Wednesday 22 March 2017

श्री कृष्ण स्तुति


श्री शंकराचार्य विरचित संस्कृत स्तोत्र का भावानुवाद
युमना तट पर वृन्दावन में मनभावन एक बाग़ हरी
कल्पदुम तले खड़े है उसमे पैर मरोड़े श्याम हरी
घन श्याम हरी
चन्दन कर्पुत उटी में लिपटा तन कटी पीताम्बर सोहे
भया उजियारा विश्व ये सारा तेजस्वी प्रभु कांति से
कमल नयन आकर्ष कर्ण में कुण्डल सुंदर दो लटके
मुस्कान मन्द मुख की मोहे चमके कोस्तुभ सीने पे 
दमके अंगूठी ऊँगली में झूले वर्णमाला गले
देखत तेज महाप्रभु का कापन कलि काल भी लागे
हृषिकेश कुंतल से निकले गंध से मोहित गूजे भंवरे
गोप संग श्याम कुञ्ज में जेवे आओ प्रभु को नमन करे
भरे सुगंध मंदार समां में आनंदित मन आनंद दाता से
गंगापद आनंद निधि को करे परणाम महापुरुष को
फेले प्रीत दश दिशाओ में गोप्रिये गोपाल की कांति से
देवप्रिया देत्यारि हरी के हो नत मस्तक पड़ युग्मो में

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