Wednesday 15 February 2017

जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये


सीताराम सीताराम सीताराम कहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
मुखमें हो राम-नाम जन-सेवा हाथमें ।
तू अकेला नाहीं प्यारे राम तेरे साथमें ।।
बिधिका बिधान जान हानि-लाभ सहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा ।
होगा प्यारे वही जो श्रीरामजीको भायेगा ।।
फल-आशा त्याग शुभ कर्म करते रहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
जिंदगीकी डोर सौंप हाथ दीनानाथके ।
महलोंमें राखें चाहे झोपडीमें वास दे ।।
धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
आशा एक रामजीकी दूजी आशा छोड़ दे ।
नाता एक रामजीसे दूजा नाता तोड़ दे ।।
साधु-संग राम-रंग अंग-अंग रँगिये ।
काम-रस त्याग प्यारे राम-रस पगिये ।।
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये ।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये ।।
(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “कल्याण-संकीर्तानांक”से)

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