Wednesday 25 November 2015

होना है जिस देह को , पंचतत्व में लीन।

होना है जिस देह को , पंचतत्व में लीन।
उसको साज संवारने , क्यों ? रहा कन्डे बीन।।
कर पाए तो शीघ्र कर, इससे अब सत्काम।
वरना यह मलमूत्र का , भांडा "रोटीराम "।।
भोजन - निद्रा - भोग तो , हम अरु पशु समान।
यह तन तब ही दिव्य है , जब जापे भगवान।।
गर नहीं आज विवेक से , ले पाया तू काम।
तो सौ प्रतिशत sure है , पुनर्जन्म पशुचाम।।

( नीति शतक ) में लिखा है कि ,
आहार - निद्रा - भय मैथुनम् च , सामान्य मेतत् पशु भिर्नराणाम् ।
धर्मो हि तेषा मधिको विशेषो , धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।।
( आहार - निद्रा - भय और मैथुन तो पशु शरीर और मानव शरीर में एक समान ही है , मनुष्य  को जो विवेक रूपी निधि मिली हुई है , बस  वही हमें पशुओं से अलग करती है ।
विवेक का  इस्तेमाल करके हम तो सत्कर्मों के द्वारा धर्म पथ पर चल कर परमात्म तत्व को पा सकते हैं , पशु  नहीं । इसलिए अगर मनुष्य तन पाकर भी अगर  हमने इस शरीर को यूँ हीं गँवा दिया तो , हममें और पशु में क्या ? अंतर रह गया ।

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