Thursday 24 November 2016

धन के गुलाम मत बनो

सन्त कहे हरी-भजन करों रे, लोग मरे रुपियाँ ताईं ।
हाय रुपैया होय रुपैया, आग लगी सब जग माही ।। टेर ।।

खाऊ-खाऊं करे रात दिन, धर्म-करम शुभ छोड़ दिया ।
नाशवान का लिया सहारा हरि से नाता तोड़ दिया ।।
उपजा दोश यही से सारा फल लागे अति दुःखदाई ।। हाय० १ ।।

घर-त्यागी क्या ग्रहस्थी देखो, लोलुपता सबके लगी ।
अन्न-वस्त्र जल दाता देवे, भीतर भूख नहीं भागी ।।
सारा धन मुझको मिल जावे, मिटे नही यह मंगँताई ।। हाय० २ ।।

बड़ा आदमी कौन जगत में, धन से काँटे पर तोले ।
धन लेकर बेटा परणावे, लेण-देण पहले खोले ।।
स्वारथ अन्धा हो गया जबसों, आगे की सूझत नाही ।। हाय० ३ ।।

मान बड़ाई धन कुटुम्ब के, सुख में इतना फूल गया ।
मैं हूँ कौन ? कहाँ से आया ? क्या करना यह भूल गया ।।
जैसे फिरे बैल घाणी का, आँखों पर पट्टी छाई ।। हाय० ४ ।।

अगणित पाप करे धन के हित, बुरा-बुरा व्यवहार करे ।
झूठ कपट छल धोखेबाजी, चोरी का व्यवहार करे ।।
मरते पाप पाप सँग जावे, मार पड़े जमपुर माहीं ।। हाय० ५ ।।

असत वस्तु का छोड़ सहारा, सुख की आशा तजिये रे ।
नाशवान तो नाश करेगा, अविनाशी को भजिये रे ।।
नर-तन जनम सुफल हो जावे, सतसंगत करिये भाई ।। हाय० ६ ।।

सन्त कहे हरी-भजन करों रे, लोग मरे रुपियाँ ताईं ।
हाय रुपैया होय रुपैया, आग लगी सब जग माही ।। टेर ।।

चेतावनी पद संग्रह पुस्तक से, भजन 'धन के गुलाम मत बनो', भजन संख्या ४२, पृष्ठ संख्या २२, पुस्तक कोड १४२, गीताप्रेस गोरखपुर, भारत

Wednesday 23 November 2016

मुरली मधुर बजा दो श्याम


एक बार बस एक बार, आनन्द-सुधा बरसा दो श्याम ।
आज चलो फिर यमुना-तटपर, मुरली मधुर बजा दो श्याम ।।
नीरव, नीरस, निर्जन, निर्मम, निद्रित निशा जगा दो श्याम ।
शुभ्र चन्द्रकी सुभग ज्योतिमें, ललित कला सरसा दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
सूर्य-सुतापर स्वर-लहरीसे, तरल तरंग उठा दो श्याम ।
कण-कण, वन, उपवन नूतन, जीवन-धार बहा दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
डाल-डाल और पात-पातमें, प्रेम-प्रसून खिला दो श्याम ।
कुञ्ज-कुञ्जमें, पुञ्ज-पुञ्जमें, प्रणय-प्रेम फैला दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
जीवित मृतक मदान्ध मनोंमें, जीवन-ज्योति जगा दो श्याम ।
‘बेकल’ विकल व्यथित हृदयमें, शान्ति-सुधा बरसा दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित "कल्याण - संकीर्तानांक"से)

Saturday 19 November 2016

हे नन्दलाला हे गोपाला…

हे नन्दलाला हे गोपाला…
ले लो शरण में हम को भी लाला ।

तुमसा नहीं कोई जग में निराला
तुमसे ही जगमग ये जग सारा
तू ही सबका भाग्य विधाता
हे नन्दलाला हे गोपाला…

दरश को तेरे तरसे हैं अँखियाँ
किससे कहूँ ये दुःख भरी बतियाँ
कौन सुनेगा मेरी ये बतियाँ
हे नन्दलाला हे गोपाला…

तुम बिन जग में कौन हमारा
तुम बिन कैसे होगा गुज़ारा
मिलन "" अनोखा "" हो कैसे हमारा
हे नन्दलाला हे गोपाला…

हे नन्दलाला हे गोपाला…
ले लो शरण में हम को भी लाला ।

Friday 18 November 2016

अपनी ठुकरानी राधे जू

अपनी ठुकरानी राधे जू हमको क्या काम जमाने से
कंगाल हैँ हम तेरे नाम बिना हमको बस नाम खजाने दे

मेरा धन तुम ब्रजरानी हो इस जग से मुझे अब क्या लेना
तेरे दर की मैं भिखारिन हूँ मुझे तेरे नाम का धन लेना
हो जाये तुमसे प्रेम मेरा मुझे तुमसे प्रेम निभाने दे
अपनी ठुकरानी राधे जू हमको क्या काम जमाने से
कंगाल हैँ हम तेरे नाम बिना हमको बस नाम खजाने दे

