Monday 1 August 2016

जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

जगतमें दु:ख भरे नाना । 
प्रेमधर्मकी रीति समझकर सब सहते जाना॥ 
जगतमें दु:ख भरे नाना ।। टेक ॥

झूठे वैभव पर क्यों फूला,
यह तो उँचा-नीचा झूला ।
धन-यौवनके चंचल-बलपर, कभी न इतराना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

नीति-सहित कर्तव्य निभाना,
अपने-अपने खेल दिखाना ।
सन्यासी हों या गृहस्थ हों, रंक हों कि राना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

उठना गिरना हँसना रोना,
पर चिन्तामें कभी न सोना ।
कर्मबंधके बीज न बोना, सत्य-योग-ध्याना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

ईश्वर एक, भरा हम सबमें,
श्रद्धा रहे राम या रबमें ।
'सबके सुखमें अपने सुख' का तत्व न बिसराना॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

दिव्य गुणोंकी कीर्ति बढ़ाना,
जग-जीवनको स्वर्ग बनाना ।
दुनियाका नंदन वन फूले, यह रस बरसाना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

सबही शास्त्र बने है सच्चे,
किन्तु समझनेमें हम कच्चे ।
पक्षपातका रंग चढ़ाकर, क्यों भ्रम फैलाना ॥
जगतमें दु:ख भरे नाना ॥

अविवेकी चक्कर खाता है,
तब लड़ना भिड़ना भाता है।
रागद्वेषसे बैर बसाकर, धर्म न लजवाना ॥
. जगतमें दु:ख भरे नाना ॥
॥ ओम नारायण ॥

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