वैसे तो भक्त अगर भक्त है,
तो वह कभी गिरता नहीं,
लेकिन अगर कभी गिर भी जाय,
तो तुरंत उठ कर खडा हो जाता है,
और फिर से ज्ञान और भक्ति से सम्पन्न हो जाता है ।
गिरना कोई बडी बात नहीं,
बडी बात तो गिर कर भी फिर से उठ जाना है।
संत और असंत में सबसे बडा अंतर यही है,
कि संत तो एक चंदन के बृक्ष के समान परोपकारी स्वभाव वाले होते हैं,
और असंत कुल्हाडी के समान।
ये दोनों ही अपना स्वभाव नहीं छोडते।
कुल्हाडी रूपी असंत चंदन रूपी संत को भले ही मिटाने का प्रयास करे,
लेकिन चंदन मिटते मिटते भी कुल्हाडी में सुगंध छोडही जाता है।
तो वह कभी गिरता नहीं,
लेकिन अगर कभी गिर भी जाय,
तो तुरंत उठ कर खडा हो जाता है,
और फिर से ज्ञान और भक्ति से सम्पन्न हो जाता है ।
गिरना कोई बडी बात नहीं,
बडी बात तो गिर कर भी फिर से उठ जाना है।
संत और असंत में सबसे बडा अंतर यही है,
कि संत तो एक चंदन के बृक्ष के समान परोपकारी स्वभाव वाले होते हैं,
और असंत कुल्हाडी के समान।
ये दोनों ही अपना स्वभाव नहीं छोडते।
कुल्हाडी रूपी असंत चंदन रूपी संत को भले ही मिटाने का प्रयास करे,
लेकिन चंदन मिटते मिटते भी कुल्हाडी में सुगंध छोडही जाता है।
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