बनवारी रे बनवारी रे
जीने का सहारा
तेरा नाम रे
मुझे दुनिया
वालों से क्या काम रे
झूठी दुनिया झूठे
बंधन, झूठी है ये माया
झूठा साँस का आना
जाना, झूठी है ये काया
ओ, यहाँ साँचा तेरा नाम रे
बनवारी रे ...
रंग में तेरे रंग
गये गिरिधर,
छोड़ दिया जग सारा
बन गये तेरे
प्रेम के जोगी,
ले के मन एकतारा
ओ, मुझे प्यारा तेरा धाम रे
बनवारी रे ...
दर्शन तेरा जिस
दिन पाऊँ,
हर चिन्ता मिट जाये
जीवन मेरा इन
चरणों में,
आस की ज्योत जगाये
ओ, मेरी बाँहें पकड़ लो श्याम रे
बनवारी रे ...
हम यहा पर रहने
वाले नही है। हम यहाँ आये है और जाना है। जैसे धर्मशालामे ठहरते है,वैसे ही यहा अपने को मानना चाहीये यह शरीर भी अपना नही
है फिर दूसरा कौन अपना है ? भगवान के सिवाय
दूसरा कोई अपना है नही । केवल भगवान ही हमारे है यही पहली बात है और यही अन्तिम
बात है यही सार बात है ।।
परम् श्रद्धेय
स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज
No comments:
Post a Comment