देख गुनी और
ज्ञानी ,
बात सुन ले रे अभिमानी
तेरा कुछ नहीं है
इस संसार में , मत पड़ रे माया जाल में.
तुमको बहकाने, माया जाल में फसाने
माया खेल बहुत
दिखायेगी
बार बार ये तुमको
अपनी और बुलाएगी.
सचे दिल से ध्यान
हरी का धरना ,
रज़ा हरी की हो
जायेगी ,
चिन्तंत कर हरी
का, माया भी तेरा कुछ न बिगाड़ पाएगी
हमारा हृदय
भगवान् श्रीकृष्ण के प्रेम से रंजित है,
यह भगवान् कि
विशेष कृपा है ।
उनके दर्शनों कि
तीव्र लालसा होना,
यही तो मनुष्य का
सर्वोत्तम लक्ष्य है।
इस लालसा को
पूर्ण करना सर्वशक्तिमान परम प्रेमी प्रभु के हाथ में है।
अत: उनके आश्रित
भक्त को कभी निराश नहीं होना चाहिए, निराशा तो साधन
में विघ्न है, भगवान् पर दृढ भरोसा रखना चाहिए।
भगवान जल्दी से
जल्दी कैसे मिलेँ-यह भाव जाग्रत रहने पर ही भगवान मिलते हैँ। यह लालसा उत्तरोत्तर
बढ़ती चलें। ऐसी उत्कट इच्छा ही प्रेममयके मिलनेका कारण है और प्रेमसे ही प्रभु
मिलते हैँ। प्रभुका रहस्य और प्रभाव जाननेसे ही प्रेम होता है। थोड़ा सा भी
प्रभुका रहस्य जाननेपर हम उसके बिना एक क्षणभर भी नहीँ रह सकते।
हरे कृष्णा
No comments:
Post a Comment