Thursday 17 December 2015

भाग्य स्वयं का स्वयं खुद , लिखता है इन्सान ।

भाग्य स्वयं का स्वयं खुद , लिखता है इन्सान ।
ना तो बृह्माजी लिखें , और न आ भगवान।।
जो जैसे इस जन्म में , कर जाएगा काम।
विधि उसके अनुरूप ही , लिख भेजे " रोटीराम "।।

चार कदम भी चल पडें , गर हम " उनकी " ओर।
" उन्हें " बनाकर चन्द्रमा , खुद बन जायँ चकोर।।
तो हरि भी नहीं रह सकें , आऐं नंगे पांव।
क्या ? ध्रुव को अरु द्रोपदी , नहीं आए "रोटीराम "।

काया सुख रस - भोग में , आज भ्रमित संसार।
ठान के खुद से दुश्मनी , भूला सद् आचार ।।
अब पाने परमात्म सुख , करे न कोई काम ।
भूला नरतन हेतु को , सो भ्रमित है " रोटीराम "।।

हरि की लीला - रूप - गुण , जो न कर रहे याद।
वे व्यक्ति यह स्वाँस धन , कर रहे हैं बर्बाद।।
पा नरतन जैसी निधि , गर न किए सत्काम।
तो यह अपना दुर्भाग्य है , अतिशय "रोटीराम "।

No comments:

Post a Comment