण मेरे

*अपने आँचल की छाया में*
करूणामय मुझे छिपा लो
मैं जन्म जन्म से भटका हूँ
   हे नाथ मुझे अपना लो
प्राणेश रमण तुम संग मेरे
   है जन्म जन्म के फेरे
राधारमण मेरे, राधारमण मेरे
*राधारमण मेरे, राधारमण मेरे*

Wednesday 15 February 2017

जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये


सीताराम सीताराम सीताराम कहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
मुखमें हो राम-नाम जन-सेवा हाथमें ।
तू अकेला नाहीं प्यारे राम तेरे साथमें ।।
बिधिका बिधान जान हानि-लाभ सहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा ।
होगा प्यारे वही जो श्रीरामजीको भायेगा ।।
फल-आशा त्याग शुभ कर्म करते रहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
जिंदगीकी डोर सौंप हाथ दीनानाथके ।
महलोंमें राखें चाहे झोपडीमें वास दे ।।
धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
आशा एक रामजीकी दूजी आशा छोड़ दे ।
नाता एक रामजीसे दूजा नाता तोड़ दे ।।
साधु-संग राम-रंग अंग-अंग रँगिये ।
काम-रस त्याग प्यारे राम-रस पगिये ।।
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “कल्याण-संकीर्तानांक”से)

Monday 13 February 2017

राम" "राम" "राम" "राम"


श्री राम, श्री राम, श्री राम कहिये
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
हो रामा, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये!

१) मुख मे हो राम नाम, राम सेवा हाथ मे
तू अकेला नहीं प्यारे राम तेरे साथ मे, राम तेरे साथ मे
विधि का विधान मान हानि लाभ सहिये, हानि लाभ सहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
हो रामा, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये!

२) किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा
होगा प्यारे वही जो श्री राम जी को भाएगा, राम जी को भाएगा,
फल की आशा त्याग, शुभ कर्म करते रहिये, शुभ कर्म करते रहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
हो रामा, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये!

३) ज़िंदगी की डोर सौप हाथ दीना नाथ के,
महलो मे राखे चाहे झोपड़ी मे वास दे, झोपड़ी मे वास दे,
धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये, राम राम कहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
हो रामा, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये!

४) आशा एक राम जी की दूजी आशा छोड़ दे,
नाता एक राम जी से दूजा नाता तोड़ दे, दूजा नाता तोड़ दे,
साधु संग राम रंग अंग अंग रंगिये, अंग अंग रंगिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
हो रामा, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये!

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये,

श्री राम, श्री राम, श्री राम कहिये
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

"राम" "राम" "राम" "राम"

“ श्रीरामका शील-स्वभाव “


सुनि सीतापति-सील-सुभाउ ।
मोड़ न मन, तन पुलक, नयन जल, सो नर खेहर खाउ ।। १ ।।
सिसुपन तें पितु, मातु, बन्धु, गुरु, सेवक, सचिव, सखाउ ।
कहत राम-बिधु-बदन रिसोहैं सपनेहुँ लख्यो न काउ ।। २ ।।
खेलत संग अनुज बाल नित, जोगवत अनट अपाउ ।
जीति हारि चुचुकारि दुलारत, देत दिवावत दाउ ।। ३ ।।
सिला साप-संताप-बिगत भइ, परसत पावन पाउ ।
दई सुगति सो न हेरि हरष हिय, चरन छुएको पछिताउ ।। ४ ।।
भव-धनु भंजि निदरि भूपति भृगुनाथ खाइ गये ताउ ।
छमि अपराध, छमाइ पायँ परि, इतौ न अनत समाउ ।। ५ ।।
कह्यो राज, बन दियो नारिबस, गरि गलानि गयो राउ ।
ता कुमातुको मन जोगवत ज्यौं निज तनु मरम कुघाउ ।। ६ ।।
कपि-सेवा-बस भये कनौडे, कह्यौ पवनसुत आउ ।
देबेको न कछू रिनियाँ हौं धनिक तूँ पत्र लिखाउ ।। ७ ।।
अपनाये सुग्रीव बिभीषन, तिन न तज्यो छल-छाउ ।
भरत सभा सनमानि सराहत, होत न हृदय अघाउ ।। ८ ।।
निज करुना करतूती भगतपर, चपत चलत चरचाउ ।
सकृत प्रनाम प्रनत जस बरनत, सुनत कहत फिरि गाउ ।। ९ ।।
समुझि समुझि गुनग्राम रामके, उर अनुराग बढ़ाउ ।
तुलसिदास अनयास रामपद पाइहै प्रेम-पसाउ ।। १० ।।
- गोस्वामी तुलसीदासजी

