कविता दोहे पद
Saturday 1 April 2017
हरि तुम हरो जन की भीर
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी
,
तुम बढायो चीर॥
भक्त कारण रूप नरहरि
,
धरयो आप शरीर।
हिरणकश्यपु मार दीन्हों
,
धरयो नाहिंन धीर॥
बूडते गजराज राखे
,
कियो बाहर नीर।
दासि
'
मीरा लाल गिरिधर
,
दु:ख जहाँ तहँ पीर॥
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