(तर्ज लावनी-ताल कहरवा)
जबतक जगमें रहते मुझको ’मेरा’ कहनेवाले।
तबतक तुम हो दूर खड़े हँसते हो सदा
निराले॥
जबतक रखते मोह-ग्रस्त मुझको ये डाले घेरा।
तबतक तुम कहते सकुचाते खुलकर मुझको ’मेरा’॥
जबतक जगके प्राणी-पदार्थोंको मैं कहता ’मेरा’।
तबतक तुमको कभी नहीं कह पाता खुलकर ’मेरा’॥
जबतक तुमको ही मैं ’मेरा’ नहीं
बना हूँ पाता।
तबतक ’मेरे-मेरे’-का
दावानल सदा जलाता॥
दया करो, इस मोह-पाशसे मुझको
तुम्हीं छुड़ाओ।
प्यारभरे शदोंमें मुझको कह ’मेरा’ अपनाओ॥
समझूँ मैं भी एकमात्र तुमको ही केवल ’मेरा’।
उठे तुरंत मेरे जीवनसे सब मायाका डेरा॥
No comments:
Post a Comment