Tuesday 13 October 2015

उड़ा जा रहा प्रकृति पर रथ - विमान आकाश

उड़ा जा रहा प्रकृति पर रथ - विमान आकाश |
मानो हैं हय चल रहे , हरि - पग - तल - रथ - रास ||

दिव्य रत्नमणि - रचित अति द्युतिमय विमल विमान |
चिदानन्दघन सत् सभी वस्तु - साज - सामान ||

अतुल मधुर सुन्दर परम रहे विराजित श्याम |
नव - नीरद - नीलाभ - वपु , मुनि - मन - हरण ललाम ||

पीत वसन , कटि किंकिणी , तन भूषण द्युति - धाम |
कण्ठ रत्नमणि , सौरभित सुमन - हार अभिराम ||

मोर - पिच्छ - मणिमय मुकुट , घन घुँघराले केश |
कर दर्पण - मुद्रा वरद विभु - विजयी शोवर वेश ||

शोभित कलित कपोल अति अधर मधुर मुसुकान |
पाते प्रेम - समाधि , जो करते नित यह ध्यान ||

जय जय श्रीराधे ! जय जय श्रीराधे ! जय जय श्रीराधे !
पद सँख्या —{ १७३ }

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