राग जंगला-ताल कहरवा


हो परमबन्धु तुम पतितोंके, तुम दीनोंके रखवाले हो।
जिसका अपना को‌ई न रहा, तुम उसके निज घरवाले हो॥
जो होकर सब जगसे निराश, जो सबसे दुत्कारा जाकर।
आता जो शरण तुम्हारी है जो कहीं नहीं आश्रय पाकर॥
तुम उसको, पाप-ताप हरकर हर्षित हो गले लगा लेते।
तुम उसको अभय-दान देकर अति पावन कर अपना लेते॥
तुम सबके सुहृद अहैतुक हो, तुम सबके अन्तर्यामी हो।
तुम सबके नित्य आत्मा हो, तुम सबके सच्चे स्वामी हो॥
जो तुमपर है निर्भर करता, जो तुमपर न्योछावर होता।
वह छूट सभी जंजालोंसे, है सुखकी नींद सदा सोता॥
हम दीन तुम्हारे द्वार खड़े, हम पतित तुम्हारे पाँव पड़े।
हम घृणित तुम्हारे साथ लड़े, हम पापी अपनी आन अड़े॥
हम कहाँ जायँ ? हैं कौन यहाँ ? जो हमको अपना आश्रय दे।
है कौन कलमुँहा, हमको रख कलंकका टीका सिरपर ले॥
ऐसे तो एक तुम्हीं दीखे, जो सबसे हृदय मिलाते हो।
बीती बातोंको याद न कर, जो सबको गोद खिलाते हो॥
करके विश्वास विरदपर जो आशा करके आ जाता है।
वह चाहे महापातकी हो, वह गोद तुम्हारी पाता है॥
तुम नहीं उसे लौटाते हो फिर दुःखालय भव-सागरमें।
वह शान्ति सनातन पाता है, मिल करके तुम नटनागरमें॥
हम भी करके विश्वास, इसी आशापर चरण शरण आये।
हम निश्चय तुमको पायेंगे, चाहे जो कुछ भी हो जाये॥

Sunday 12 February 2017

मॉएे नी मॉंएे, ग्वाले झूठ बड़ा मार दे,

मॉएे नी मॉंएे, ग्वाले झूठ बड़ा मार दे,

छिक्के उत्ते चाढ़ के मैंनू, तैनूँ वाजां मार दे,
कच्ची नींदें उठ सवेरे, मधुबन नूं मैं जावां,
सारा दिन मैं गऊआं चरावां, शाम पवे घर आवां,
निक्की जई जिंदड़ी छक्के, कंडे चुबकां मार दे।
माएँ नी------

लुट-लुट मक्खन खान, ग्वाले चोर बनावट मैंनूं,
मुहँ मेरे ते मल के मक्खन, आन सिखाने तैनूँ,
करदे वैर विरोध ग्वाले, उँज मैंनूं पुचकार दे।
मॉंएे नी--------

तूं मॉं मेरी भोली-भाली, झूठमूठ सब मन्ने,
आँखे लग ग्वालां बालां दे, पासे मेरे भन्ने,
पुत्र पराया जान के मैनूं, सारे झिड़कां मार दे।
मॉंऐ नी मॉंऐ-----

ऐ लै अपनी कच्छ लँगोटी, मोर पंख ते सोटी,
मॉं माधव ने एेथे रह के, नहीं तुड़वानी बोटी,
लै मोहन नूं गोद यशोदां रोई, भुब्बॉं मार के,
मॉंऐ नी मॉंऐ ग्वाले झूठबड़ा मार दे।

