Wednesday 23 November 2016

मुरली मधुर बजा दो श्याम


एक बार बस एक बार, आनन्द-सुधा बरसा दो श्याम ।
आज चलो फिर यमुना-तटपर, मुरली मधुर बजा दो श्याम ।।
नीरव, नीरस, निर्जन, निर्मम, निद्रित निशा जगा दो श्याम ।
शुभ्र चन्द्रकी सुभग ज्योतिमें, ललित कला सरसा दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
सूर्य-सुतापर स्वर-लहरीसे, तरल तरंग उठा दो श्याम ।
कण-कण, वन, उपवन नूतन, जीवन-धार बहा दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
डाल-डाल और पात-पातमें, प्रेम-प्रसून खिला दो श्याम ।
कुञ्ज-कुञ्जमें, पुञ्ज-पुञ्जमें, प्रणय-प्रेम फैला दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
जीवित मृतक मदान्ध मनोंमें, जीवन-ज्योति जगा दो श्याम ।
‘बेकल’ विकल व्यथित हृदयमें, शान्ति-सुधा बरसा दो श्याम ।। आज चलो॰ ।।
(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित "कल्याण - संकीर्तानांक"से)

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