Friday 17 February 2017

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*


होरी तो खेलूंगी हरि सौं,
कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...

आयो बसंत सभी बन फूलें,
खेतन फूली सरसों
मैं पीरी भई पिय के विरह में,
निकसत प्राण अधर सौं,
कहो कोई श्यामसुन्दर सौं....

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*

फाल्गुन में सब होरी खेलत हैं,
अपने-अपने वर सौं।
पिय के विरह योगन बन निकसि,
धुरी उड़ावत कर सौं,
चली मथुरा की डगर सौं।

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*

ऊधौ जाय के द्वारिका पे कहियो,
इतनी अरज हरि सौं।
विरह व्यथा पे जियरा जरत है,
जब से गये है हरि घर सौं।
जिया देखन को तरसे,
कहो कोई श्यामसुन्दर सौं।

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं..*

सूरदास मेरी इतनी अरज है,
कृपासिंधु गिरिधर सौं।
गहरी नदिया मेरी नाव है पुरानी,
किमि उभरे सागर सो,
कहो कोई राधावर सौं,

*होरी तो खेलूंगी हरि सौं, कहो कोई श्यामसुन्दर सौं...*

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