श्री शंकराचार्य विरचित संस्कृत स्तोत्र का भावानुवाद
युमना तट पर वृन्दावन में मनभावन एक बाग़
हरी
कल्पदुम तले खड़े है उसमे पैर मरोड़े श्याम
हरी
घन श्याम हरी
चन्दन कर्पुत उटी में लिपटा तन कटी
पीताम्बर सोहे
भया उजियारा विश्व ये सारा तेजस्वी प्रभु
कांति से
कमल नयन आकर्ष कर्ण में कुण्डल सुंदर दो
लटके
मुस्कान मन्द मुख की मोहे चमके कोस्तुभ
सीने पे
दमके अंगूठी ऊँगली में झूले वर्णमाला गले
देखत तेज महाप्रभु का कापन कलि काल भी
लागे
हृषिकेश कुंतल से निकले गंध से मोहित गूजे
भंवरे
गोप संग श्याम कुञ्ज में जेवे आओ प्रभु को
नमन करे
भरे सुगंध मंदार समां में आनंदित मन आनंद
दाता से
गंगापद आनंद निधि को करे परणाम महापुरुष
को
फेले प्रीत दश दिशाओ में गोप्रिये गोपाल
की कांति से
देवप्रिया देत्यारि हरी के हो नत मस्तक पड़
युग्मो में
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