Tuesday 11 April 2017

हरि सा हीरा छाड़ि कै

हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस । 
ते नर जमपुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। १ ।।

अंतरगति रार्चैँ नहीं, बाहर कथैं  उदास ।
ते नर जम पुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। २ ।।

रैदास कहें जाके ह्रदै, रहै रैन दिन राम ।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न ब्यापै काम ।। ३

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास ।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।। ४

रैदास तूँ कावँच फली, तुझे न छीपै कोइ ।
तैं निज नावँ न जानिया, भला कहाँ ते होइ ।। ५ ।।

रैदास राति न सोइये, दिवस न करिये स्वाद । 
अह-निसि हरिजी सुमिरिये, छाड़ि सकल प्रतिवाद ।। ६ ।।

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