Saturday 14 November 2015

परेशान क्यों ? हो रहा , क्यों ? है चिंतामग्न।

परेशान  क्यों ?  हो  रहा , क्यों ?  है चिंतामग्न।
     अब जब नित नए ,आ रहे ,हैं जीवन में विघ्न ।।
      काट वही तो पाएगा , जो , बोया " रोटीराम " ।
       सुख तो पा पाता तभी,जब जाता,जप " नाम "
मन में  रख , सद्भावना , करता  हरि  का जाप ।
      जीवन  जीता , नर  समां ,  दूरी रखता  पाप।।
       फिर घर के , जिम्मे पटा,जा वसता कहीं धाम।
        और भुला परिवार को, जपता  ईश्वर नाम ।।
लेकिन  तब  तो , था  नहीं , तेरा  इधर रुझान ।
     क्योंकि जिया नहीं स्वयं को,जीता था, सन्तान
      और बिना , सही गलत के,पूरी  कीं ,उन मांग ।
       बुद्धि को दुत्कार के ,कर  जिम्मों  का स्वाँग।।
 हर  समझौता ,  तू  किया , मन  के  आगे  हार।
     समझौतों  को  दे सदा , नाम सन्तति  प्यार ।।
      कहके यह तो रीत है , चल रही है , चिरकाल ।
       मैं नहीं तो क्या ? दूसरे , रक्खेंगे इन ख्याल।।

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