हे कमल नयन मदन मोहन हे मृद भाषी मनहर चितवन.
आपकी वाणी की मोहकता तो करे आकर्षित बुद्धिमानों का मन.
.
हम तो ठहरी गाँव की ग्वालन फिर इससे भला कैसे बच पाती.
दौड़ पडी सुनके वेणु की नाद हम अपने प्रेम नही छुपा पाती.
.
ये नेत्र, ये शब्द, ये वाणी प्रभु हमें आपकी ओर खींच रहे हैं.
हम भाग रही है आपकी ओर आप हमसे आँखें मीच रहे हैं.
.
दर्शन बिना अब प्राण जाने को है मानो बची हैं कुछ साँसें सीमित.
इस धरा के परे अधरामृत तुम्हारा पान करा, कर दो फिर से जीवित.
आपकी वाणी की मोहकता तो करे आकर्षित बुद्धिमानों का मन.
.
हम तो ठहरी गाँव की ग्वालन फिर इससे भला कैसे बच पाती.
दौड़ पडी सुनके वेणु की नाद हम अपने प्रेम नही छुपा पाती.
.
ये नेत्र, ये शब्द, ये वाणी प्रभु हमें आपकी ओर खींच रहे हैं.
हम भाग रही है आपकी ओर आप हमसे आँखें मीच रहे हैं.
.
दर्शन बिना अब प्राण जाने को है मानो बची हैं कुछ साँसें सीमित.
इस धरा के परे अधरामृत तुम्हारा पान करा, कर दो फिर से जीवित.
No comments:
Post a Comment