Sunday 11 October 2015

॥सांझी के पद॥

   

केसर फूल बीनत राधा गोरी।
भोरी संग सहचरी बारी।

जिनके अंग सुगंध केसर की
अरु केसर रंग सारी॥

जिनके तन वरन केसर कौ
केसर पंखुरी अंगुरिन पर बारी।

नख प्रतिबिंब देख केसर को
भूल गई सुध सारी॥

बन ही बन आये गिरिधर जहाँ
बिहार करत सुकुमारी।

जीवन गिरिधर सखी रूप धरि
कल करत मनुहारी॥

॥श्रीराधारमणाय समर्पणं॥

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