Sunday 2 April 2017

जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नंदनन्दन



।। श्री हरि ।।
जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नंदनन्दन।
जयति असुर-दल-कंदन, जय-जय प्रेमीजन-मानस-चन्दन॥
बाँकी भौंहें, तिरछी चितवन, नलिन-विलोचन रसवर्षी।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर परमहंस-मुनि-मन-कर्षी॥
अरुण अधर धर मुरलि, मधुर मुसकान मजु मृदु सुधिहारी।
भाल तिलक, घुँघराली अलकैं, अलिकुल-मद-मर्दनकारी॥
गुंजाहार, सुशोभित कौस्तुभ, सुरभित सुमनोंकी माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब समोहित ब्रजजन-ब्रजबाला॥
जय वसुदेव-देवकीनंदन, जयति यशोदा-नँदनन्दन।
जयति असुर-दल कंदन, जय जय प्रेमीजन मानस-चन्दन॥
पद-रत्नाकर / श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार

No comments:

Post a Comment