इन प्रेम के भावों को , लिखना आसान नहीँ ,
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ ।
कोई प्यास नहीँ बाकी , ना बेकरारी है
चढ़ कर न कभी उतरे , ये वो खुमारी है
राधा अब कृष्णा है , कृष्णा अब राधा है
आँखो से ह्रदय मे , तस्वीर उतारी है
ये प्रेम के मोती तो , निर्मल है पावन है
इनसे ज्यादा जग मे , कुछ मूल्यवान नहीँ
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ
देखूं मै छवि अपनी , दर्पण मुस्काता है
मुझमें तस्वीर तेरी , दर्पण दिखलाता है
मै तुझमे तू मुझमें , है कोई भेद नहीँ
बिन बोले ही मुझको , सब कुछ कह जाता है
कुछ भी ना अधूरा सा , खुद मे ही पूर्ण है
क्या पाना व खोना, कोई झूठी शान नहीँ
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ
बहती हुई नदियाँ का , सागर से मिलना सा
ये प्रेम है पतझड़ मे , फ़ूलॊ का खिलना सा
नैनो की चमक बढ़ती, संगीत सा बजता है
बस अच्छा लगता है , "कान्हा" को सुनना सा
मेरा तेरा कितने , जन्मों का नाता है
ये अमर कहानी है, पल का मेहमान नहीँ
मुझको इतने गहरे , शब्दों का ज्ञान नहीँ
।। राधे राधे मेरे बांके बिहारी ।।
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