माता नास्ति पिता नास्ति नास्ति बन्धु सहोदरः ।
अर्थे नास्ति गृहं नास्ति, तस्माद् जाग्रत जाग्रत ।।
इस असार संसार में माता- पिता सगे भाई, धन-सम्पत्ति और गृह आदि स्थायी सत्य नहीं है, इसलिये जागो ! जागो !!
आशया बध्यते लोको कर्मणा बहुचिंतया ।
आयुः क्षीणं न जानाति, तस्माद् जाग्रत जाग्रत ।।
यहाँ आशा में बंधे हुए एवं कर्मजाल और चिन्ताओं से घिरे हुए संसार के जीव,
अपनी आयु की क्षण-क्षण होने वाली क्षीणता को नहीं जानते, इसलिये जागो !
जागो !!
कामः क्रोधश्च लोभश्च, देहे तिष्ठन्ति तस्काराः ।
ज्ञानरत्नापहाराय, तस्माद जाग्रत जाग्रत ।।
इस देह के भीतर घुसे हुए काम, क्रोध, लोभरुपी चोर अमूल्य ज्ञानरत्न का अपहरण कर रहे है, इसलिये जागो ! जागो !!
जन्मदुःखं जरा दुःखं जायादुःखं पुनः पुनः ।
संसार सागरं दुःखं, तस्माद् जाग्रत जाग्रत ।।
यहाँ बारम्बार जन्म से लेकर जरावस्था तक स्त्री, पुत्रादि से संबंध में
दुःख ही दुःख है । यह संसार ही दुःखो का सागर है, इसलिये जागो ! जागो !!
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