Tuesday 7 February 2017

दोउ चकोर, दोउ चंद्रमा, दोउ अलि, पंकज दोउ।

दोउ चकोर, दोउ चंद्रमा, दोउ अलि, पंकज दोउ।
दोउ चातक, दोउ मेघ प्रिय, दोउ मछरी, जल दोउ॥
आस्रय-आलंबन दोउ, बिषयालंबन दोउ।
प्रेमी-प्रेमास्पद दोउ, तत्सुख-सुखिया दोउ॥
लीला-आस्वादन-निरत, महाभाव-रसराज।
बितरत रस दोउ दुहुन कौं, रचि बिचित्र सुठि साज॥
सहित बिरोधी धर्म-गुन जुगपत नित्य अनंत।
बचनातीत अचिन्त्य अति, सुषमामय श्रीमंत॥
श्रीराधा-माधव-चरन बंदौं बारंबार।
एक तत्व दो तनु धरें, नित-रस-पाराबार...
"राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे।
राधे श्याम राधा श्याम श्याम श्याम राधे राधे॥"
श्री राधा माधव कृपानिधान, गुरु निम्बार्क दीनदयाल...
"राधा माधव युगल बिहारी, श्री सर्वेश्वर मंगलकारी"...
जय जय श्री राधे...!!

गिरीराजजी महाराजके विरहमे गाया हुवा चतुर्भुजदासजीका पद.


गोवर्धनवासी सांवरे लाल तुम बिन रह्यो न जाये । हों ब्रजराज लडे तें लाडिले ॥
बंकचिते मुसकाय के लाल सुंदर वदन दिखाय ।
लोचन तलफें मीन ज्यों लाल पलछिन कल्प विहाय ॥१॥
सप्तक स्वर बंधान सों लाल मोहन वेणु बजाय ।
सुरत सुहाई बांधि के लाल मधुरे मधुर गाय ॥२॥
रसिक रसिक रसीली बोलनी लाल गिरि चढ गैया बुलाय ।
गांग बुलाई धूमरी लाल ऊंची टेर सुनाय ॥३॥
दृष्टि परी जा दिवस तें लाल तबतें रुचे नही आन ।
रजनी नींद न आवही मोहि विसर्यो भोजन पान ॥४॥
दरसन को नयना तपें लाल वचनन को सुन कान ।
मिलवे को हियरा तपे मेरे जिय के जीवन प्रान ॥५॥
मन अभिलाखा व्हे रही लाल लागत नयन निमेष ।
इक टक देखु आवते प्यारो नागर नटवर भेष ॥६॥
पूरण शशि मुख देख के लाल चित चोट्यो वाहि ओर ।
रूप सुधारस पान के लाल सादर कुमुद चकोर ॥७॥
लोक लाज कुळ वेद की छांड्यो सकल विवेक ।
लहल कली रवि ज्यों बढे लाल छिन छिन प्रति विशेष ॥८॥
मन्मथ कोटिक वारने लाल निरखत डगमगी चाल ।
युवति जन मन फंदना लाल अंबुज नयन विशाल ॥९॥
यह रट लागी लाडिये लाल जैसे चातक मोर ।
प्रेमनीर वरखा करो लाल नव घन नंद किशोर ॥१०॥
कुंज भवन क्रीडा करो लाल सुखनिधि मदन गोपाल ।
हम श्री वृंदावन मालती तुम भोगी भ्रमर भूपाल ॥११॥
युग युग अविचल राखिये लाल यह सुख शैल निवास ।
श्री गोवर्धनधर रूप पर बलिहारी चतुर्भुज दास ॥१२॥

-- हरिनाममालास्तोत्रम् --


गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् ।
गोवर्घनोद्धं धीरं तं वन्दे गोमतिप्रियम् ॥
नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् ।
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥
पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् ।
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परमेश्वरम् ॥
राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम् ।
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दम् ॥
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥
दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् ।
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥
मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् ।
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥
केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् ।
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौरवान्तकम् ॥
भूधरं भुवनान्दं भूतेशं भूतनायकम् ।
भावनैकं भुजङ्गेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥
जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् ।
जमदग्निं परज्ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥
चतुर्भुज चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् ।
चराचरगुरुं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥
श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदं ।
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥
योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् ।
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुनायकम् ॥
सालग्रामशिलशुद्धं शंखचक्रोपशिभितम् ।
सुरासुरैः सदासेव्यं तं वन्दे साधुवल्लभम् ॥
त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् ।
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥
अनन्तमादिपुरुषमच्युतं च वरप्रदम् ।
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥
लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् ।
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्ष्मणप्रियम् ॥
हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियं ।
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥
हरिनामकृतमाला प्रवित्र पापनाशिनी ।
बलिराजेन्द्रेण चोक्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥
{ इति महावलिप्रोक्तं हरिनाममालास्तोत्रम् }
जय श्रीसीतारामजी