तेरे दर की चाकर बन जाऊँ मुझको किशोरी अपनाना
सारे जग से मुझको प्यारा लगे श्री राधे तेरा बरसाना
कभी चरणों में थोड़ी जगह मिले मुझे बरसाने रह जाने दे
अपनी ठुकरानी राधे जू हमको क्या काम जमाने से
कंगाल हैँ हम तेरे नाम बिना हमको बस नाम खजाने दे

तेरा नाम जो ले जुबां से अपनी मुझको वो प्यारा लगता है
तेरा बरसाना मुझे श्यामा जन्नत का नज़ारा लगता है
कोई रोके ना कोई टोके ना मुझको तेरा नाम ही गाने दे
अपनी ठुकरानी राधे जू हमको क्या काम जमाने से
कंगाल हैँ हम तेरे नाम बिना हमको बस नाम खजाने दे

Wednesday 9 November 2016

नैनहीन को राह दिखा प्रभु

नैनहीन को राह दिखा प्रभु
नैनहीन को राह दिखा प्रभु
पग पग ठोकर खाऊँ मैं
नैनहीन को

तुमरी नगरिया की कठिन डगरिया
तुमरी नगरिया की कठिन डगरिया
चलत चलत गिर जाऊं मैं प्रभु

नैनहीन को राह दिखा प्रभु
पग पग ठोकर खाऊँ मैं
नैनहीन को राह दिखा प्रभु

चहुँ ओर मेरे घोर अँधेरा
भूल न जाऊं द्वार तेरा
चहुँ ओर मेरे घोर अँधेरा
भूल न जाऊं द्वार तेरा
एक बार प्रभु हाथ पकड़ लो
एक बार प्रभु हाथ पकड़ लो
एक बार प्रभु हाथ पकड़ लो
मन का दीप जलाऊँ मैं प्रभु

नैनहीन को राह दिखा प्रभु
पग पग ठोकर खाऊँ मैं
नैनहीन को राह दिखा

Monday 7 November 2016

शीश गंग अर्धग

शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥
शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥
यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥
कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा-सी॥
सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी॥
ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकू फरमासी॥
ऋद्धि सिद्ध के दाता शंकर नित सत् चित् आनन्दराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल यमकी फांसी॥
त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर प्रेम सहित जो नरगासी।
दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥
तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो॥
अभय दान दीज्यो प्रभु मुझको शकल शूरष्टी श्रिष्टि के हितकारी।
भोले नाथ बाबा भक्त निरंजन भव भंजन भाव सुख कारी ||
काल हरो हर कष्ट हरो हर दुखः हरो दरिद्र हारो।
नमामि शंकर भवानी शंकर हर हर शंकर आप शरणम ||

Ψ जय भोले नाथ Ψ
Ψ ऊँ नमः शिवाय Ψ

Tuesday 1 November 2016

एक दीप तुम प्यार का, रखना दिल के द्वार,,,

एक दीप तुम प्यार का, रखना दिल के द्वार,,,
यही दीप का अर्थ है, यही पर्व का सार...

दीप हृदय में कर गये, खुशियों का बौछार,,,
आज प्रेम से हम करें, दीपों का सत्कार...

केसर, चन्दन घर लगे, रोली अक्षत द्वार,,,
सजी दीप की अल्पना, किरणें वन्दनवार...

फूल -पंखुड़ी तन हुआ, हृदय हुआ अब दूब,,,
दीप -पर्व के ताल में, हम सब जायें ड़ूब...

दीप -पर्व सी ज़िन्दगी, दीप तुम्हारा प्यार,,,
तुम रंगोली अल्पना, तुम ही वन्दनवार...

दिया एक विश्वास का, जले हृदय में आज,,,
सद्भाव को नोच रहे, आजा घृणा के बाज़...

उड़ी गगन में प्रेम की, किरणें पंख पसार,,,
हुआ पराजित दीप से, फिर तिमिर एक बार...



~~~|| जय श्री राधे कृष्णा ||~~~
~~~|| जय श्री सीता राम ||~~~

श्री गोवर्धन महाराज ,, महाराज ।

श्री गोवर्धन महाराज ,, महाराज ।
तेरे माथे मुकुट विराज रहयौ।।

तोपे पान चढ़ै तो पे फूल चढ़ै ...और चढ़ै दूध की धारहो धार ।।
तेरे माथे मुकुट विराज रहयौ ..

तेरे कानन कुण्डल सोय रहयो ...तेरे गल बैजन्ती माल हो माल ।।
तेरेमाथे मुकुट विराज रहयौ ...

तेरे काँधे पै कारी कामरिया...तेरी ठोड़ी पे हीरा लाल हो लाल ।।
तेरे माथे मुकुट विराज रहयौ ...

तेरे निकट मानसी गँगा है ...जा मेँ न्हाय रहे नर नार हो नार ।।
तेरे माथे मुकुट विराज रहयौ...

तेरी सात कोस की परिक्रमा मेँ ...है चकलेश्वर विश्राम हो विश्राम ।।

तेरे माथे मुकुटविराज रहयौ ...श्री गोवर्धन महाराज महाराज ।
तेरे माथे मुकुट विराज रहयौ