Thursday 12 November 2015

जो बोया सो काट ले , अब रोकर क्या ? लाभ

परेशान क्यों ? हो रहा , क्यों ? है चिंतामग्न।
अब जब नित नए ,आ रहे ,हैं जीवन में विघ्न ।।
काट वही तो पाएगा , जो , बोया " रोटीराम " ।
सुख तो पा पाता तभी,जब जाता,जप " नाम "
मन में रख , सद्भावना , करता हरि का जाप ।
जीवन जीता , नर समां , दूरी रखता पाप।।
फिर घर के , जिम्मे पटा,जा वसता कहीं धाम।
और भुला परिवार को, जपता ईश्वर नाम ।।
लेकिन तब तो , था नहीं , तेरा इधर रुझान ।
क्योंकि जिया नहीं स्वयं को,जीता था, सन्तान
और बिना , सही गलत के,पूरी कीं ,उन मांग ।
बुद्धि को दुत्कार के ,कर जिम्मों का स्वाँग।।
हर समझौता , तू किया , मन के आगे हार।
समझौतों को दे सदा , नाम सन्तति प्यार ।।
कहके यह तो रीत है , चल रही है , चिरकाल ।
मैं नहीं तो क्या ? दूसरे , रक्खेंगे इन ख्याल।

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