नवधा भक्ति में रखीं , " तुलसी " आठ सशर्त।
केवल पहली में नहीं , रक्खी कोई शर्त।।
इसीलिए भक्ति यही , है सबसे आसान।
ऊपर से यह दिव्यता, कि मिला सके भगवान।।
क्यों ? फिर हम उन आठ में , ज्यादा रुचि दिखायं।
उतनी ही वे बहुत है , जितनी हम कर पायं।।
पहली से ही सध रहे , जब अपने सब काम।
तो क्यों ? शर्तों में बंधें , बोलो " रोटीराम "।।
केवल पहली में नहीं , रक्खी कोई शर्त।।
इसीलिए भक्ति यही , है सबसे आसान।
ऊपर से यह दिव्यता, कि मिला सके भगवान।।
क्यों ? फिर हम उन आठ में , ज्यादा रुचि दिखायं।
उतनी ही वे बहुत है , जितनी हम कर पायं।।
पहली से ही सध रहे , जब अपने सब काम।
तो क्यों ? शर्तों में बंधें , बोलो " रोटीराम "।।
( तुलसीदास जी ने लिखा है कि - - - - )
बिन सत्संग विवेक न होई ,
राम कृपा बिन सुलभ न सोई ।।
( शर्तों का विवरण )
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा ,
शर्त ( कोई नहीं )
दूसर रति मम कथा प्रसंगा ,
शर्त - कथा सुनें , मगर ( रति ) के साथ,
गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति ( अमान ),
शर्त - गुरु चरणों की सेवा, मगर( अमानी) होकर,
चौथि भगति मम गुन गन ,
करइ ( कपट ) तजि गान ।
शर्त - ( कपट ) से रहित होकर
मंत्र जाप मम ( दृढ विस्वासा ) ,
पंचम भजन सो वेद प्रकाशा,
शर्त - ( दृढ विस्वास होना चाहिए ) ,
छठ दम सील ( विरति ) बहु करमा ,
निरत निरंतर सज्जन धरमा,
शर्त - ( विरक्ति ) लेकर निरन्तर( धर्म का पालन ) ,
सातवँ सम ( मोहि मय जग देखा ) ,
मोते अधिक संत करि लेखा,
शर्त - ( चराचर सृष्टि में मेरा दर्शन हो )
आठवँ जथा लाभ संतोषा ,
सपनेहुँ नहीं देखइ परदोषा ,
शर्त - ( सन्तोषी हो , और दूसरों में दोष न देखे ),
नवम सरल सब सन छल हीना ,
मम भरोस हियँ हरष न दीना ,
शर्त ( कोई नहीं )
दूसर रति मम कथा प्रसंगा ,
शर्त - कथा सुनें , मगर ( रति ) के साथ,
गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति ( अमान ),
शर्त - गुरु चरणों की सेवा, मगर( अमानी) होकर,
चौथि भगति मम गुन गन ,
शर्त - ( कपट ) से रहित होकर
मंत्र जाप मम ( दृढ विस्वासा ) ,
पंचम भजन सो वेद प्रकाशा,
शर्त - ( दृढ विस्वास होना चाहिए ) ,
छठ दम सील ( विरति ) बहु करमा ,
निरत निरंतर सज्जन धरमा,
शर्त - ( विरक्ति ) लेकर निरन्तर( धर्म का पालन ) ,
सातवँ सम ( मोहि मय जग देखा ) ,
मोते अधिक संत करि लेखा,
शर्त - ( चराचर सृष्टि में मेरा दर्शन हो )
आठवँ जथा लाभ संतोषा ,
सपनेहुँ नहीं देखइ परदोषा ,
शर्त - ( सन्तोषी हो , और दूसरों में दोष न देखे ),
नवम सरल सब सन छल हीना ,
मम भरोस हियँ हरष न दीना ,
नव महुँ एकउ जिन्ह के होई ,
नारि पुरुष सचराचर कोई ,
नारि पुरुष सचराचर कोई ,
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