Wednesday 16 December 2015

मन

मन मक्खी मानिन्द है , मन को रखो दबाय।
इसको चर्चा ईश की , बिल्कुल नहीं सहाय।।
सो इसको रक्खो दबा , मोटा सोटा मार।
दब जाएगा तो नहीं , पाए जनम बिगार।।
छुट्टा मत छोडो इसे , लो विवेक से काम।
आदत डलवा दीजिए , जपने की हरिनाम।।
फिर देखो , यही आपकी , करदे नैय्या पार।
यही तो " रोटीराम " है , मुक्ति का आधार।।

󾮜 मन से समझौता मती , करिए " रोटीराम "।
इसको तो रखिए दबा , जपबाओ हरिनाम।।
समझौतावादी बने , तो करदे बेडागर्क।
यह बिल्कुल नहीं चूकता , भेजे सीधा नर्क।।
मगर न समझौता किया , डाल के रखी नकेल।
तो न तनिक चल पाएगा , इसका कोई खेल।।
और यही मन आपको , तब भेजे हरिधाम।
जिसको था यह तन मिला ,हो जाए वह काम।।

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