Tuesday 17 November 2015

बरसाने की राधिका, नन्दगाँव के श्याम।



बरसाने  की राधिका,  नन्दगाँव के श्याम।
को ले अब हिरदय वसा, अपने रोटीराम।।
क्योंकि यही बस कर सकें , तुझको भव से पार।
ना तो जोडी सम्पदा, और न सुत परिवार।।
अब इनसे वैराग्य ले, अरु मुक्ति की सोच।
वरना ये अपने तुझे, देंगे नर्क दबोच।।
वैसे भी अब कौन से, बाकी रह गए काम।
जो अब भी घर में पडा, छोड-छाड हरिनाम।।

तृष्णा का कोई आज तक,पा नहीं पाया अंत ।
कुंवारा हो या व्याहता, भिक्षुक हो या सन्त।।
जिसने भी इसको लिया , भूल चूक पुचकार।
उसका इसने जन्म अरु, दीनी मृत्यु बिगार।।
फिर वह जीवन में कभी, कर न सका सत्काम।
लार टपकती ही रही, आश्रम-सम्पति-दाम।।
दमडी मिलनी चाहिए, कर कुछ भी व्यवहार।
उसके दूषित हो गए, ‘ रोटीराम विचार।।

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