Tuesday 3 November 2015

दुक्खालय संसार में , सुख कैसे ?

दुक्खालय संसार में , सुख कैसे ? मिल पाय।
वह भी तामस ओढकर , अरु हरि को विसराय।।
यह तो कोरा स्वप्न है , खुली आँख हम आप।
नहीं होना साकार यह , मिलें मात्र सन्ताप।।
गर है सुख की चाहना , तो सात्विकता लो ओढ।
मन को रंग लो , राम में , संसारिकता छोड।।
तब ही दुक्खालय हमें , सुख देे " रोटीराम "।
सुख का स्रोत तो एक ही , केवल भगवन्नामा।।

  जिस मन में सन्तोष हो , इच्छा , होंय समाप्त।
उस मन में ही जागती , इच्छा , हरि हों प्राप्त।।
वरना तो , जहाँ कामना , इच्छाओं का जोर।
वह मन रमता जगत में , चले न हरि की ओर।।
सो गर हरि को चाहते , तो प्रथम करो यह काम।
कि निष्कामी जीवन जिओ , मन से " रोटीराम "।।
क्योंकि " उन्हें " निष्कामता , सबसे अधिक पसंद।
निष्कामी के ही कटें , जनम - जनम के फन्द।।

No comments:

Post a Comment