Saturday 7 November 2015

हे कमल नयन मदन मोहन

हे कमल नयन मदन मोहन हे मृद भाषी मनहर चितवन.
आपकी वाणी की मोहकता तो करे आकर्षित बुद्धिमानों का मन.
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हम तो ठहरी गाँव की ग्वालन फिर इससे भला कैसे बच पाती.
दौड़ पडी सुनके वेणु की नाद हम अपने प्रेम नही छुपा पाती.
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ये नेत्र, ये शब्द, ये वाणी प्रभु हमें आपकी ओर खींच रहे हैं.
हम भाग रही है आपकी ओर आप हमसे आँखें मीच रहे हैं.
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दर्शन बिना अब प्राण जाने को है मानो बची हैं कुछ साँसें सीमित.
इस धरा के परे अधरामृत तुम्हारा पान करा, कर दो फिर से जीवित.

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