Tuesday 4 April 2017

सहेली सुनु सोहिलो रे !

सहेली सुनु सोहिलो रे !
सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो सब जग आज ।
पूत सपूत कौसिला जायो, अचल भयो कुल-राज ।। १ ।।
चैत चारु नौमी तिथि सितपख, मध्य-गगन-गत भानु ।
नखत जोग ग्रह लगन भले दिन मंगल-मोड़-निधान ।। २ ।।
ब्योम, पवन, पावक, जल, थल, दिसि दसहु सुमंगल-मूल ।
सुर दुंदुभी बजावहिं, गावहिं, हरषहिं, बरषहिं फूल ।। ३ ।।
भूपति-सदन सोहिलो सुनि बाजैं गहगहे निसान ।
जहँ-तहँ सजहिं कलस धुज चामर तोरन केतु बितान ।। ४ ।।
सींचि सुगंध रचैं चौकें गृह-आँगन गली-बजार ।
दल फल फूल दूब दधि रोचन, घर-घर मंगलचार ।। ५ ।।
सुनि सानंद उठे दसस्यंदन सकल समाज समेत ।
लिये बोलि गुर-सचिव-भूमिसुर, प्रमुदित चले निकेत ।। ६ ।।
जातकरम करि, पूजि पितर-सुर, दिये महिदेवन दान ।
तेहि औसर सुत तीनि प्रगट भए मंगल, मुद, कल्यान ।। ७ ।।
आनँद महँ आनंद अवध, आनंद बधावन होइ ।
उपमा कहौं चारि फलकी, मोहिं भलो न कहै कबि कोइ ।। ८ ।।
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को कहि सकै अवधबासिनको प्रेम-प्रमोद-उछाह ।
सारद सेस-गनेस-गिरीसहिं अगम निगम अवगाह ।। २४ ।।
सिव-बिरंचि-मुनि-सिद्ध प्रसंसत, बड़े भूप के भाग ।
तुलसिदास प्रभु सोहिलो गावत उमगि-उमगि अनुराग ।। २५ ।।
भावार्थ : अरी सखी ! सोहिला (बधाईके गीत) तो सुन । अहा ! आज सारे जगत् में सोहिला-ही-सोहिला हो रहा है । आज कौसल्याने एक सपूत बालकको जनम दिया है, जिससे उसका कुल और राज अविचल हो गया है ।१। आज चैत्र शुक्ला नवमी तिथि है, सूर्यदेव मध्य आकाशमें प्रकाशमान हो रहे हैं, आजके शुभ दिनमें नक्षत्र, योग, ग्रह और लग्न सभी अच्छे हैं और आजका दिन मंगल और मोदका घर है ।२। आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और दसों दिशाएँ मंगलमूल हो रही हैं तथा सुरगण दुन्दुभी बजाकर गाते और प्रसन्न होकर फूलोंकी वर्षा करते हैं ।३। महाराज दशरथके घर सोहिला होता सुन सब ओर नक्कारोंकी गम्भीर ध्वनि होने लगी है तथा जहाँ-तहाँ कलश, दवाजा, चँवर, तोरण, पताका और मण्डप सजाये जा रहे हैं ।४। घर, आँगन, गली और बाजारोंको सुगन्धित जलसे सींचकर उनमें चौक पूरे जा रहे हैं तथा घर-घरमें पत्र, पुष्प, फल, दूध, दही और रोली आदि सामग्रियोंसे मंगलाचार हो रहा है ।५। पुत्रजन्मका समाचार सुन महाराज दशरथ सम्पूर्ण राजदरबारके सहित उठ खड़े हुए और गुरु, मन्त्री एवं ब्राह्मणोंको बुलाकर प्रसन्नतापूर्वक महलकी ओर चल पड़े ।६। वहाँ पुत्रका जातकर्म-संस्कार कर पितृगण और देवताओंकी पूजा की तथा ब्राह्मणोंको दान दिया । इसी समय उनके मंगल, आनन्द और कल्याणस्वरूप तीन पुत्र और उत्पन्न हुए ।७। आज अयोध्यामें आनन्दमें आनन्द हो गया और चारों तरफ आनन्दका ही बधावा हो रहा है । यदि मैं उन्हें [अर्थ, धर्म, काम और मोक्षरूप] चार फलोंकी उपमा दूँ तो मुझे कोई कवि भला नहीं कहेगा ।८। xxxxxxxx अवधवासियोंके इस समयके प्रेम, प्रमोद और उत्साहका वर्णन कौन कर सकता है ? वह शारदा, शेष, गणेश और भगवान् शंकरकी भी पहुँचके बाहर है और वेद भी उसका पार नहीं पा सकते ।२४। महाराज दशरथके सौभाग्यकी शिव, ब्रह्मा, मुनि और सिद्धगण भी प्रशंसा कर रहे हैं । इस समय तुलसीदास भी प्रेमसे उमँग-उमँगकर प्रभुका सोहेला गा रहा है ।

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