Sunday 2 April 2017

कर प्रणाम तेरे चरणोंमें लगता हूँ अब तेरे काज



कर प्रणाम तेरे चरणोंमें लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करनेको आज्ञा तव मैं नियुक्त होता हूँ आज॥
अन्तरमें स्थित रहकर मेरे बागडोर पकड़े रहना ।
निपट निरंकुश चंचल मनको सावधान करते रहना॥
अन्तर्यामीको अन्त:स्थित देख सशङिक्त होवे मन।
पाप-वासना उठते ही हो नाश लाजसे वह जल-भुन॥
जीवोंका कलरव जो दिनभर सुननेमें मेरे आवे ।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे॥
तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि! तुझमें यह सारा संसार ।
इसी भावनासे अन्तरभर मिलूँ सभीसे तुझे निहार ॥
प्रतिपल निज इन्द्रियसमूहसे जो कुछ भी आचार करुँ।
केवल तुझे रिझाने को, बस तेरा ही व्यवहार करुँ ॥
-श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार (भाईजी)
रह पाएगा क्या रस का चसका, नहिं कृष्ण से प्रेम लगाएगा जो l
अरे कृष्ण उसे समझेंगे, वही रसिकों के समाज में जाएगा जो l l
ब्रज धुल धपेट कलेवर में ,गुण नित्य किशोर के गाएगा जो l
हँसता हुआ श्याम मिलेगा उसे, निज प्राणों की बाजी लगाए गा जो l l

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