राधा प्यारी कह्यो सखिन सों
सांझी धरोरी माई।
बिटियां बहुत अहीरन की
मिल गई जहां फूलन अथांई॥
यह बात जानी मनमोहन
कह्यो सबन समुझाय।
भैया बछरा देखे रहियो
मैया छाक धराय॥
असें कहि चले श्यामसुंदरवर
पहुंचे जहां सब आई।
सखी रूप वहीँ मिलें लाडिले
फूल लिये हरखाई॥
करसों कर राधा संग शोभित
सांझी चीती जाय।
खटरस के व्यंजन अरपे
तब मन अभिलाख पुजाय॥
कीरति रानी लेत बलैया
विधिसों विनय सुनाय।
सूरदास अविचल यह जोरी
सुख निरखत न अघाय॥
श्री राधारमणाय समर्पणम्।
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