Friday 4 December 2015

तर्ज: राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।

तर्ज: राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।
जपें जा राधे - राधे , भजें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।।
  है कृष्ण की यह सद् वाणी , गीता में स्वयं बखानी।
फिर क्यों? , फिकर करें बेकार,जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।।
( भगवान कृष्ण ने गीता के श्लोक 9/22 में )
  अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना : पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
अर्थ - भगवान कृष्ण कहते हैं कि, मैं अपने अनन्य भक्त को , उसके हित की आवश्यक साधन सामग्री उपलब्ध भी कराता हूँ , और उपलब्ध सामग्री की रक्षा भी करता हूं ।अपने हर अनन्य भक्त के योगक्षेम का जिम्मा मेरे ऊपर है , मैं उसकी  देखभाल स्वयं उस माँ की तरह करता हूँ , जो अपने बालक के सुख के लिए अपना भी सुख भूल कर अपने हाथों से उसकी सेवा करती है,  उसे नौकरों के भरोसे नहीं छोड देती।
  सो जो आ , खुद दे जाए , जितना भी कृष्ण भिजाए।
अपना उस पर ही अधिकार , जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे- राधे।।
  वह किसको , कितना देना , हलुआ या चना - चबैना ।
लेता निर्णय , कर्म नुसार , जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे ।।
  क्यों भक्ति,कलंकित करती , क्यों? जग कष्टों से डरती।
कृष्ण के वचनन , श्रध्दा धार , जपें जा राधे - राधे।।
राधा सब वेदन कौ सार , जपें जा राधे - राधे।।

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