हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
जिस जीवन की तुम जीवन हो,
वो जीवन ही वृन्दावन है !!
हे राधे, हे वृषभानु ललि..
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
हे परमेश्वरी, हे सर्वेश्वरी ,तू ब्रजेश्वरी,
आनंदघन है..
हे कृपानिधे! हे करुणानिधि!
जग जीवन की जीवन धन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
दुर्गमगति जो योगेन्द्रों को,
वही दुर्लभ ब्रह्म चरण दाबे..
रसकामधेनु तेरी चरण धूल,
हर रोम लोक प्रगटावन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
अनगिनत सूर्य की ज्योति पुञ्ज,
पद नखी प्रवाह से लगती है..
धूमिल होते शशि कोटि कोटि दिव्यातिदिव्य दिव्यानन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
श्रुति वेद शास्त्र सब तंत्र मन्त्र,
गूंजे नुपुर झनकारो में..
वर मांगे उमा, रमा, अम्बे,
तू अखिल लोक चूड़ामणि है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
वृजप्रेम सिंधु की लहरों में,
तेरी लीला रस अरविन्द खिले...
मकरंद भक्तिरस जहां पिए,
सोई भ्रमर कुञ्ज वृन्दावन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
जहां नाम तेरे की रसधारा,
दृग अश्रु भरे स्वर से निकले..
उस धारा में ध्वनि मुरली की,
और मुरलीधर का दर्शन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
राधा माधव ,माधव राधा,
तुम दोनों में कोई भेद नही..
तुमको जो भिन्न कहे जग में,
कोई ग्रन्थ,शास्त्र,श्रुति वेद नही..
आराध्य तू ही आराध्या तू,
आराधक और आराधन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
जहां नाम, रूप ,लीला छवि रस,
चिंतन गुणगान में मन झूमें..
उस रस में तू रासेश्वरी है,
रसिकेश्वर और निधिवन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
जब आर्त ह्रदय यह कह निकले,
वृषभानु ललि मैं तेरी हूँ...
उस स्वर की पदरज सीस चढ़े,
तब लालन के संग गोचन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
जिस जीवन की तुम जीवन हो,
वो जीवन ही संजीवन है !!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
।श्री राधारमणाय् समर्पणम्।
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
जिस जीवन की तुम जीवन हो,
वो जीवन ही वृन्दावन है !!
हे राधे, हे वृषभानु ललि..
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
हे परमेश्वरी, हे सर्वेश्वरी ,तू ब्रजेश्वरी,
आनंदघन है..
हे कृपानिधे! हे करुणानिधि!
जग जीवन की जीवन धन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
दुर्गमगति जो योगेन्द्रों को,
वही दुर्लभ ब्रह्म चरण दाबे..
रसकामधेनु तेरी चरण धूल,
हर रोम लोक प्रगटावन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
अनगिनत सूर्य की ज्योति पुञ्ज,
पद नखी प्रवाह से लगती है..
धूमिल होते शशि कोटि कोटि दिव्यातिदिव्य दिव्यानन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
श्रुति वेद शास्त्र सब तंत्र मन्त्र,
गूंजे नुपुर झनकारो में..
वर मांगे उमा, रमा, अम्बे,
तू अखिल लोक चूड़ामणि है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
वृजप्रेम सिंधु की लहरों में,
तेरी लीला रस अरविन्द खिले...
मकरंद भक्तिरस जहां पिए,
सोई भ्रमर कुञ्ज वृन्दावन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
जहां नाम तेरे की रसधारा,
दृग अश्रु भरे स्वर से निकले..
उस धारा में ध्वनि मुरली की,
और मुरलीधर का दर्शन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
राधा माधव ,माधव राधा,
तुम दोनों में कोई भेद नही..
तुमको जो भिन्न कहे जग में,
कोई ग्रन्थ,शास्त्र,श्रुति वेद नही..
आराध्य तू ही आराध्या तू,
आराधक और आराधन है !
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
जहां नाम, रूप ,लीला छवि रस,
चिंतन गुणगान में मन झूमें..
उस रस में तू रासेश्वरी है,
रसिकेश्वर और निधिवन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !!
जब आर्त ह्रदय यह कह निकले,
वृषभानु ललि मैं तेरी हूँ...
उस स्वर की पदरज सीस चढ़े,
तब लालन के संग गोचन है!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
जिस जीवन की तुम जीवन हो,
वो जीवन ही संजीवन है !!
हे राधे ,हे वृषभानु ललि...
तुम बिन जीवन क्या जीवन है !
।श्री राधारमणाय् समर्पणम्।
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